tag:blogger.com,1999:blog-16359165838239754312024-03-25T05:52:58.139-07:00आवाज़वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं
वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं
इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर
जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क
में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते...
उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है
शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक
प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.comBlogger260125tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-48253808627318140492024-01-25T10:13:00.000-08:002024-01-25T22:37:27.650-08:00जननि का महत्व <p> सदियां ही नहीं युग बीत गए यह कहते हुए कि समाज पुरुष प्रधान है | कई लोग इस बात पर आपत्ति करते हैं कि काहे का पुरुष प्रधान समाज ! आज की नारी बराबरी की हक़दार है हर क्षेत्र में | मैंने भी यह महसूस किया कि कौन सा क्षेत्र अछूता रह गया नारी से जो यह सोचना पड़ा ! </p><p>इन दिनों भगवान श्री राम की लहर देश भर में चल रही है | सभी राममय हैं | मेरे मन में यूँ ही विचार कौंधा कि माता सीता की माता कौन हैं ये कौन कौन जानता होगा बिना गूगल किये | जनक दुलारी को सब जानते हैं किन्तु जननि को बहुत कम लोग | उनका नाम है - सुनयना, किन्तु अधिकतर लोग उनका नाम नहीं जानते |</p><p>मुझे याद आया कि मेरी बेटी जब पुणे यूनिवर्सिटी में थी तब उसकी मार्कशीट पे सिर्फ उसका नाम व् माता का नाम अर्थात मेरा नाम आता था क्यों वहाँ माता का नाम ही प्रथम आता है | मै बहुत प्रसन्न हुई थी कि कहीं तो माँ को यह अवसर मिला |</p><p>कहने का तात्पर्य यह है कि माँ आज भी लुकी-छुपी-दबी है और पिता सर्वोपरि हैं, जबकि दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, एक दूसरे के पूरक हैं |</p><p>बस, यही आशा एवं विश्वास है कि बेटी जनक दुलारी के साथ सुनयना दुलारी भी कहलाई जाये |</p><p><br /></p><p>- रोली पाठक </p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-27624737509284715272023-11-29T06:24:00.000-08:002023-11-29T06:27:17.340-08:00एक था कालू !<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWVJsCBUvEA8t9hJrKM0NjTT8Vu-HZT5DWQE-RMZd2Di4OAYl-3EHvA0JqmK3foF9m1TN2iqBOi3izmGNqJcZnNoWAZcZ3HTnYynIlCBqW3K8IID8XmlCLv73M6jDji_NEL9cFasoIxBeX9e0c-dxdcH8sF8spm-UQqXQJD-IZyA2QbT1lO1-pJWYMndI/s4032/IMG_2417.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="4032" data-original-width="3024" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWVJsCBUvEA8t9hJrKM0NjTT8Vu-HZT5DWQE-RMZd2Di4OAYl-3EHvA0JqmK3foF9m1TN2iqBOi3izmGNqJcZnNoWAZcZ3HTnYynIlCBqW3K8IID8XmlCLv73M6jDji_NEL9cFasoIxBeX9e0c-dxdcH8sF8spm-UQqXQJD-IZyA2QbT1lO1-pJWYMndI/s320/IMG_2417.jpeg" width="240" /></a></div><br />कालू से मेरा परिचय लगभग आठ साल पहले हुआ था, उसकी एक आँख बुरी तरह ज़ख़्मी थी तब मेरे सामने रहने वाली डॉग लवर टिक्कू ने उसकी आँख का ऑपरेशन कराया और उसकी वह आँख लगभग बंद हो गई थी, अब वह एक आँख से दुनिया देखता था | निहायत ही शरीफ और सीधा-सादा, काले व कहीं कहीं सफ़ेद रंग के बालों वाला कालू कुछ लोगों का बड़ा दुलारा था | मेरे पास सफ़ेद पॉमेरियन है तो मेरे घर के सदस्यों को कालू से भी विशेष स्नेह था | वह पिछले चार सालों से रात का खाना नियम से हमारे घर ही खाता, कभी वो नहीं आता तो उसकी ढुंढाई मच जाती | कभी उसे दूसरे कुत्ते काट लेते तो हम इलाज कराते, दूध में दवाई पीस-पीस कर उसे खिलाई जाती, घाव पर दवा लगाते, एक हफ्ते में वो फिर से भला चंगा हो जाता | एक साल पहले उसे कैंसर हो गया था तब कैम्पस के एक परिवार ने उसका इलाज कराया, कीमो थैरेपी हुई और एक महीने बाद कालू फिर स्वस्थ हो गया | हम कभी रात को कहीं से लौटने में लेट हो जाते तो कॉलोनी के गेट से कालू हमारी गाड़ी का हॉर्न पहचान कर पीछे पीछे भागता आता और हम सबसे पहले उसे खाना देते | हमारे डॉग हैप्पी से उसकी खासी दोस्ती थी | रात का खाना दोनों के लिए अलग बनता और सुबह कालू को डॉग्स बिस्किट दिए जाते | कालू सभी सिक्योरिटी गार्ड्स का फेवरेट था, वह उनके साथ सारी रात जागता और राउंड लगाता, कुछ बच्चे भी उसे खूब पसंद करते थे | पंद्रह दिन से बीमार कालू की हम सभी ने खूब देखभाल की | ठण्ड से उसे बचाने के लिए हैप्पी की जैकेट पहनाई गई, हैप्पी का एक गद्दा व चादर ले कर उसका बिस्तर एक खाली पड़े घर के पोर्च के कोने में झाड़-बुहार कर साफ़ करके लगाया गया | यहाँ वह सुरक्षित था | ठण्ड से भी और दूसरे कुत्तों से भी | उसे चाहनेवाले लोग व बच्चे उसके लिए दूध, पानी, बिस्किट्स, ब्रेड, अंडे सब रख जाते | हम सब उसका खूब ख्याल रखते, मेरी बेटी उसे खूब दुलारती, सहलाती और अपने हाथ से खाना खिलाती| वह उसे कार में ले जा कर कई बार डॉक्टर के यहाँ गई , उसकी सोनोग्राफी, ब्लड टेस्ट सब कुछ करवाए गए, यहाँ तक कि खून की बहुत ज़रूरत होने पर एक बहुत ही प्यारी फीमेल डॉग कोको ने उसके लिए खून भी दिया लेकिन आज सुबह 4 बजे उसने अंतिम सांस ली और गार्ड के द्वारा मुझे पता चला कि कालू अब नहीं है | हलकी बारिश हो रही थी, धुंध में लिपटी सर्द सुबह में मैंने शॉल लपेटा और उस खाली घर के पोर्च में पहुंची जहाँ हम सबका दुलारा कालू आँखे बंद किये गर्म शॉल में लिप्त निश्चेत पड़ा था | भारी मन से मै वापस आई, लगभग आठ बजे कई लोगों को पता चल गया | कैम्पस के चौकीदार श्रीकांत दादा से मैंने नमक व फूल-माला मंगाई, बेटी को उठाया और बताया तो वह रुआंसी हो गई, वैसे ही भागी कालू को देखने, लौट कर रोते हुए आई | मैंने उसे कहा तैयार हो जाओ आधे घंटे में कालू को ले जायेंगे | कॉलोनी के कर्मचारियों ने ठेले को साफ करके चादर बिछा कर उसे लेटाया, उस पर फूल चढ़ाये गए, माला पहनाई और नम आँखों से सबने उसे विदा किया | हैप्पी का दोस्त और हम सबका चहेता,लाड़ला,प्यारा, दुलारा कालू चला गया | चार साल से उसके लिए भी खाना बनाने की आदत हो गई थी, रात को साढ़े आठ-नौ बजते ही वह घर के बाहर आ जाता और देर होने पर गेट खटखटाता, आवाज़ देता था | प्रेम से किसी को भी वश में किया जा सकता है | कालू इसका उदहारण है | कालू के इलाज के दौरान मुझे कुछ अच्छे तो कुछ बुरे अनुभव हुए | कोको जिसने कालू के लिए खून दिया था, वह एक स्ट्रीट डॉग थी, जिसे पालने वाले युवक भूपेंद्र के पास ऐसे सात-आठ डॉग्स हैं जो ब्लड डोनेट करते रहते हैं, भूपेंद्र यह सेवा निःस्वार्थ भाव से करते हैं, वो कालू को कोको का ब्लड देने के लिए ठण्ड में शाम छह बजे दोपहिया वाहन पर सात किलोमीटर दूर से आये थे, जिन डॉक्टर की निगरानी में इलाज हुआ डॉ आदर्श शर्मा, वे भी बहुत ही भले इंसान हैं ईश्वर इन अच्छे लोगों को सदा खुश रखें | बुरे अनुभव में सरकारी इलाज सबसे पहले शामिल है, एनिमल एम्बुलेंस सेवा, जिसे हमने कालू के लिए तीन बार बुलाया और हर बार वो लोग बस थर्मामीटर लगा कर उसका टेम्परेचर लेते, पैरासिटेमॉल का और न जाने कौन से और तीन इंजेक्शन लगाते और चल देते | ब्लड टेस्ट लेने के लिए उन्हें कालू की नस ही नहीं मिल रही थी, छः -सात जगह सुई घुसा कर जब सफलता नहीं मिली तो मैंने साफ़ मना कर दिया कि आप लोग रहने दें हम प्राइवेट डॉक्टर से इलाज करवा लेंगे | यह था सरकारी काम |<div>ख़ैर, कालू अपनी ज़िंदगी जी कर और सब में प्यार बाँट कर चला गया | ईश्वर उसे सद्गति प्रदान करें 🙏🏼</div>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-38027096435907341652023-09-30T01:08:00.004-07:002024-03-18T03:11:24.299-07:00पापा<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5Ot-rOQeK4PW-3QWnondM0V-Wab_rR8gL3_pK_JNc-8f5rTMrc5kBEkiTKsp3QnVDYsNoDTlRle5_FJVWG8XLGKt7HR-DPhzySwpe2_lZaT3ITrHEMpbe5OQNiEmeuZzcfjeO4cSwscJukONAkN8NhBmqS3oyjm2nj3ifuReakCtzgVNRZ9HAQni6xo4/s1600/269095.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1066" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg5Ot-rOQeK4PW-3QWnondM0V-Wab_rR8gL3_pK_JNc-8f5rTMrc5kBEkiTKsp3QnVDYsNoDTlRle5_FJVWG8XLGKt7HR-DPhzySwpe2_lZaT3ITrHEMpbe5OQNiEmeuZzcfjeO4cSwscJukONAkN8NhBmqS3oyjm2nj3ifuReakCtzgVNRZ9HAQni6xo4/s320/269095.jpg" width="213" /></a></div><br /> कोविड ने जब सारी दुनिया को दहला रखा था और घर की चारदीवारी में सीमित कर दिया था तब मेरे पापा जो कि घर से 3 किमी दूर रहते हैं, वो रोज दोपहर को घर आते। 78 साल उम्र हो गई किंतु चुस्ती-फुर्ती और उत्साह 50 वर्ष के व्यक्ति जैसा। लाख समझाओ उन्हें कि घर से मत निकलिये, मास्क लगाईये लेकिन वो कहाँ सुनते थे। मेरी दोनो बेटियों से अगाध प्रेम हैं पापा-मम्मी को, वो दोनो भी नाना-नानी पर जान छिड़कती हैं। दोपहर के 1.30 बजते ही पापा कार चला कर घर आ जाते और फिर होती ताश की बाज़ी शुरू। शाम 5 बजे तक ताश खेला जाता, साथ ही पापा की एलेक्सा से गानों की फ़रमाइश चलती रहती, एक डायरी बनाई गई थी जिसमे रमी के पॉइंट्स लिखे जाते, आख़री में टोटल किया जाता कि उस दिन का विनर कौन रहा। यह सिलसिला खूब लंबा चला, तभी पापा भी कोरोना की चपेट में आ गए, 13 दिन अस्पताल में रहे। कमज़ोर भी हो गए थे। फिर शनिवार-इतवार के 2 दिन ताश के लिये मुक़र्रर किये गए। दोपहर के वो 4 घंटे अब हम लोगों के लिए सरदर्द बन गए थे लेकिन पापा को कैसे मना करें, उनका उत्साह तो वैसा का वैसा बरकरार था। ख़ैर, वक़्त गुज़र रहा था, कोविड के बाद जीवन पटरी पर आ रहा था। बड़ी बेटी का जॉब लग गया था, वो सप्ताह भर देर रात ऑनलाइन काम करती और शनिवार-इतवार आते ही छुट्टी के मोड में आ जाती, इधर नानाजी भी दोनो दिन दोपहर भर ताश खिलवाते। सब उनके ताश के जुनून से परेशान थे लेकिन वह उनका वक़्त गुजारने का सबसे अच्छा साधन था।<p></p><p>अप्रैल 2022 चल रहा था, अचानक पापा की सेहत कमज़ोर होने लगी। वज़न कम होने लगा। 72 किलो से 62 किलो। अब वो ताश बाँटते तो किसी को ज़्यादा पत्ते दे देते किसी को कम। पॉइंट्स टोटल करने में भी गड़बड़ हो रही थी। एक शनिवार वो अपने घर से हमारे घर को निकले, 2 घंटे बाद पहुँचे और बोले - अरे, आज तो हम रास्ता ही भटक गए। बड़ी मुश्किल से पहुँचे। हम सब हैरान। अब जब डायरी में नाम लिखते तो सबके पूरे नाम लिखने लगे। पहले स्वयं के लिये वो नाना लिखते थे, अब के.एन. दुबे लिखने लगे। हम सभी के भी बाहर वाले पूरे पूरे नाम लिखे जाने लगे।