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Showing posts from November, 2012

उल्फत

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जलवा-ए-हुस्न कुछ ऐसा है कि, हम पर शामत क्या कहिये.... पलकों की चिलमन गर उठें, लोगों की हालत क्या कहिये ..... आँखों में उल्फत के डोरे , उफ़,ज़िक्र-ए-कयामत क्या कहिये... छुप-छुप कर नज़रों का मिलना, हम पे ये इनायत क्या कहिये ...... बना कर तुझको वो खुद है हैरां , और इश्क-ए-इबादत क्या कहिये ..... कर लूं दुश्मनी खुदा से भी, अब और बगावत क्या कहिये.... - रोली 

दिन-रात

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दिन भर आसमां पर टंगा हुआ सूरज, सांझ ढले टूट रहा... क्षितिज पर पड़ा हुआ दहकता अग्निपिंड सा...... अगन अब ना रही अब तो है शीतलता वहीँ जहाँ मिलन हो रहा अवनि और अम्बर का...... समेटती आलिंगन में अटल पर्वत श्रृंखलाएं, भुला कर अपना तेज, उनकी बाँहों में खो रहा......... ढक रहा तम, उजाला सूर्य का, लो आ गई अब बारी चाँद की.... आ गया हमको लुभाने ले के बारात सितारों की ....... - रोली

नवांकुर

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 धरती में कहीं गहरे में एक बीज बोया हुआ... गुमनाम अँधेरे में सुप्त सोया हुआ... अस्तित्व नहीं भीतर, किन्तु बाहर है जीवन .. अंदर है सिर्फ तम, मिट्टी सर्द और नम ... सूर्य की किरणों संग चमकते उजाले में, चौंधियाती आँखों को, झपकते-मलते हुए फूटा बीज से अंकुर झाँक रहा बाहर, नव गति, नव चेतना संग संघर्ष करने जीवन से आ गया नवांकुर | - रोली