एलेक्सा से फ़रमाइश अब भी ज़ारी थीं। मम्मी व हम सब उनका बदलता व्यवहार नोटिस कर रहे थे। मैं पीछे पड़ के एक दिन उन्हें हॉस्पिटल ले गई, सारे टेस्ट हुए। ब्रेन की एमआरआई हुई और रिपोर्ट ने हम सब को परेशान कर दिया। डॉक्टर ने बताया उन्हें डिमेंशिया है, जो अल्ज़ाइमर की तरह होता है। अब इन्हें अकेले कहीं न जाने दें, ड्राइव नहीं कर सकते। दवाएं खानी होंगी। धीरे धीरे ये सब भूलने लगेंगे। यहाँ तक कि चलना भी। यूँ ही समय गुज़रने लगा, सब ठीक ही था, अक्सर पापा घर से बिना बताए चुपचाप निकल जाते, सब परेशान हो उन्हें ढूंढते, वो मिल जाते। मम्मी उन पर खूब गुस्सा करतीं, वो चुप रहते। न जाने क्या सोचते रहते थे।एक दिन अपने घर से पैदल ही हमारे घर के लिए निकल आये और 5 घंटे बाद घर पहुंचे, इस बीच हम सब गाड़ियाँ ले कर उन्हें ढूंढते रहे। ऐसे कारनामे वो खूब करने लगे। कभी किसी ऐसे घर मे जा कर चाय पी आते जहाँ उनका मन-मुटाव रहा हो। कभी अपने पुराने दोस्तों से मिलने पार्क चले जाते। कभी पास की दुकान से टॉफियां ले आते। हम उन्हें अपने साथ घर लाते, खूब ज़िद करते कि चलिए ताश खेलें, अब उल्टा हो गया था, वो नहीं मानते, अलबत्ता एलेक्सा के गीतों से उनका प्रेम अब भी वैसा ही था। रोज शाम को नियम से डेढ़ घंटे पार्क में घूमने वाले पापा को अब घर से निकलना मंज़ूर नहीं था। शुगर के मरीज़ पापा अब हर आने-जाने वाले से गुलाब जामुन की फ़रमाइश करते, मिठाई को ले कर इतना इमोशनली ब्लैकमेल करते कि उन्हें मिठाई ला कर देना मजबूरी हो जाती। आइसक्रीम, टॉफियां, पेस्ट्री रोज माँगते, जबकि यही पापा जब ठीक थे तब शुगर लेवल कंट्रोल रखने के लिए मीठे को हाथ तक नहीं लगाते थे। अब वे हर वो काम करते जो उन्होंने कभी नहीं किया। बहुत ही शर्मीले और गंभीर स्वभाव के पापा अब खूब गाने गाते, उनका एक गाना - मुन्ना बड़ा प्यारा, मम्मी का दुलारा तो हम सब इतना सुनते थे कि अपने अपने घरों में हम सब वही गुनगुनाते रहते। इसी बीच बेटी की शादी हुई, नानाजी ने खूब एन्जॉय किया। अपनी सारी उम्र मैंने उन्हें लोगों के लाख कहने पर भी गाना गाते या शादी, बारात व ऐसे कार्यक्रमों में डांस करते नहीं देखा था लेकिन अब वो बच्चों की तरह हाथ उठा उठा कर हर गीत पर डांस करने को तैयार रहते। अब धीरे धीरे पापा की सेहत ठीक हुई। वज़न बढ़ा। उनके लिये केयर टेकर रखा गया। पापा एक बात को कई बार बोलते। मम्मी से बार-बार, कई बार पूछते और कहते रहते - अभी दिन है या रात !! कितना बज गया !! सोने का टाईम हो गया क्या !! हमारी बहन का नाम क्या है!! तुमने खाना खा लिया या नहीं !! रोली कब आएगी!! हमारे बड़े बाबूजी आने वाले हैं, हमारी अम्माँ आने वाली हैं, वगैरह-वगैरह। वर्षों पूर्व दिवंगत रिश्तेदारों को याद करते। अपने स्कूल-कॉलेज के दोस्तों के नाम लेते। कभी कहते आज फ़लां-फ़लां आने वाले हैं, सारे दरवाज़े खोल के रखो। कभी खाना खाने के 10 मिनट बाद दोबारा खाना माँगते कि अभी तक खाना नहीं दिया। हम तीनों भाई-बहन तो आते जाते रहते लेकिन मम्मी जो चौबीसों घंटे उनके साथ रहती वो बुरी तरह खीज जातीं आखिर वे भी उम्रदराज़ हैं, लेकिन हम सब उनके साथ बहुत खुश थे कि जिन पापा से कभी हँसी-मज़ाक न किया हो, उनका एक भय सदैव बना रहा हो अब वे छोटे से प्यारे से बच्चे बन गए थे, मम्मी नाराज़ होतीं तो पीछे से उन्हें मुँह चिढ़ाते, हम सब के सामने उन्हें आई लव यू कहते, हम सब हँसते हँसते लोट पोट हो जाते, दोनो नातिन तो नाना से रोज खूब बातें करतीं, उनकी हर फ़रमाइश पूरी करतीं। कभी उन्हें अमरूद खाना होते, कभी गुलाब जामुन, कभी नया नाईट सूट चाहिये तो कभी नए मोजे। उन्होंने राजकपूर जैसा हैट मंगाया और दिन भर उसे पहने रहते। रात में सोते वक्त ही वह उतरता। सब बहुत खुश थे सिवा मम्मी के। दरअसल जब पापा ठीक थे तो मम्मी-पापा दोनो खूब गप्पें मारते थे, दुनिया भर की बातें, नाते-रिश्तेदारों की, फिल्मों की, राजनीति की, हम बच्चों की। अब अचानक मम्मी अकेली हो गईं क्योंकि वो पापा से जैसे ही कहतीं - जानते हो प्रधानमंत्री मोदी जी आने वाले हैं शहर में, उत्तर में पापा कहते - अभी रात के 8 बजे हैं या सुबह के ! मम्मी उन्हें सामान्य समझ के व्यवहार करतीं और वो उन्हें खूब चिढ़ाते। दिन भर में 5 बार कपड़े बदलते, कभी कभी अपनी पूरी की पूरी थाली का खाना बाहर पलट आते कि एक भूखी गाय आने वाली है। कभी अकेले बैठे-बैठे कुछ बुदबुदाते। जब भी डॉक्टर के पास जाते तो उनके पूछने पर कहते - मैं एकदम बढ़िया हूँ। उनसे पूछते - आप कैसे हैं ! चलते समय डॉक्टर से गाने की लय में कहते- 'अच्छा तो हम चलते हैं।' मेरी छोटी बेटी रोज शाम मेरे साथ उनके पास जाती। हम तीनों भाई बहन शाम के 3 घण्टे उनके साथ रहते। सोने के पहले यू ट्यूब पे वो गाने सुनते। अपनी नींद की दवा का नाम उन्होंने रखा था - धीरे से आ जा री अंखियन में। मुझसे खाने की विशेष फ़रमाइश करते, कढ़ी, डोसा, इडली, साम्बर, भजिये, उपमा, पोहा सब बनवाते। बच्चों की तरह ज़िद्दी हो गए कि रोटी सब्जी नहीं खाना, पोहा ही खाऊंगा या डोसा ही खाऊंगा, हार कर मम्मी वही सब बनवातीं या मैं या भाभी बनाते। कुल मिला कर पापा की ज़िंदगी एकदम मज़े की हो गई और मम्मी की तनावग्रस्त। लेकिन अब पापा की बीमारी बढ़ रही थी, उनका चलना फिरना घर के अंदर भी सीमित हो गया था, अपने कमरे से सहारा ले कर ड्राइंगरूम तक आते और धम्म से सोफे पर बैठ जाते फिर 3-4 घंटे वहीं बैठे रहते और मम्मी उनके सामने वाले सोफे पर, हर वक़्त युद्ध का बिगुल बजने की आशंका रहती। पापा गाने गाते, मज़ेदार बातें करते। कुछ दिनों में उन्होंने चलना एकदम बंद कर दिया। उनका जीवन बिस्तर पर सिमट गया लेकिन हम लोग उन्हें सहारा दे कर बिस्तर से उठा कर व्हील चेयर पर पूरे घर मे घुमाते और कभी कभी कॉलोनी की सड़क पर। वो हरेक के घर के सामने से गुजरते हुए उस मकान में रहने वाले का नाम याद करते। बिस्तर पे लेटते ही चिल्ला कर आवाज़ देते, मम्मी, हम तीनों भाई बहन के नाम के अलावा उनका प्रिय नाम उनके केयर टेकर वीरेंद्र का था, जिसे वो वीरभद्र, बलभद्र, रघुवीर, बलवंत, विक्रमादित्य, वीरसिंह न जाने कौन कौन से नामों से बुलाते। अचानक कुछ दिन पहले उन्हें निमोनिया हुआ और आईसीयू में भर्ती किया, वहाँ से अब दूसरे अस्पताल में हैं। अभी, जबकि मैं अपने हैंडसम और बहुत ही प्यारे पापा के बारे में लिख रही हूँ, अंदर आईसीयू में वो वेंटीलेटर के सहारे चुपचाप लेटे हैं, आँखें बंद करके एकदम शांत। मशीन से उनकी सांसें चल रहीं हैं। ईश्वर से प्रार्थना है कि हमारे पापा और दोनो बेटियों के प्यारे नानाजी को सकुशल घर भेजें। मम्मी अब बहुत पछताती हैं कि मैं क्यों गुस्सा करती थी, बस एक बार तुम्हारे पापा घर आ जाएं फिर मैं उन्हें कुछ नहीं कहूंगी। पापा, जल्दी अच्छे हो जाइए अभी तो हम लोगों को बहुत सारी बातें करनी हैं। हम सब आपसे बहुत प्यार करते हैं पापा, और मैं तो बचपन से ही आपसे कभी अलग नहीं रही। शादी भी इसी शहर में हुई, आप के साथ रहने की आदत है। आप बस ठीक हो जाइए। लव यू पापा।</p><p>- रोली </p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-15162912140174980892023-02-24T09:42:00.005-08:002023-02-24T09:42:50.111-08:00क्या दें उपहार...!!!<p> ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब हमें परिवार में, रिश्तेदारी में, मित्रों को या औपचारिक संबंधों को निभाने के लिये उपहार देने का मौका आता है।</p><p>कहने को तो यह छोटी सी बात है किंतु विचार कीजिये कि ये वाकई एक बड़ा मुद्दा है। हम कई बार सोचते ही रह जाते हैं कि फलां-फलां को क्या उपहार दें और अंत में निरर्थक सा कुछ थमा आते हैं, जिसे लेने वाला भी आगे बढ़ा देता है अर्थात वो भी यूँ ही किसी को थमा देते हैं।</p><p>याद कीजिये जब कभी आपको उपहार मिलने का अवसर आया तो वे कौन सी वस्तुयें थीं जिन्हें पा कर आप प्रफुल्लित हुए, आपको वह उपहार बेहद उपयोगी लगा या पसन्द आया और वो क्या चीजें थीं जिन्हें आपने देखते ही मन बना लिया कि ये तो किसी को दे देंगे। कुछ बातें दिमाग में रख कर यदि उपहार तय करेंगे तो उसे लेने वाला भी प्रशंसा करेगा।</p><p>1. अवसर एवं बजट को ध्यान में रख कर निर्णय लीजिए, साथ ही जिन्हें उपहार देना है उनसे आपके संबंध कैसे हैं - औपचारिक, प्रगाढ़ या रिश्तेदारी ! </p><p>2. उपहार पहले से तय करें व ला कर रख लें ताकि जल्दबाजी में कुछ भी अनाप-शनाप न ले लें।कार्यक्रम के एक दिन पहले तक हर हाल में उपहार ले आएं एवं उसे खूबसूरती से गिफ्ट पैक करके उस पर अपना नाम लिख दें। चाहे तो अपना विज़िटिंग कार्ड चिपका दें।</p><p>3. सिर्फ नाम करने के लिए कुछ न दें। यदि किसी का निमंत्रण आया है तो उनके लिए उपहार खरीदने में समय दें। जो चीज़ आपको पसंद आये, वही दें। </p><p>4. किसी की शादी-विवाह में जा रहे हों तो खूबसूरत से लिफाफे में क्षमतानुसार रुपये रख दें, यह सबसे उपयोगी होगा, इससे नव-दंपत्ति अपनी आवश्यकतानुसार अपनी पसंद की चीज़ खरीद लेंगे । शादी, विवाह, विवाह की वर्षगांठ में उनके परिवार की विभिन्न फोटो का कोलाज बना कर फ्रेम करा कर दे सकते हैं, फोटो आजकल सोशल मीडिया पर मिल ही जाते हैं या खूबसूरत बेड शीट, दोहर का सेट, टी-सेट, डिनर सेट, कैसरोल सेट, ताँबे के जग-ग्लास का सेट, क्रॉकरी, लैम्प,शो-पीस, वॉल क्लॉक, इडली-ढोकला-अप्पे, सैंडविच मेकर,जैसी रोज़मर्रा में काम आने वाले उपयोगी उपहार दे सकते हैं। </p><p>किसी के जन्मदिन पर साड़ी, सूट, शर्ट, टी शर्ट, मेकअप का सामान, परफ्यूम आदि दिया जा सकता है, बस ख्याल रहे कि जो भी खरीदें वह काम-चलाऊ न हो, अच्छी क्वालिटी का हो। जो आपको भी पसन्द आ रहा हो। बजट के अनुसार चाँदी के गणपति, सिक्का, पायल, बिछिया, सिल्वर कोटेड पूजा की थाली आदि दी जा सकती है। </p><p>किसी छोटे बच्चे का जन्मदिन हो तो उसे खिलौना दें किन्तु ऐसा जो उसे नुकसान न पहुंचाए। स्टफ टॉय एक बेहतर ऑप्शन है। वॉकर, खाना खाने की छोटी कलरफुल टेबल-कुर्सी, कपड़े आदि दिए जा सकते हैं। </p><p>बड़े बच्चे के लिए अच्छी किताबें, एजुकेशनल गेम्स, शतरंज, कैरम, लूडो आदि के बारे में सोचें ताकि बच्चा इन सबका लुत्फ उठा सके।</p><p>किसी बुजुर्ग को उपहार देना हो तो उनकी रुचि की कोई किताब या धार्मिक किताब, भगवान की फ्रेम की हुई तस्वीर, शॉल, कुर्ता पाजामा या उनके उपयोग की वस्तुएं दें।</p><p> टीन एज बच्चों के उपहार अलग ही तरह के होते हैं। लड़के घड़ी, स्टायलिश कपड़े, जूते आदि पसंद करते हैं व लड़कियां ड्रेस, बैग, पर्स ब्रेसलेट या अन्य एसेसरीज पसंद करती हैं। इन्हें सुन्दर सी अलार्म वॉच, केलकुलेटर, पेन सेट आदि भी पसंद आएगा, इसके साथ ही इन बच्चों को एक इनट्रेस्टिंग किताब अवश्य भेंट करें ताकि उनकी पढ़ने की आदत बने।</p><p>5. सार यह है कि उपहार वही दें जो आपको भी पसंद आये। खाना-पूर्ति के लिये कुछ भी न दे दें। उपयोगी वस्तु दें ताकि उपहार लेने वाला आपका उपहार सदैव याद रखे।</p><p><br /></p><p>- रोली पाठक</p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-61362272902831678972022-10-21T01:08:00.005-07:002022-10-21T01:16:45.347-07:00व्यस्तता...<p> कितने दिन हो गए कुछ लिखा ही नहीं। विचारों के बादल आषाढ़ के मेघों की तरह दिलो-दिमाग में खूब उथल-पुथल मचाते रहते हैं लेकिन समय ही नहीं कि उन्हें शब्दों में ढाल सकूँ। </p><p>बिटिया के विवाह में लगभग एक माह शेष है, दीपावली का महापर्व सिर पर है, घर में एक साथ सफाई, रंगाई-पुताई, बढ़ई के काम सब चल रहे हैं। घर का सामान उलट-पुलट है। कुछ भी व्यवस्थित नहीं ऐसे में विचारों को कैसे एकसार करूँ !!! कभी दर्ज़ी के यहाँ ब्लाउज़ सिलने देना है तो कभी साड़ी में फॉल-पीकू कराना है, कभी मेहमानों की लिस्ट बनानी है तो कभी उनके उपहारों को अलग-अलग नाम लिख कर पैकेट्स बनाने हैं। बीच मे दस-बारह लोगों की चाय बनाओ तो घर मे चाय-नाश्ता-खाना भी चाहिए। बढ़ई बुलायें तो अट्ठारह सीढियां चढ़ कर ऊपर भागो फिर पुताई वाले की सुनने वापस नीचे आओ। इस कवायद में भी विचार कमबख्त शांत नहीं रहते, रोज एक बार मन का दरवाजा खटखटा कर जता ही देते हैं कि हमें भी आकार दो।</p><p>एक महीने बाद बिटिया का दूसरा घर हो जायेगा। अभी जो कमरा बेतरतीब सा बिखरा पड़ा है, शादी के बाद उसकी अलमारी, आईना, टेबल सब साफ-सुथरे चुप से हो जाएंगे। अभी जो चीख़-पुकार मची रहती है, ये नहीं मिल रहा, वो कहाँ है, वो सब सन्नाटे में बदल जायेगा। </p><p>लैपटॉप के जिस चार्जर को जगह-जगह लटकते देख मैं झुंझलाती हूँ वह भी नोनी के साथ ही चला जायेगा। मेरी सफाई को लेकर बड़बड़ाहट नहीं होगी। अभी तो चिंता घेरे रहती है कि कैसे करेगी वहाँ सब ! खुद के सारे काम करना पड़ेंगे, अभी तो सब मैं हाथ मे दे देती हूँ। </p><p>शादी के बाद ज़िंदगी ही बदल जाती है। नया घर, नया कमरा, नये रिश्ते। मैं उनतीस साल पहले का प्रतिबिंब देख रही हूँ आईने में। कैसे सब कुछ बदल गया था। मैंने सब स्वाभाविकता से धीरे-धीरे जैसे सब स्वीकार किया था, मेरी लाड़ली भी नये जीवन को अपना लेगी। </p><p>अब शब्द बोझिल हो रहे हैं। समय मिलने पर पुनः बिखरे विचारों को शब्दों में पिरोकर ब्लॉग पर लिखूंगी।</p><p>- रोली 🌹</p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-85770275438130226812021-12-31T00:11:00.003-08:002021-12-31T00:11:25.522-08:00दर्द का साल और खुशी के पल<p> आज साल के अंतिम पृष्ठ के समापन पर जब इसके पन्ने उलटती हूँ तो दुःख, दर्द, पीड़ा, अवसाद ही अधिक दिखाई देता है। वैश्विक महामारी ने बहुत लोगों को अपना ग्रास बनाया, कुछ रिश्तेदार थे, कुछ परिचित, कुछ पराये और कुछ बेहद अपने और एक थी मेरी बहुत प्यारी दोस्त। पिछले साल आज ही की शाम वो साथ थी, रात 9 बजे से देर रात तक। हमारा नव वर्ष साथ ही मना, क्या मालूम था कि उसके साथ वो आख़री साल होगा। उसे गए 7 महीने हो चुके लेकिन आज भी वो ख़यालों में ज़िन्दा है। हर जगह दिखाई देती है। हर रोज़ याद आती है। मनजीत के जाने के कुछ समय बाद एक-एक करके कई परिचितों के दुःखद समाचार प्राप्त हुए। दूसरी लहर भयावह थी। </p><p>रिश्तेदार व परिजन भी कोरोना से पीड़ित थे, अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती। हमने यथासंभव सभी की सहायता की और धीरे-धीरे वे सब स्वस्थ हो कर घर लौट आये।</p><p> ईश्वर ने मेरे परिवार पर विशेष कृपा की। हम सब पूर्णतः सुरक्षित रहे। </p><p>साल 2021 में गिनती की एकमात्र किन्तु बहुत बड़ी खुशी भी शामिल है - मेरी बेटी की सगाई। एक नया रिश्ता जुड़ना। यह एक ऐसी खुशी है जिसे परिवार के लोगों ने हृदय से महसूस किया। नई पीढ़ी का पहला सम्बन्ध स्थिर हुआ था वह भी अत्यंत सम्मानीय व प्रतिष्ठित परिवार में। सभी ने प्रसन्नतापूर्वक व बढ़-चढ़ कर कार्यक्रम में हिस्सा लिया और खुशियाँ द्विगुणित हो गयीं। </p><p>दर्द व खुशी से लबरेज़ यह साल गुजर गया। चंद लम्हें बाकी हैं और एक नई सुबह का आगाज़ होगा। ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है कि इस महामारी का अब अंत हो, खुशहाली वापस लौटे। घर, परिवार में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो। </p><p>सभी स्वस्थ रहें, शांति चहुँ ओर हो। </p><p>जो बिछड़ गये वे दिल व जेहन में हमेशा रहेंगे।</p><p>🌹🌹</p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-85451553082934398222021-09-04T05:21:00.000-07:002021-09-04T05:21:26.970-07:00भीगी यादें<p>बरखा के संगीत ने</p><p>छेड़ दिये फिर मन के तार</p><p>उमड़-घुमड़ होने लगा</p><p>कुछ वहाँ,</p><p>जिसे मन कहते हैं।</p><p>वो धुन वो उमंग</p><p>जैसे जलतरंग,</p><p>जैसे मेघ-मल्हार</p><p>और बादलों पर सवार</p><p>मेरा मन।</p><p>ठंडी बयार हिलोरती</p><p>ज़ंग लगी यादों की पतीली को,</p><p>बूंदे गिर-गिर कर </p><p>चमका देती उन यादों को</p><p>जो सर्दी के मौसम में</p><p>दफन हो चुकीं थीं लिहाफ़ में</p><p>और गर्मी में </p><p>बह चुकी थीं पसीने संग,</p><p>गरजते-लरजते बादलों ने </p><p>जैसे फिर हटाया हो</p><p>वो लिहाफ़।</p><p>चमकती दामिनी की </p><p>फ्लैश लाईट चमका रही</p><p>उन उनींदी, अलसायी </p><p>यादों को...</p><p>फिर ताज़ा कर दिया</p><p>पानी से धुली पत्तियों की तरह</p><p>फिर झूमने लगीं </p><p>घूमने लगीं</p><p>मन-मस्तिष्क को</p><p>झिंझोड़ने लगीं..</p><p>सच है,</p><p>बदल देता है मिजाज़</p><p>ये बारिश का पानी..</p><p>गर्म चाय से उड़ते धुएं में</p><p>बनती हुई इक तस्वीर</p><p>मीठे घूँट की तरह </p><p>सहलाती हुई सी </p><p>मानो अंदर उतर रही।</p><p>काली बदली बरस रही ऐसे</p><p>कि छाते का उलट जाना</p><p>याद आने लगा।</p><p>भीगते परिंदों में</p><p>खुद को देखते हुये</p><p>यादों को मैने समेटा,लपेटा</p><p>आँखों से शुक्रिया कहा</p><p>अपनी बरसात के साथ</p><p>इस बरसात को।</p><p>- रोली</p><p><br /></p><p><br /></p><p><br /></p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-17409427727033174652021-05-10T11:03:00.004-07:002021-05-10T11:11:08.321-07:00कहाँ तुम चली गयी.....<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKrjdTAtLkBaOvipvFlnYqqQS5HCh1kgUnTD46DR9WKczgJS9RB4IvaEf6y6Zqxr6Ah53l1Sp6UNgse7M56xEFYh_QgCjcLDqeF7Uv2tP65i5sgP7keR5-l0wP5s9EQY1Wcl6Mn184IBM/s960/FB_IMG_1620209278914.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="960" data-original-width="960" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjKrjdTAtLkBaOvipvFlnYqqQS5HCh1kgUnTD46DR9WKczgJS9RB4IvaEf6y6Zqxr6Ah53l1Sp6UNgse7M56xEFYh_QgCjcLDqeF7Uv2tP65i5sgP7keR5-l0wP5s9EQY1Wcl6Mn184IBM/w400-h400/FB_IMG_1620209278914.jpg" width="400" /></a></div><br /> 7 अप्रैल 2021<p></p><p>वो उड़ना जानती थी, पंख नहीं थे तो क्या, उसने आसमान में उड़ना सीखा। फ्लाइंग क्लब जॉइन करके आसमान की ऊंचाइयों को छुआ फिर वहीं उसे जीवनसाथी मिल गया और वो ज़मीन पर उतर आई। बेहद खूबसूरत, खुशमिजाज़, बिंदास, प्यारी, हँसमुख, पक्की सिखणी। बरसों पहले जब मैं पहली बार उसे मिली थी तब वो बला की खूबसूरत थी, एकदम स्टाइलिश। कम बोल रही थी, एकदम हाई-फाई लगी लेकिन अगली कुछ मुलाकातों में पाया कि वो बहुत ही सिम्पल और हम जैसी ही थी। उसे जानवरों से बेइंतहां प्यार था, इतना कि एक दिन उसके घर अपने पैर के पास एक छिपकली को देख कर मैं चीखी - झाड़ू लाओ, मारो इसे। वो उठी, डस्टिंग वाला कपड़ा लाई और छिपकली के ऊपर डाला, उसे पकड़ कर बाहर रख आई और बोली - ''क्यों मारो ! उस बेचारी ने तेरा क्या बिगाड़ा था !''</p><p>उसके घर कुत्ता, मछलियां, तोते सब हैं।</p><p>बाहर की चिड़ियों के लिये दाना-पानी, गली के कुत्तों के लिये रोज शाम को खाना देना, नंदिनी गौ शाला में जा कर गायों की खोज खबर लेते रहना, लॉकडाउन में सड़क के जानवरों के लिए उसने खूब दाना-पानी दिया..यह सब उसकी दिनचर्या में शामिल था।</p><p>उसके दोस्त उसके दिल के धड़कन थे। चुनिन्दा दोस्त थे। उसका पसन्दीदा काम था - पार्टी । किसी बहाने बस फ्रेंड्स इकट्ठा हों, मस्ती करें, सुख-दुःख बांटें । </p><p>सबसे ज्यादा डरती थी वो कोरोना से। हम सहेलियाँ मिलते तो वो मास्क लगाकर चुपचाप बैठी रहती। भयानक खौफ़ था उसे कोरोना का। </p><p>25 अप्रैल को जब उसने बताया कि वो पॉजिटिव हो गई है, तब उसकी आवाज़ में छुपा डर मैं महसूस कर पा रही थी। हमने उसे बहुत समझाया, रोज उससे बात करते, उसे मेसेज करते। वो 5 दिन बाद अस्पताल पहुँच गई, फिर ऑक्सिजन लगी, फिर हाई फ्लो ऑक्सीजन फिर अचानक वेंटिलेटर।</p><p>मैं रोज उसे वीडियो कॉल करती। उसके ऑक्सीजन मास्क लगा रहता। वो आईसीयू के बिस्तर पर बैठी रहती और फटी-फटी आँखों से बस देखती रहती। मैं उसे कहती - तुम कुछ मत बोलो। बस सुनो - तुम जल्दी अच्छी हो जाओगी। घर आना है। हमें फिर मिलना है। </p><p>वो बस सुनती। सिर हिलाती।</p><p>कल 7 मई को सुबह 10.30 बजे से रात 10 बजे तक उसे एक के बाद एक 6 हार्ट अटैक आये। बेचारा दिल ही तो था, कितना झेल पाता.. और रात 10.30 बजे सबसे अविश्वसनीय और दिल दहलाने वाली खबर आई -</p><p>मनजीत नहीं रही।</p><p><br /></p><p>मनजीत, तुम्हारे गाने, तुम्हारी बातें, तुम्हारी दोस्ती, तुम्हारा प्यार और तुम हमेशा दिल मे रहोगे। तुम अपने पापा-मम्मी से मिल कर खुश होगी लेकिन तुम्हारी दोनों बेटियों ने कितनी जल्दी अपनी प्यारी माँ को खो दिया, वो तो आखरी वक़्त तुम्हें देख भी नहीं पायीं, ऑस्ट्रेलिया से आ ही नहीं पायीं लेकिन हम भी तो नहीं मिल पाए, आज तुम अस्पताल के एक बिस्तर पर पॉलीथिन में कैद हो और हम सब अपने अपने घर में अपनी बेबसी पर रो रहे हैं।</p><p>तुम्हारा ब्रूनो गेट पर उदास बैठा है, तोते पिंजरे में शोर मचा रहे हैं, मछलियाँ एक्वेरियम में बेचैन हैं कि मानो वो भी जान गए कि अब तुम नहीं हो।</p><p>बस कुछ घंटे और.... फिर तुम आज़ाद हो जाओगी, उन्मुक्त गगन में। </p><p>ईश्वर तुम्हारी बेचैन आत्मा को शांति दें।</p><p>🙏</p><p><br /></p><p>- रोली</p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-48359847286812874462020-12-07T04:56:00.003-08:002020-12-07T04:56:37.779-08:00फ़र्क<p><br /></p><p>पीरियड्स का दूसरा दिन था, नेहा सुबह से भुनभुना रही थी - </p><p>"कोई चीज़ जगह पर नहीं है, कहीं जूते पड़े हैं कहीं मोजे, कहीं कपड़े बिखरे हुए हैं, घर बिल्कुल कबाड़खाना बना रखा है।"</p><p>नेहा की बड़ी बेटी आर्या ने छोटी बहन पूर्वा को देखा और मुस्कुरा दी।</p><p>इतने में काम वाली बाई आ गई।</p><p>"कमला, ये कोई टाइम है आने का..!!! आजकल रोज लेट आ रही हो, काम-वाम करना है या नहीं..!!"</p><p>कमला बिना जवाब दिए चुपचाप डस्टिंग का कपड़ा उठा कर सफाई में जुट गई।</p><p>नेहा फिर भी भुनभुनाती रही। आर्या ने चाय बनाई और नेहा के पास आ कर प्यार से बोली - "मम्मा, मूड स्विंग न..!" </p><p>"हाँ बच्चा, सेकंड डे है न, बस इसीलिए।"</p><p>चाय पी के कुछ देर आराम कर के नेहा फिर सामान्य हो गयी।</p><p>"कमला, कहाँ हो !! ऊपर पूजा वाले कमरे में अच्छे से झाड़ू-पोंछा कर लेना।"</p><p>"दीदी, तीन दिन बाद कर दूँगी। अभी नहीं कर सकती।"</p><p>नेहा चुप हो गई। एकदम चुप।</p><p><br /></p><p><br /></p><p>- रोली पाठक</p>रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-75033599987302558262020-06-28T10:31:00.001-07:002020-06-28T10:33:28.204-07:00वादा न निभाने का दुष्परिणाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
25 अप्रैल 2015 को नेपाल में अचानक धरती हिलने लगी, लोग घबरा गए, बड़ी-बड़ी इमारतें व मकान ताश के पत्तों की तरह ढहने लगे।<br />
यह भूकम्प था जिसे रिक्टर पैमाने पर 7.8 व 8.1 तीव्रता का मापा गया जिसने पूरे नेपाल में लगभग 5 दिन तक भारी तबाही मचाई, तकरीबन 9000 लोग मारे गए और 22000 लोग घायल हुए। सैलानियों का स्वर्ग नेपाल उजड़ गया। ललितपुर, भक्तपुर, पाटन जैसे खूबसूरत ऐतिहासिक शहर बर्बाद हो गए।<br />
चारों तरफ मलबा और चीख-पुकार थी। हमारा देश भारत, जिससे नेपाल के मधुर संबंध रहे हैं, उसने नेपाल को इस प्राकृतिक आपदा में सांत्वना दी और वादा किया कि वह नेपाल को पुनः खड़ा करेगा।<br />
दिन गुज़रने लगे, भारत अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया, उधर नेपाल कराह रहा था। लोगों के घर, आजीविका के साधन, पर्यटन सब उजड़ गया था, ऐसे में दूसरे पड़ोसी चीन ने उसका हाथ थामा और साधन-संपन्न चीन ने साल भर में नेपाल की ऐतिहासिक धरोहरों को पुनर्जीवित कर दिया, चमचमाती सड़कें और सुंदर इमारतों का पुनर्निर्माण कर नेपाल के लोगों का दिल जीत लिया। यह चीन की सिर्फ हमदर्दी नहीं थी, कुटिल चाल भी थी। नेपालवासियों को उनका नेपाल लौटा कर चीन उनकी नज़रों में श्रेष्ठ बन गया।<br />
अब बारी थी नेपाल की दोस्ती निभाने की। जब चीन ने डोकलाम से घुसपैठ आरम्भ की तभी नेपाल से मदद मांगी कि वह अपनी सीमा से भारत को परेशान करे, इधर हमेशा का दुश्मन पाकिस्तान तो सदैव ही छोटे-मोटे हमलों के लिये तैयार रहता है। वह भी एलओसी का आये दिन उल्लंघन करता रहा।<br />
भारत तीन तरफा मार झेल रहा है, साथ में उसका कोरोना वायरस से भीषण युद्ध भी चल रहा है, कुल मिला कर स्थिति प्रतिकूल है। सार यह है कि लगभग 150 करोड़ का विशाल देश यदि अपने पड़ोसी छोटे से देश को सहायता करने का आश्वासन दे तो उसे पूरा भी करे अन्यथा दुश्मन के साथ दोस्त मिल जाये तो वह भी दुश्मन हो जाता है।<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-78637506692847164022020-06-04T22:53:00.000-07:002020-06-04T22:54:28.718-07:00एक सार्थक विश्व पर्यावरण दिवस।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfsgGWIGXcEkUIVBUXr0Poh3KIf8HeIVbHRxS-TPb4F5mW3p05AxHQi9IM5IObviA7Zi40rCAmp9fIPUiFYPzAwVtvD8vEokULwaCB20lVrKIUeuVWP5oHsERQxZPhXQuxNZHcXpKsNE0/s1600/images+%25282%2529.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="480" data-original-width="640" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjfsgGWIGXcEkUIVBUXr0Poh3KIf8HeIVbHRxS-TPb4F5mW3p05AxHQi9IM5IObviA7Zi40rCAmp9fIPUiFYPzAwVtvD8vEokULwaCB20lVrKIUeuVWP5oHsERQxZPhXQuxNZHcXpKsNE0/s320/images+%25282%2529.jpeg" width="320" /></a></div>
इस बार दशकों बाद देश में यह दिवस मनाना सार्थक होगा।<br />
प्रदूषण रहित हवा, ध्वनि रहित वातावरण, कचरे से मुक्त जलाशय, कलकल बहती पारदर्शी नदियाँ, उन्मुक्त स्वच्छ गगन में कलरव करते पंछी। पर्यावरण के जानकार बताते हैं कि लॉकडाउन ने शहरों की हवा हिमालय की तराई सी स्वच्छ व प्रदूषण रहित कर दी है। कोयल की कूक से ले कर विभिन्न पक्षियों का कलरव, उनकी मीठी बोली सुबह हमें नींद से जगाती है। न धूल है न धुआं, न गाड़ियों का शोर।<br />
जिस कोरोना वायरस से समूचा विश्व लड़ रहा है, डर रहा है वही प्रकृति के लिये वरदान साबित हुआ। बीते 3 महीनों की हमारी जीवन शैली मजबूरीवश ही ऐसी थी कि किसी ने प्रकृति का कोई अहित नहीं किया किन्तु अनलॉक आरंभ होने के साथ फिर सड़कों पर वाहन दौड़ने लगे हैं। चिमनियां फिर धुंआ उगलेंगी, कारखानों का कचरा फिर नालों के जरिये नदियों को दूषित करेगा।<br />
जीव-जंतु, पशु-पक्षी फिर सहम जाएंगे।<br />
जीवन की रफ्तार आवश्यक है, किंतु उस रफ्तार में जीवन हो इसके लिए पर्यावरण सरंक्षण, जल संरक्षण बेहद ज़रूरी है।<br />
क्या करें कि जीवन भी चलता रहे, पर्यावरण भी सुरक्षित रहे!!!<br />
बहुत सी आदतें बदलनी होंगी हमें।<br />
1. वृक्ष लगाएं। जब भी, जहाँ भी संभव हो, पौधा लगाएं, उसकी देखभाल करें।<br />
2. प्लास्टिक/पॉलीथिन का उपयोग बंद करें।<br />
3. डिस्पोज़बल बर्तनों से दूरी बनाएं। ढेरों विकल्प हैं - कुल्हड़, पत्तल, दोने इत्यादि।<br />
4. छोटी-छोटी दूरियों के लिए वाहन न निकालें। साइकल या पैदल चलना स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।<br />
5. वाहन चलाते समय बार-बार हॉर्न बजाना अधीरता की निशानी है, संयमित चालक की तरह पेश आएं इससे ध्वनि प्रदूषण घटेगा।<br />
6. जल अनमोल है। हमारे पास सहजता से उपलब्ध है, जिनके पास नहीं है वे एक मटका भरने के लिए 10 से 20 किलोमीटर तक पैदल आते-जाते हैं। इसे व्यर्थ न गंवाएं।<br />
7. आजकल RO घर-घर में है, जिसकी मशीन एक ओर पानी साफ करती है वहीं दूसरे पाइप से दूषित पानी निकालती है, जो घरों में अक्सर किचन के वाशबेसिन में बहता रहता है, उस पाइप को किसी बाल्टी में डाल दें, वह पानी पोंछा लगाने, कपड़े धोने, बर्तन धोने आदि काम मे आएगा।<br />
<br />
कोविड 19 के कारण वर्षों बाद हमें स्वच्छ वातावरण और प्रदूषण रहित पर्यावरण बिना कुछ किये उपहार में मिला है, इसे सहेज कर रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। जो हम प्रकृति को देंगे, वह हमें वही लौटायेगी।<br />
- रोली पाठक<br />
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रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-81045989364665434742020-04-21T22:50:00.002-07:002020-04-21T22:50:59.485-07:00विश्व पृथ्वी दिवस<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbFiPUwTXgMgonrKUqPd6-SXJwHn5KwB1yyDJPJNzO3z3bv8hDcywSZfcV1tv9rO7RcycfcoewhdWDiA2pHWQbDy_o_5UoFlVTZ9gc-Kcj4nOIoigVYbLtouX8ZEBEKrDp0jOwAIG2kG4/s1600/images.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="415" data-original-width="739" height="179" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbFiPUwTXgMgonrKUqPd6-SXJwHn5KwB1yyDJPJNzO3z3bv8hDcywSZfcV1tv9rO7RcycfcoewhdWDiA2pHWQbDy_o_5UoFlVTZ9gc-Kcj4nOIoigVYbLtouX8ZEBEKrDp0jOwAIG2kG4/s320/images.jpeg" width="320" /></a></div>
आज विश्व पृथ्वी दिवस है। इसे पहली बार अप्रैल 1970 में इस उद्देश्य से मनाया गया था ताकि लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके।<br />
वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते लगभग पूरे विश्व में सन्नाटा है। सड़कें सूनी हैं, धुंआ उगलती चिमनियां शांत हैं, छोटे-बड़े कारखानों, मिलों की मशीन स्थिर हैं। अरबों-खरबों के इस नुकसान के बीच यदि कोई मुस्कुरा रहा है तो वह है - पर्यावरण। प्रदूषण का स्तर पैमाने में बहुत नीचे आ चुका है। भयानक प्रदूषित शहरों में शुमार दिल्ली जैसी जगहों की फ़िज़ां मुस्कुरा रही है। अनेक शहरों में सड़कों पर मोर नाचते व बंदर धमाचौकड़ी करते दिख रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में कंगारू शहर के अंदर आ गए हैं, कहीं पेंग्विन्स पंक्तिबद्ध हो फुटपाथ पर चलती दिखाई दे रही हैं। आबोहवा इतनी साफ हुई कि जालंधर से हिमालय दिखने लगा।<br />
यह नतीजा है इंसान के घर मे रहने का। प्रदूषण अत्यंत कम होने के कारण पंछियों का कलरव, कोयल की कूक सारा दिन सुनी जा सकती है।<br />
वायु में वाकई प्राण आ गए हैं।<br />
कोरोना के भीषण संकट का यह एक विचित्र सुखद पहलू है जिससे पशु-पक्षी आनंदित हैं।<br />
पृथ्वी के प्रदूषण से बंद रोमछिद्र खुल गए हैं, वह सांस ले रही है।<br />
स्वच्छ नदियां कलकल करती बह रहीं हैं। प्रदूषित गंगा का करोड़ों का स्वच्छता अभियान वो न कर सका जो लॉक डाउन ने कर दिखाया। यह इसका सबसे सकारात्मक पहलू है।<br />
कोरोना संकट की समाप्ति के पश्चात समूचे विश्व में हर हफ्ते एक दिन का लॉक डाउन अनिवार्य करना चाहिये जिससे धरती-आकाश भी सांस ले सकें।<br />
आज 'अर्थ डे' पर पृथ्वी मुस्कुरा रही होगी क्योंकि इतने वर्षों में आज अर्थ डे सार्थक हुआ है ।<br />
<br />
- रोली</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-73121349720934114352020-03-07T21:22:00.000-08:002020-03-07T21:26:10.844-08:00बराबर रहें..साथ रहें..<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
विश्व महिला दिवस की सभी सखियों को अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं।<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgXLOlQ8cAAuBVxDCtrayjz8eOOiAUbFqkOZhyHX05pqcFENdv0bQhPVNfKn_LV7lySVmvMTi2o-jBBTox_AZd1X1-HnhYn7XS5jC6tSPkwDsWdMZ1Yw9BZmEnfz-iXk3-hRQ0hd4qXS4/s1600/images.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="452" data-original-width="678" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgXLOlQ8cAAuBVxDCtrayjz8eOOiAUbFqkOZhyHX05pqcFENdv0bQhPVNfKn_LV7lySVmvMTi2o-jBBTox_AZd1X1-HnhYn7XS5jC6tSPkwDsWdMZ1Yw9BZmEnfz-iXk3-hRQ0hd4qXS4/s320/images.jpeg" width="320" /></a></div>
हमारा दिन तो रोज ही होता है, आज का दिन बस उस रोज में से कुछ लम्हे चुरा कर उसे सेलिब्रेट करने का है, अंतर्मन में झांकने का कि - मैं जो भी कर रही हूँ, वह ठीक है न! सही है न!<br />
आज का दिन वह है कि जो साल भर हमने घर, परिवार, समाज को दिया है, उनके लिए हमें पुरुस्कृत किया जाये।<br />
आज पुरुष हमें मंच पर सम्मानित करते हैं,अहसास दिलाते हैं कि तुम कम नहीं, बराबर हो बल्कि कई बार हमसे बढ़ कर हो।<br />
जब पुरुष नारी का सम्मान करते हैं तब उनके बीच विश्वास बढ़ता है, नारी की शक्ति बढ़ती है और पुरुष की ज़िम्मेदारी।<br />
दबी,कुचली, रोती, सिसकती, लाचार नारी को अब अक्सर पुरुष ही सहारा दे कर उसे शक्ति का अहसास कराते हैं। उसके आँसू पोंछ कर उसका मनोबल बढ़ाते हैं।<br />
समय बदल रहा है, कुरीतियाँ पूरी तरह समाप्त होने में सदियां लगती हैं किंतु आगाज़ हो चुका है एक ऐसे समाज का जहाँ शिक्षा व नई और खुली सोच ने पुरुष को आगे बढ़ाया है कि वह महिलाओं को उनके अधिकार बताये, उनकी शक्ति का अहसास कराए व एक नए समाज के निर्माण में स्त्री को बराबरी पर रखे। माना कि अभी इस तरह का आँकड़ा बहुत कम है किंतु यह अच्छी शुरुआत है। एक दूजे के पूरक स्त्री व पुरुष जब एक दूसरे के कद को, व्यक्तित्व को बराबर समझेंगे, तब एक नवीन, भयमुक्त समाज का निर्माण होगा। वर्तमान में कानून ने स्त्रियों को बहुत से अधिकार दिए हैं, बस, हम उनका उपयोग करें, दुरुपयोग नहीं।<br />
कोई भी क्षेत्र आज हमारी उपस्थिती से अछूता नहीं, हम अपनी गरिमा, मर्यादा व सम्मान यूँ ही बनाये रखें।<br />
दिन भले ही हमारा है किंतु साथ पुरुष का भी हो तो कहीं भी सफलता का परचम लहराया जा सकता है।<br />
तो बिना लैंगिक भेदभाव के, एक दूजे के साथ हर रोज महिला दिवस मनाइए ।<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-68529177326992879952020-03-04T02:17:00.000-08:002020-03-04T02:29:12.412-08:00मंच के साथ मन में भी सम्मान दें...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
8 मार्च को विश्व महिला दिवस के ठीक पहले नारी प्रधान फ़िल्म थप्पड़ आयी।<br />
धीमी गति की इस फ़िल्म में एक स्पष्ट संदेश है कि - यदि पुरूष अपनी पत्नी की इज़्ज़त नहीं करेगा तो लाख सुख-सुविधायें व प्रेम भी उसे अस्वीकार्य है।<br />
फ़िल्म में अनेक सशक्त महिला किरदारों के अलावा घरेलू काम-काज करने वाली महिला का ज़मीर भी पति के अधीन बताया गया है। एक सफल व समर्पित गृहिणी को भरी पार्टी में पति थप्पड़ मारता है और उसके लिए उसे कोई मलाल भी नहीं क्योंकि उसने नौकरी के तनाव व गुस्से के चलते वह थप्पड़ जड़ दिया था। इसी एक थप्पड़ ने नायिका का वज़ूद ही बदल दिया।<br />
हमारे समाज में आज भी महिलाओं पर हाथ उठाने का अधिकार पुरुषों को ही प्राप्त है।<br />
अनेक भावात्मक उतार चढ़ाव से गुजरती इस फ़िल्म में भी यही संदेश है कि - हे नारी, जहाँ तुम्हारा सम्मान नहीं, वह जगह तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं।<br />
फ़िल्म के दो महिला किरदार, नायिका की माँ व सास रूढ़िवादी हैं परम्पराग्रस्त हैं। उनके अनुसार गृहस्थ जीवन में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं ऐसे में यदि पति ने हाथ उठा दिया तो बात न बढ़ाते हुए, उसे भुला कर अपनी गृहस्थी पुनः संभालनी चाहिए।<br />
एक गृहिणी अपने परिवार के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती है। जन्म से ले कर 20-25 वर्ष तक जिस घर में रहती है, जहाँ उसका एक कमरा होता है, उसकी अलमारी, उसकी चीजें, उसकी यादें, उसकी भावनाएं एवं तमाम रिश्ते जिन्हें वह विवाह के बाद छोड़ कर एक पराए घर को अपनाने ख़ुशी-ख़ुशी विदा हो जाती है।<br />
एक नए घर को अपना कर, वहाँ के सदस्यों को अपना कर, नये रिश्तों में बंध कर अपनी नई दुनिया सजाती है, जहाँ सबसे करीब व विश्वासपात्र होता है - उसका जीवनसाथी। जिसके लिये वह अपना सब कुछ त्याग कर, हर कीमत पर उससे प्यार व सम्मान पाना चाहती है और वही उसे बेइज़्ज़त कर दे तब...!!!<br />
इन दिनों टीवी पर एक विज्ञापन आ रहा है जिसमे आमंत्रित अतिथि यह जान कर अचंभित हैं कि उस घर मे लड़की की माँ भी साथ रहती है, ऐसे में वह माँ कहती है - जब लड़के की माँ साथ रह सकती है तो लड़की की माँ क्यों नहीं!!! यह निश्चित ही बदलते परिवेश व नारी के अधिकार क्षेत्र के विस्तार होने का सूचक है।<br />
महिला दिवस पर अनेक सामाजिक संगठन ढूंढ-ढूंढ कर उन महिलाओं का सम्मान करते हैं जिन्होंने समाज के लिए कोई योगदान दिया।<br />
एक गृहिणी को मैंने कभी यह सम्मान मिलते नहीं देखा, क्यों...? न ही किसी काम वाली बाई को, जिसके बगैर किसी भी हाई सोसायटी की महिला से ले कर मध्यमवर्गीय महिला का भी जीवन दूभर है।<br />
हर महिला अपने आप मे महत्वपूर्ण है। काम वाली बाई भी, क्योंकि उसके बिना सारे काम रुक जाते हैं, एक गृहिणी की वर्सेटाइल पर्सनालिटी होती है, कभी वह कुक है, कभी लॉन्ड्री पर्सन, कभी ड्राइवर है तो कभी टीचर, कभी इंटीरियर डेकोरेटर है तो कभी मैनेजर। हर रिश्ते को निभाने का हुनर उसके पास है। शहर में महिलाएं आधुनिक परिधान में बैंक की लाइन से ले कर पेरेंट्स टीचर मीट में चुस्ती से भाग लेती दिखाई देंगी तो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं हर मौसम में खेतों में फसल बोती व काटती दिखेंगी। गाय-भैंस के खली, भूसे, चारे, दूध दुहने व गोबर के कंडों को संभालती दिखेंगी व साथ ही सुबह-शाम चौके में भोजन बनाती भी मिलेंगी। ऐसा मैनेजमेंट भला दुनिया के किस मैनेजमेंट स्कूल में सिखाया जा सकता है!!<br />
इन सब के बावजूद उनका वज़ूद आज भी समाज में दोयम दर्जे का ही है।<br />
उसे थप्पड़ मारने का अधिकार आज भी पुरुष के पास सुरक्षित है। पुरुष के पास तर्क है कि - उसका मूड ख़राब था, वह नाराज था, वह दिन भर ऑफिस में अपने परिवार के लिए ही तो अपने अफ़सर की तमाम बातें सुनता है, वह सुबह से शाम तक अनेक मानसिक उलझनों में उलझ कर तनावग्रस्त हो जाता है, अगर ऐसे में उसने थप्पड़ मार दिया तो क्या हुआ!!!<br />
महिला को उसे भुला कर मूव ऑन करना चाहिए क्योंकि पुरूष सब कुछ झेल रहा है।<br />
सार यह नहीं कि महिलाएं पुरुषों से श्रेष्ठ हैं व पुरुष क्रूर या ख़राब हैं, सार यह है कि - क्यों नहीं समाज महिला की समान भागीदारी स्वीकारता? महिला बॉस हो तो पुरुष का पुरुषत्व आहत होता है। महिला किसी क्षेत्र में उससे आगे निकल जाए तो उसे बर्दाश्त नहीं। क्यों?<br />
अगर वह तनावग्रस्त है तो उसे हक़ है कि वह अपनी भड़ास घर की महिला पर निकाल सके। जब प्रेम करने का उसका मन हो तब उसे पत्नी का समर्पण चाहिए। जब उसे दुख हो तो उसे पत्नी की सांत्वना चाहिए। जब वह विजयी हो तो पत्नी भी जश्न मनाये। क्यों ?<br />
जब दोनों एक दूसरे के पूरक हैं तब यह भेदभाव क्यों? पत्नी का मूड ऑफ है और वह खाना न बनाए, चुपचाप एक कोने में आँखें बंद कर के बैठी रहे, यह सम्भव है? वह तनावग्रस्त हो तो घर के सारे काम छोड़ कर अपने कमरे में बिस्तर पर चुपचाप लेटी रहे, यह सम्भव है ? नहीं।<br />
उसकी मनःस्थिति कैसी भी हो, सुबह की चाय से ले कर रात को सिरहाने पानी रखने तक सारे काम वह चुपचाप करती है।<br />
क्या पुरूष ऐसा कर सकते हैं? नहीं।<br />
महिला व पुरुष के बीच का यह अंतर कभी खत्म नहीं हो सकता। हाँ, यह अवश्य है कि जीवन शैली आधुनिक हो रही है किन्तु विचार अब भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हैं।<br />
महिला दिवस के इस एक दिन पुरुष महिलाओं का मंच पर सम्मान करेंगे, भाषण देंगे, उनकी खूबियां गिनाएंगे, शॉल-श्री फल से अभिनंदन करेंगे और अगले दिन फिर वही दिनचर्या । हो सकता है ऐसे ही किसी पुरुष का मूड ऑफ हो, वह तनाव में हो, गुस्से में हो और उसके पास देने के लिए अंत में फिर रहेगा वही - थप्पड़।<br />
विश्व महिला दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं।<br />
सोच बदलिए, मंच पर सम्मानित न भी करें किन्तु मन मे नारी के प्रति सम्मान भाव रखिये।<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-27901386567922911522020-02-08T23:48:00.003-08:002020-02-08T23:48:53.080-08:00सरकार के कर्तव्य<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुफ्तखोरी ।<br />
यह शब्द दिल्ली चुनाव में कई लोगों ने अनेक बार कहा।<br />
अपने देश-प्रदेशवासियों को मुफ्त गुणवत्ता शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना मुफ्तखोरी नहीं कहलाती। वह भी तब जब जनता से इन सेवाओं के लिए अतिरिक्त कर न वसूले जाएं।<br />
मितव्ययिता से चल कर यदि कोई सरकार अपनी जनता को कोई सुविधा मुफ्त उपलब्ध कराती है तो यह मुफ्तखोरी जैसे शब्द से परे है।<br />
क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर में 43 ऐसे देश हैं जो अपने नागरिकों को व कुछ देश तो विदेशियों को भी लगभग मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं देते हैं, इनमें सबसे पहला नाम नॉर्वे का है, जो सम्पूर्ण विश्व में सबसे स्वस्थ देश माना जाता है। इसके अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, ब्रूनेई, फिनलैंड, ग्रीस, पुर्तगाल, सिंगापुर, स्वीडन जैसे 43 देश हैं, जहाँ उनके नागरिकों को लगभग मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं ।<br />
अब मुफ्त शिक्षा की बात की जाए तो बहुत सारे देश अपने नागरिकों को व कुछ देश विदेशियों को भी मुफ्त शिक्षा उपलब्ध कराते हैं।<br />
कुछ देशों में आरम्भ से उच्च् शिक्षा तक मुफ्त है व अनेक देशों में अलग अलग स्तर पर। कोई आरंभिक शिक्षा मुफ्त देते हैं, कोई उच्च् शिक्षा।<br />
इनमें से प्रमुख हैं - फ्रांस, माल्टा, जर्मनी, ब्राज़ील, फिजी, स्कॉटलैंड, ईरान, श्रीलंका ।<br />
तुर्किस्तान ऐसा देश है जो अपने नागरिकों को बिजली व गैस मुफ्त देता है।<br />
आयरलैंड व तुर्किस्तान अपने नागरिकों को पानी मुफ्त मुहैया कराती हैं।<br />
इन देशों की सरकारें अपने नागरिकों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा व सुविधाओं का पूरा ख्याल रखती हैं। इसे मुफ्तखोरी नहीं, जनता द्वारा चुनी गई सरकार का कर्तव्य कहते हैं।<br />
हमारे देश भारत में समर्थ लोग अपने बच्चों को सरकारी विद्यालयों की जगह प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में भेजना पसंद करते हैं, कारण - शिक्षा की गुणवत्ता, अनुशासन, साफ-सफाई, सुरक्षा, तकनीकी रूप से समृद्ध, विकसित लैबोरेटरी और शिक्षकों की उपस्थिति मुख्य हैं ।<br />
सरकारी स्कूल इन मापदंडों पर खरे नहीं उतरते ।<br />
यह सरकार की नाकामयाबी है। आज देश के शहरों व गांवों में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए प्राइवेट स्कूल व कॉलेजों का यही कारण है।<br />
सरकार को चाहिए कि देश के सरकारी अस्पतालों व सभी शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता पर ध्यान दे ताकि आम आदमी स्वस्थ व शिक्षित हो ।<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-19234523667984488192019-12-03T08:17:00.002-08:002019-12-03T08:17:38.236-08:00पुकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
न जलाओ दोबारा<br />
इस जली देह को,<br />
होता है दर्द<br />
यूँ बार बार जलने में,<br />
अब तो तपती हूँ मैं,<br />
लौ से भी मोमबत्ती की,<br />
सिहर जाती हूँ<br />
कर्कश आवाज़ों से,<br />
जो चीखते हो तुम<br />
मेरे न्याय के लिए,<br />
न होता है कुछ<br />
न मिलता है कुछ<br />
बस, बढ़ता ही जाता है<br />
देह का दर्द।<br />
कल दूसरी थी,<br />
आज हूँ मैं,<br />
कल फिर दूसरी होगी<br />
क्या थमेगा यह सिलसिला कभी!!!<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-21920869944746835222019-12-02T23:00:00.000-08:002019-12-02T23:00:01.238-08:00न हो भयभीत, लड़ो...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
उस जली हुई बेटी की देह को जब पिता अंतिम संस्कार के लिए अग्नि देने लगे तो वह बोल उठी<br />
- 'पापा, दोबारा मत जलाइए, बहुत दर्द होता है।'<br />
प्रियंका, खूबसूरत, प्रतिभाशाली, भावुक, भावुक इसलिए कि वह बेज़ुबान जानवरों की तकलीफ समझती थी, समाज से भयभीत, भयभीत इसलिए कि अपनी बहन को अंतिम शब्द यही थे उसके कि मुझे डर लग रहा है, आँखों में भविष्य के अनगिनत सुनहरे सपने होंगें, ऐसी लड़की को चार अनपढ़, नशेलची, आवारा किस्म के लोगों ने अपनी हवस का शिकार बना कर जला कर फेंक दिया।<br />
माता-पिता, बहन उसके घर लौटने की राह देख रहे होंगे, माँ ने रोज की तरह उसका भी खाना बनाया होगा, बहन ने आखरी बार बात कर के उसे हौसला दिया था, लेकिन मन में शंका आ गयी थी किसी अनहोनी की, क्योंकि उसने अपना भय व्यक्त कर दिया था कि उसे डर लग रहा है वहाँ मौजूद लोगों से।<br />
इस दर्दनाक हादसे के बाद पूरे देश में आक्रोश पनपा, धरने,प्रदर्शन, नेताओं के बयान आने लगे, मोमबत्तियां जल जल कर पिघलने लगीं। हत्यारों को तुरन्त सज़ा व मृत्युदंड की आवाज़ चारों ओर से उठी। तभी एक निर्णय आया दिल्ली की एक अदालत से कि 2012 में हुए निर्भया कांड के आरोपी का डेथ वारंट निरस्त हुआ।<br />
हैरानी की बात थी, सब 3 दिन पहले जलाई गई बेटी के न्याय के लिये चीख रहे थे और न्याय की देवी ने आँखों पर पट्टी बाँध बरसों पहले ऐसे ही क्रूर हादसे की शिकार निर्भया को फिर न्याय से वंचित कर दिया।<br />
तेलंगाना के गृह मंत्री ने कहा कि - ''प्रियंका पढ़ी लिखी लड़की थी, उसे बहन की जगह पुलिस को फोन करना था।" इस बयान की खूब धज्जियां उड़ाई गयीं, खूब कोसा गया, यहाँ तक कि गृह मंत्री को क्षमा याचना करनी पड़ी।<br />
एक बार सोचिये- उन्होंने क्या गलत कहा !!! ऐसी परिस्थितियों में जब किसी लड़की को डर लगे तब उसे पुलिस को ही फोन करना चाहिए।<br />
कैसी भी परिस्थिति हो, ठंडे दिमाग से सोच कर उसका सामना करना चाहिए क्योंकि जैसे ही डर हावी होता है दिमाग शून्य हो जाता है। यह कठिन अवश्य है किंतु जीवन रक्षा के लिये आवश्यक है।<br />
यह सच है कि ऐसी भयावह स्थिति में सबसे पहले घरवालों की ही सुध आती है किन्तु वे दूर होते हैं, तुरन्त कुछ नहीं कर सकते, गृह मंत्री जी ने बात तो सही की किन्तु कठोर शब्दों में कही, यदि वे कहते कि - प्रियंका को पुलिस को भी कॉल करना था, तब शायद उनके बयान की आलोचना न होती क्योंकि कोई भी लड़की मुसीबत में सबसे पहले घरवालों को ही याद करती है।<br />
सभी लड़कियों व महिलाओं को यह ठान लेना चाहिए कि कितनी भी कठिन परिस्थिति हो वे उससे लड़ेंगीं, पुलिस को कॉल करें, मोबाइल पर झूठे कॉल पर बात करें और यह दिखाएं कि आपका कोई अपना पास ही है और जल्दी ही आप तक पहुंच रहा है, ज़्यादा खतरा हो तो चीख-पुकार मचा दें, ज़बरदस्ती कुछ करने की स्थिति में हेयर पिन, सेफ्टी पिन, पेपर स्प्रे आदि का उपयोग करें, हमलावर पर पूरी शक्ति से हमला करें, उसके नाजुक अंगों पर प्रहार करें। ये सब उपाय एक हद तक कारगर हो सकते हैं। इन सब में जो सबसे बड़ी बात होगी वह होगी - आपकी हिम्मत।<br />
सरकार पर हमला करना,उसे कोसना, इस सबसे क्या हासिल होना है! हमारे अपने को तो हम खो चुके। ऐसे में आगे इस तरह की घटना से बचने के लिये महिलाओं को सजग व सतर्क रहना बहुत आवश्यक है।<br />
सरकार, पुलिस-प्रशासन को मुस्तैद रहने की आवश्यकता है। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगें, स्ट्रीट लाइट हर जगह हो, कहीं अंधेरा न हो। हर चौराहे पर साल भर और चौबीस घंटे पुलिसकर्मी तैनात हों। पुलिस हेल्पलाइन 100 व अन्य नम्बर हमेशा उपलब्ध हों। किसी भी आपातकालीन स्थिति में पुलिस तुरंत पहुँचे। क्षेत्राधिकार विवाद को त्याग कर हर पुलिस थाना महिलाओं सम्बंधित किसी भी रिपोर्ट पर तुरन्त एक्शन ले।<br />
आदतन अपराधियों, नशेलचियों पर लगाम कसे। सरकार को चाहिए कि पोर्न साइट्स पर तुरंत प्रतिबंध लगाए, साइबर सेल ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप्स पर कड़ी नजर रखे जो पोर्न क्लिपिंग्स शेयर करते हों।<br />
इसके अतिरिक्त बलात्कार के लिए सज़ा ऐसी तय हो जिसके बारे में सोच कर व्यक्ति की रूह कांप उठे जैसे सऊदी अरब, उत्तर कोरिया, मिस्र व मलेशिया में दी जाती है।<br />
सम्भवतः इस तरह हमारी बेटियाँ सुरक्षित रह सकें।<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-32472931622811490952019-09-19T00:48:00.000-07:002019-09-19T00:48:43.633-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पैर सिकोड़े,मोड़े हाथ<br />
सर्दियों में कोई नवजात<br />
धूप में लेटाने पर<br />
जैसे लेता खुल कर अंगड़ाई है<br />
वैसे ही हफ्तों बाद<br />
आज धूप आई है...<br />
<br />
पौधे जो खूब ऊब चुके थे<br />
बारिश में पूरा डूब चुके थे<br />
सुरमई मेघों के छंटने से<br />
सूरज के खुल कर हंसने से<br />
दे रहे खुश दिखाई हैं<br />
क्योंकि हफ्तों बाद<br />
आज धूप आयी है...<br />
<br />
मुंडेरों पर कपड़े सूख रहे<br />
दरवाज़े खिड़की खुल गए<br />
कमरे की सीलन सिमट रही<br />
हो रही घरों में सफाई है<br />
क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आई है...<br />
<br />
गद्दे भी थे गीले-गीले<br />
बिस्तर भी थे सीले-सीले<br />
बारिश के निशां दीवारों पर<br />
धब्बे जैसे काले-पीले<br />
सूरज की गर्मी से सबने<br />
अब कुछ राहत पायी है<br />
क्योंकि हफ्तों बाद<br />
आज धूप आई है...<br />
<br />
- रोली<br />
<div>
<br /></div>
</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-1945017926417724882019-09-13T22:41:00.001-07:002019-09-13T22:41:16.033-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
निराशा की जगह संभावनाएं तलाशें<br />
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किसी भी देश की प्रगति व् एकता के लिए एक राष्ट्रभाषा का होना आवश्यक है, जिसमे राजकार्य हो, बहुसंख्यक लोग एक-दूसरे से बातचीत में जिसका इस्तेमाल करें ।<br />
हिन्दी हमारे देश भारत में राज-काज की भाषा है । आज हमारी इस राष्ट्रभाषा की प्रतिद्वंदी भाषा है - अंग्रेजी । सरकारी कामकाज भले ही हिंदी में करने का व् होने का दम भरा जाता हो, किन्तु ऐसा होता नहीं है।<br />
पढाई का स्तर भी माध्यम से ही आँका जाता है, यदि बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ रहा है तो उच्च स्तर अन्यथा निम्न । अभिभावक भी मजबूर हैं, देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से व् ना केवल विदेशों में बल्कि अपने ही देश में अंग्रेजी भाषा का स्तरीय ज्ञान आवश्यक हो गया है ।<br />
किसी भी विदेशी ज्ञान का होना निंदनीय नहीं बल्कि यह तो अच्छी बात है किन्तु उस भाषा का गुलाम होना अनुचित है । वर्तमान में यह स्थिति है कि लोगों की हिंदी बोलचाल तक ही सीमित रह जाती है, यदि लिखना भी पड़े तो उसका स्तर बहुत ही निम्न होता है, वहीँ उनका अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उच्च कोटि का होता है । अपने ही देश में अपनी राष्ट्रभाषा से यह भेदभाव कष्टदायक है, इससे भी अधिक कष्टप्रद है हिंदी भाषा का बिगडा हुआ रूप - हिंगलिश ।<br />
इस नैराश्य वातावरण में भी ऐसे बहुत लोग मिलेंगे जो हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में सदैव जुटे रहते हैं । लोगों में अपनी मात्रभाषा के प्रति प्रेम की अलख जगाते रहते हैं । तकनीक जितनी अधिक विकसित हो रही है संभावनाएं भी उतनी ही बढ़ रही हैं । आज ना केवल कम्पूटर की बोर्ड हिंदी में आ रहा है, बल्कि ई-मेल आदि भी हिंदी में भेजे जा रहे हैं । मोबाइल फोन पर भी हिंदी के अक्षर पढ़े व् लिखे जा सकते हैं । इंटरनेट के जरिये ना केवल भारत देश में बल्कि सुदूर प्रवासी भारतीयों भी हिंदी भाषा लिखने-पढ़ने के प्रति रुझान बढ़ा है , संभवतः ये सकारात्मक संकेत हैं हिंदी के उज्जवल भविष्य के ।<br />
टीवी ने हिंदी को जन-जन तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है। समाचार, सीरियल्स, गीत-संगीत पर आधारित कार्यक्रमों ने जनमानस पर हिंदी के महत्व की छाप छोड़ी है ।<br />
सार यही है - किसी भी विदेशी भाषा का ज्ञान होना गलत नहीं, किन्तु अपनी मात्रभाषा का सम्मान ना करना गलत है । गलत व् टूटी-फूटी अंग्रेजी बोल कर किसी को प्रभावित करने से लाख गुना बेहतर है , शुद्ध व् स्तरीय हिंदी बोली जाये । अपनी मात्रभाषा का अधिकाधिक उपयोग हमें सदैव गौरान्वित करेगा व् विदेशों में भी सम्मान दिलाएगा । हिंदी का अधिकतम प्रचार-प्रसार करें ।<br />
हिंदी दिवस पर आप सभी को<br />
हार्दिक शुभकामनायें |<br />
💐<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-8279362894807768652019-08-08T09:40:00.000-07:002019-08-08T09:40:05.662-07:00क्यों बदहवास है पाकिस्तान !!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
अनुच्छेद 370 समाप्त करने का जितना असर भारत में नहीं हुआ उससे कहीं ज़्यादा पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आ रही है । आखिर क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना हुआ जा रहा है ! </div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कश्मीर हमारे देश का व्यक्तिगत मुद्दा है, क्यों पाकिस्तान इतना बौखलाया जा रहा है !</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आनन फानन में मीटिंग बुला कर निर्णय लिए कि -</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
भारत से सभी व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त किये जायें । </div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस रद्द की जाए एवं भारतीय फिल्मों को प्रतिबंधित किया जाए ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस के लिए कहा कि हमारे गार्ड व इंजिन ड्राइवर ट्रेन ले कर नहीं जा सकते, भारत अपना क्रू भेजे, ऐसे में वहाँ फंसे हुए भारतीय यात्रियों को वापस लाने के लिए समझौता एक्सप्रेस को वापस लाने के लिए भारत से हमारा क्रू वाघा बॉर्डर से अटारी रेलवे स्टेशन पहुँचा व समझौता एक्सप्रेस को वापस लाया गया । </div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
इस तरह की ओछी हरकतों से पाकिस्तान पूरे विश्व को अपनी कमजोरी दिखा रहा है। </div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पाकिस्तान ने हमेशा कहा कि भारत के राज्य कश्मीर में होने वाली गतिविधियों में उसका कभी कोई हाथ नहीं रहा जबकि आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान का हाथ होने के अनेक सबूत उसे अक्सर दिये जाते रहे लेकिन उसने यह बात कभी स्वीकार नहीं की किन्तु कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद उस देश की प्रतिक्रिया से साफ जाहिर है कि वह इस एक्शन से कितना बौखलाया हुआ है ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
370 के रहते पाकिस्तान ने कश्मीर में खूब मनमानी की, वहाँ के नौजवानों को बरगला कर उन्हें आतंकवादी बना कर भारतीय सेना के हजारों जवानों की हत्या की, कश्मीर के पंडितों पर जुल्म किये व उन्हें अपना घर-बार त्यागने पर मजबूर किया, इन्हीं सब कारणों से वहाँ विकास नहीं हो पाया, बेरोज़गारी बढ़ गयी, नौजवान अलगाववाद व आतंकवाद की राह में अग्रसर हो चले । पत्थरबाजों की टोलियों का जन्म हुआ और घाटी की अमन-शांति गोलियों व बमों की आवाजों में खो गयी ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पाकिस्तान की बौखलाहट इसीलिए है क्योंकि उसका कश्मीर के ज़रिए आतंकवाद फैलाने का सपना चूर-चूर हो गया । पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है लेकिन धारा 370 हटाने का गुस्सा उसने भारत से व्यापारिक संबंध खत्म करके निकाला, वह मुल्क यह भूल गया कि भारत उससे व्यापार करके उस पर अहसान कर रहा था न कि भारत को पाकिस्तान से व्यापार की ज़रूरत है ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
इस तरह के कदम उठा कर पाकिस्तान पूरे विश्व में खुद का मखौल उड़वा रहा है ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पाकिस्तान के इस नकारात्मक रवैये के कारण भारत के उच्चायुक्त अजय बिसारिया जी वापस भारत आ गए ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
पाकिस्तान की बौखलाहट यहाँ तक पहुंच चुकी है कि उनके एक मंत्री ने जंग छेड़ने की बात तक की । पाकिस्तान यह भूल जाता है कि वहाँ की अवाम को खाने के लाले पड़े हुए हैं ऐसे में वो किस मुँह से जंग की बात कर रहे हैं ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में जम्मू-कश्मीर व लद्दाख के विकास की बात की । उन्होंने अपने संभाषण में अनेक नवीन योजनाओं, रोज़गार व विकास का ज़िक्र किया । आईआईटी, आईआईएम, एम्स, सिंचाई, बिजली, एयरपोर्ट का आधुनिकीकरण, सड़क व रेल लाइन का विस्तार आदि मुद्दों पर चर्चा की । युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने व बेटियों की शिक्षा व अधिकार की बात की । उन्होंने यक़ीन दिलाया कि रिक्त सरकारी पदों पर भर्ती की प्रक्रिया तेज होगी।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
जिस कश्मीर से धारा 370 हटाई गई है, वहाँ अमन व शांति है । भारतीय सेना व सुरक्षा बल चाक-चौबंद हैं किन्तु सीमा पार हलचल मची हुई है, पाकिस्तान के इस रवैये से साफ जाहिर है कि वो कश्मीर में विकास नहीं चाहता था, वहाँ के भोलेभाले लोगों के बीच में आतंकवादियों को छुपा कर कश्मीर का चैन-ओ-अमन खत्म करना उसका मुख्य उद्देश्य था । जो आतंकवादी संगठन कश्मीर में पनाह ले वहाँ से देश भर में दहशतगर्दी फैलाते थे, अब उनकी नाकामी पाकिस्तान के बर्दाश्त के बाहर है, इसीलिए वह बौखलाहट में उल्टे-सीधे कदम उठा रहा है ।</div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
कुल मिला कर अनुच्छेद 370 पाकिस्तान के लिये ब्रम्हास्त्र साबित हुआ ।</div>
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<br /></div>
<div dir="auto" style="font-family: sans-serif; font-size: 12.8px;">
- रोली पाठक</div>
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रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-26899130117285002892019-06-13T06:48:00.001-07:002019-06-13T06:48:50.230-07:00पर्यावरण बचाइये ।<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8KFFDUxDbvU2_EQ_E7Ni1QiIgdCJQvrhxRD4TkKnUvsgfhwWW4bOyfVXpDJQlEQuFGdVDQd-xXDkuz4LYPebOx5qwr4UJ_S5Wkq1okuZv1dIXRU-Vj5FuKmAbad46KBNB7LErzxarR18/s1600/tutelare-ambiente.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="272" data-original-width="247" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi8KFFDUxDbvU2_EQ_E7Ni1QiIgdCJQvrhxRD4TkKnUvsgfhwWW4bOyfVXpDJQlEQuFGdVDQd-xXDkuz4LYPebOx5qwr4UJ_S5Wkq1okuZv1dIXRU-Vj5FuKmAbad46KBNB7LErzxarR18/s1600/tutelare-ambiente.png" /></a></div>
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5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस था । सैकड़ों समाजसेवी संगठनों ने अपने-अपने तरह से इस दिन पर्यावरण संरक्षण के संदेश दिए । जल, वृक्ष, जंगल, प्रकृति, पशु-पक्षियों को बचाने के अनेक उपाय सुझाये गए । प्रदूषण, पॉलीथिन, नष्ट न हो सकने वाला कचरा, प्लास्टिक आदि का उपयोग न हो, इसके विषय मे नागरिकों को जागरुक किया गया, किन्तु क्या यह काफी है ?<br />
इस साल भीषण गर्मी ने इंसान व पशु-पक्षियों के हाल-बेहाल कर दिये । कई शाहरों का तापमान 50 डिग्री पार कर गया । प्रचंड गर्मी से लोगों की मृत्यु तक हो गई । पेय जल का भू-स्तर इतना नीचे चला गया कि पहुँच से बाहर हो गया । सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लोग पीने के पानी के लिए कई मील पैदल चल रहे हैं । पशु-पक्षी प्यास से मर गए ।<br />
जून माह आधा निकल जाने पर भी बरसात की कोई खबर नहीं । लगभग बीस वर्ष पहले 15 जून मानसून की तिथि मानी जाती थी कि इस दिन मानसून की झमाझम बारिश होगी ही । इतने वर्षों में प्रकृति का चक्र बदल गया क्योंकि न अब पहले जैसी हरियाली रही न प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण । अब हर घर मे गाड़ियाँ, एयर कंडीशनर हैं जिनसे प्रदूषण के साथ ढेर सारी ऊष्मा निकलती है जो वातावरण को गर्म रखते हैं । गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ वातावरण को दूषित करता है, कमरे को कश्मीर सा ठंडा करने वाला एसी बाहर की वायु को कितना गर्म करता है ये हम सभी जानते हैं । वाशिंग मशीन में कपड़े धो कर ड्रायर में सुखाने से भी ऊर्जा व्यर्थ होती है । हमारा खान-पान भी वातावरण को प्रभावित करता है । डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में ऊष्मा व ऊर्जा दोनों व्यर्थ होती हैं । उनकी पैकिंग में ऐसे मटीरियल का उपयोग होता है जो ईको फ्रेंडली नहीं होते । डिस्पोजेबल बर्तन व ग्लास भी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं । खाद्य पदार्थ को गर्म रखने के लिए उपयोग होने वाला सिल्वर फॉयल व क्लिंग फ़िल्म न केवल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है बल्कि पर्यावरण को भी हानि पहुंचाता है ।<br />
उपरोक्त सभी जीवन शैली को सरल बनाने वाले व आराम पहुँचाने वाले संसाधन पर्यावरण के दुश्मन हैं ।<br />
विद्वानों का कहना है कि सम्भवतः अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो । ज़रा सोचिए, कैसी विकट स्थिती होगी गर ये हुआ, किन्तु क्या करो हालात ऐसे ही हैं । समूचा देश जल संकट से जूझ रहा है, इस पर भी कुछ लोग नहीं मानते । पानी की बर्बादी से उन्हें कोई सरोकार नहीं ।<br />
पर्यावरण बचाने का संदेश सोशल मीडिया पर डालने से कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती अपितु उसे आचरण में भी लाना आवश्यक है तभी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे ।<br />
प्लास्टिक व पॉलीथिन के उपयोग को न कहिये, यह कठिन अवश्य है नामुमकिन नहीं । पॉलीथिन ऐसा कचरा है जो अगले सौ वर्षों में भी नष्ट नहीं होता और जहाँ पड़ा हो, भूमि के उस हिस्से को बंजर बना देता है ।<br />
पर्यावरण को बचाने के लिए आप रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से भी छोटे-छोटे कार्य कर सकते हैं ।<br />
RO के दूषित पानी को बाल्टी में जमा कर उसका उपयोग करें ।<br />
बहते हुए नल से बर्तन-कपड़े धोना आदि बंद कीजिये । गाड़ी का उपयोग कम करें । आस पास जाने के लिए सायकल का प्रयोग करें जिससे आपकी सेहत भी अच्छी रहेगी । बरसात के दिनों में खूब पौधारोपण करें व बाद में इन पौधों की देखभाल भी करें ताकि ये पनप सकें । इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए जिससे बरसात का पानी सुरक्षित रखा जा सके । टपकने वाली नल की टोंटियों को सुधारवाएँ । फुली ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन का उपयोग न करें तो बेहतर है, इससे पानी बहुत बर्बाद होता है ।<br />
यदि हम ये बातें सब अपनी आदतों में शुमार कर लें तो न केवल पर्यावरण बचेगा बल्कि हम जल सरंक्षण में भी अपना योगदान दे सकेंगे ।<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-35344152269766438322019-04-30T04:04:00.000-07:002019-04-30T04:04:00.495-07:00गर्मी का मौसम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
'गर्मी' शब्द सुनते ही पसीना आने लगता है । मार्च माह आता नहीं कि लोगों के संदेश आने लगते हैं - चिड़ियों के लिए मुँडेर पर दाना-पानी रखें । सभी कोशिश करते ही हैं कि नन्हें पंछी धूप में दाने-पानी को न भटकें । कुछ और उदार ह्रदय लोग घर के बाहर बड़े मिट्टी के सकोरों में गाय-कुत्तों व अन्य पशुओँ के लिए पानी रख देते हैं । इनसे भी अधिक अच्छे लोग इंसानों के लिए प्याऊ लगवा देते हैं।<br />
गर्मी बढ़ती जाती है और लोग हलाकान होने लगते हैं । अखबार में रोज का बढ़ता तापमान देख गर्मी को कोसते रहते हैं ।<br />
निर्धन बेचारे मच्छर, गर्मी व बिना कूलर-एसी के किसी तरह जीवन काटता है । हरे-भरे लहलहाते कोमल पौधे मरने लगते हैं । कुल मिलाकर गर्मी सबकी जान लेने आती है ।<br />
मैं भी गर्मी से दुखी इसे कोसती हुई सुबह कूलर में पानी भर रही थी, तभी सामने अमलतास पर नज़र पड़ी । पीले फूलों से लदा अमलतास गरम लू में भी झूम रहा था । पीछे कहीं अमराई में कोयल जोर-जोर से कूक रही थी । दीवार पर मेरे रखे सकोरे में नन्ही गौरैया फुदक-फुदक कर नहा रही थी । कहीं से आई एक गिलहरी बाजरे के दानों को खाने में व्यस्त थी । इतने में सब्जी वाले दादा आये, ठेले में फल ज्यादा थे सब्जियाँ कम ।<br />
आम, तरबूज, खरबूज, संतरों की भरमार थी ।<br />
मैंगो शेक के लिए तुरन्त आम लिए । मटके का शीतल जल पिया और सोचने लगी, क्यों हम मौसम को कोसते हैं ।<br />
यही गर्मियाँ बचपन में कितनी भली लगती थीं ।<br />
स्कूल की छुट्टियां मिलने के बाद जब घर में चाचा-बुआ और सारे भाई-बहन इकट्ठे होते थे तब क्या ही आनंद था । जब शाम को कुल्फी वाला टिन-टिन कर घंटी बजाता और सारे बच्चों व बड़ों को कुल्फी खिलाता, शाम को सबको चाट खिलाने बाजार ले जाया जाता, ठंडा गन्ने का रस पीते, खूब मौज करते ।<br />
अगले महीने नाना-नानी के यहाँ जाने मिलता, वहाँ भी मज़े ।<br />
अतीत में खोयी हुई मैं जैसे नींद से जागी ।<br />
नहीं । गर्मियाँ बुरी नहीं होतीं । हर मौसम का अपना महत्व है ।<br />
गर्मियाँ तो बहुत खूबसूरत होती हैं क्योंकि इनमें हमारा बचपन छुपा होता है ।<br />
😊<br />
- रोली<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTi2oyH6Nq9RbhtLi6qta0PM228Q9EpGnqrjoPYtXMYkKTW9EfPkvp6NNj8b2v6mOlyCnmtE_cMotn4IDPwcQBZ9v8rR-oyI0Ttm14P7QpEpLUjgdzqZNRhQjc2UvNi82YgbtbILzSiig/s1600/images+%25285%2529.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="259" data-original-width="194" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTi2oyH6Nq9RbhtLi6qta0PM228Q9EpGnqrjoPYtXMYkKTW9EfPkvp6NNj8b2v6mOlyCnmtE_cMotn4IDPwcQBZ9v8rR-oyI0Ttm14P7QpEpLUjgdzqZNRhQjc2UvNi82YgbtbILzSiig/s1600/images+%25285%2529.jpeg" /></a></div>
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रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-12553130518037264682018-11-19T09:07:00.000-08:002018-11-19T09:07:31.948-08:00उठो देव...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
साँझ ढलते ही लोगों के आँगन दीपों, कंदीलों व रंग-बिरंगे नन्हें बल्ब की लड़ियों से जगमगा उठे । लगभग हर घर मे गन्ने के मंडप के नीचे तुलसी विवाह संपन्न हो रहा है । पूजा समाप्त होते ही लोग अपने घरों के बाहर पटाख़े चलाने आ गए । तेज आवाज़ वाले पटाख़े चला चला कर चार माह से सोये देव को जगाया जा रहा है । मंगल गीत गाये जा रहे हैं - उठो श्याम साँवरे, बेर भाजी आँवरे । चारों ओर बड़े पटाखों की ध्वनि गुंजायमान है । मानो मनुष्य ऊपर स्वर्गलोक तक अपनी आवाज़ पहुँचा रहा हो कि - हे देव, जागो । उठो । निद्रा का त्याग कर संसार को देखो । तुम सोते रहे और कितना अनिष्ट, कितना दुराचार बढ़ गया । अब जागो , दंड दो पापियों, दुराचारियों को । ....किन्तु देव, तुम तो चार माह को ही शयन को गए थे, पाप व दुराचार तो वर्षों से व्याप्त है, कम नहीं होता, बढ़ता ही जाता है । भ्रष्टाचार, दुराचार, बलात्कार, फरेब कम ही नहीं हो रहे । जिन छोटी-छोटी कन्याओं को नौ दुर्गा का स्वरूप मान कर पूजा था, वे ही राक्षसों की हवस का शिकार हो गईं । हे देव, अब तो उठ जाओ । ये धमाके तुम्हें जगाने के लिए किए जा रहे हैं ताकि तुम जागो और हम इंसान अपने समस्त दुःख-दर्द भूल के उत्सव मनायें ।<br />
प्रभु, अपनी गहन निद्रा में क्या तुमने हमारे दुःखों का अनुभव नहीं किया ?<br />
यदि नहीं किया तो अब तो अपने नेत्र खोलो और देखो हम तुम्हारी आस में किन परिस्थितियों में हैं ।<br />
समाज मे व्याप्त बुराइयों से व हमारे बीच रह रहे राक्षसों से कैसे हम स्वयं को बचा रहे हैं, उठो और देखो कैसे उन राक्षसों ने नारी का तिरस्कार कर उसे अपमानित किया है । हे देव, जागो और अपनी अदम्य शक्तियों से उनका नाश करो ।<br />
ये आतिशबाजी ये पटाखों की गूँज तुम्हें निद्रा से जगाने के लिए है ।<br />
हे देव...उठो, जागो ।<br />
<br />
- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-21396803795589247922017-10-24T07:29:00.003-07:002017-10-24T07:29:38.636-07:00राष्ट्रगान के सम्मान पर प्रश्नचिन्ह !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: HelveticaNeue-Light, "Helvetica Neue Light", "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, "Lucida Grande", sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.5em; list-style: none; margin-bottom: 15px; padding: 0px;">
उच्चतम न्यायालय का सिनेमाघरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने के फैसले के लगभग एक वर्ष बाद पुनः विवादित टिप्पणियाँ आई हैं ! इस बार उच्चतम न्यायालय ने अपने ही फैसले के विपरीत अजीबोगरीब तर्क देते हुए स्वयं को इस मामले से अलग-थलग बताया है ! राष्ट्रगान जैसे देशभक्ति व् संवेदनशील मुद्दे के विषय में माननीय न्यायालय द्वारा जो निर्देश व् टिप्पणियां आई हैं वे निश्चित ही अपमानजनक हैं ! कोर्ट ने कहा है कि - 'राष्ट्रगान के समय किसी को खड़े होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, अदालतें अपने आदेश के द्वारा किसी के अन्दर देशभक्ति की भावना नहीं भर सकतीं ! केंद्र सरकार इस नियम में संशोधन पर विचार करे !'' कोर्ट की इस तरह की कठोर टिपण्णी कोंदुगल्लूर फिल्म सोसाइटी, केरल की याचिका की सुनवाई के दौरान कही गयीं हैं ! उच्चतम न्यायालय द्वारा इस तरह के निर्देश वाकई आश्चर्य एवं खेदजनक हैं !</div>
<div style="background-color: white; color: #333333; font-family: HelveticaNeue-Light, "Helvetica Neue Light", "Helvetica Neue", Helvetica, Arial, "Lucida Grande", sans-serif; font-size: 16px; line-height: 1.5em; list-style: none; margin-bottom: 15px; margin-top: 15px; padding: 0px;">
सामान्यतः एक आम आदमी गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, अन्तराष्ट्रीय मैच या सिनेमा घरों में ही राष्ट्रगान का श्रवण या गायन करता है, किसी फिल्म के आरम्भ होने के पूर्व जब परदे पर राष्ट्रगान बजता है तब साथ में विडिओ भी होता है जिसमे भारतीय सेना के जवानो को विपरीत परिस्थिओं में सीमा पर सुरक्षा करते हुए दिखाया जाता है,इस एक मिनट से भी कम समय के हमारे देशभक्ति से ओतप्रोत राष्ट्रगान को सुन कर हरेक व्यक्ति ह्रदय से सम्मानस्वरूप स्वेच्छा से खड़ा होता है, यदि दक्षिण भारत में लोगों को राष्ट्रगान भाषा की समस्या के कारण समझ में नहीं आ पाता तो इसका अर्थ यह नहीं कि समझ में न आने पर कोई बैठे रह कर राष्ट्रगान का अपमान कर सकता है ! देश के हर एक नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य है वह राष्ट्रगान का सम्मान करे ! न्यायालय ने यह भी कहा है कि - ''लोग सिनेमाघर में मनोरंजन के लिए जाते हैं, नियमो की बाध्यता के लिए नहीं ", तब तो यह भी संभव है कि सुप्रीम कोर्ट में किसी मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता महोदय आराम से कुर्सी पर पैर फैला कर अपनी दलील पेश करें, क्या तब वह न्यायालय की अवमानना मानी जाएगी ? क्या तब न्यायाधीश महोदय को यह स्वीकार्य होगा कि वकील साहब अपने मुक़दमे की पैरवी के दौरान खड़े ना हों ? कदापि नहीं, ठीक उसी तरह मनोरंजन व् देशभक्ति दो सर्वथा अलग मुद्दे हैं ! इस तरह के कुतर्क माननीय उच्चतम न्यायालय से अपेक्षित नहीं हैं ! न्यायालय ने एक और विचित्र दलील दी है कि - "अगली बार सरकार चाहेगी कि लोग टी-शर्ट व् शॉर्ट्स में सिनेमाघरों में ना जाएँ क्योंकि इससे राष्ट्रगान बजने पर उसका अपमान होगा और सरकार अदालत के कंधे पर बन्दूक रखकर ना चलाये, स्वयं निर्धारित करे कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाये जाने के नियम में संशोधन होना चाहिए अथवा या नहीं !"</div>
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यह निर्देश न्यायालय गरिमापूर्वक एक वाक्य में सरकार को दे सकती थी ! राष्ट्रगान के लिए बजाय इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियाँ करने के केरल फिल्म सोसाइटी की याचिका ख़ारिज की जाती तो सुप्रीम कोर्ट की भूरि-भूरि प्रशंसा होती, अब सरकार की बारी है, देखना यह है कि वह उच्चतम न्यायालय के इन निर्देशों की क्या प्रतिक्रिया देगी !</div>
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रोली पाठक</div>
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रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1635916583823975431.post-79920229838528147082017-09-12T02:25:00.000-07:002017-09-12T02:25:09.987-07:00सुरक्षा की गुहार निजी स्कूलों के लिए ही क्यों...!!!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल में सात वर्षीय छात्र प्रद्युम्न की हत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के निजी स्कूलों की जाँच करने का फैसला किया है । क्या देश के सारे बच्चे निजी स्कूलों में ही पढ़ते हैं ? या उनके अभिभावकों द्वारा मोटी फीस की अदायगी इसका महत्वपूर्ण कारण है ! यदि सरकारी स्कूलों की बात करें तो वैसी अव्यवस्था तो कहीं नहीं मिलेगी । हजारों गांवों में विद्यालय के नाम पर ऐसी दुर्दशा है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । इमारत के नाम पर जर्जर भवन, शौचालय जैसी प्राथमिक आवश्यकता का अभाव, न साफ़ पानी की व्यवस्था, न ही शिक्षकों की, इसके बावज़ूद इन स्कूलों में लाखों बच्चे पढ़ते हैं । सरकार अपनी योजनाओं के तहत मिड डे मील जैसी सुविधाएँ प्रदान कर पल्ला झाड़ लेती है, किन्तु उस मिड डे मील के दुष्प्रभाव हम आये दिन अख़बारों में पढ़ते रहते हैं । कभी दूषित दलिया खा कर बच्चे बीमार हो जाते हैं कभी अस्पताल में भर्ती । ऐसे भी हज़ारों गाँव मिलेंगे जहाँ विद्यालय हैं ही नहीं , जिसके चलते बच्चे कई किलोमीटर की दूरी तय कर के विद्यालय जाते हैं, कहीं बीच में नदी पर पुल न होने के कारण तैर कर, नाव से या रस्सी के जीर्ण-शीर्ण बनाये गए पुल पर जान जोखिम में डाल कर बच्चे पढ़ने जाते हैं । ऐसे में सरकारी विद्यालयों की ओर से आँख मूँद कर निजी स्कूलों पर पूरा ध्यान केंद्रित कर ये सौतेला व्यवहार क्यों ! कहा जा रहा है कि निजी स्कूलों में छात्रों की सुरक्षा के लिए ज़ारी दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है,क्या सरकारी स्कूलों के लिए सुविधाएं उपलब्ध करना सरकार की ज़िम्मेदारी नहीं ?<br />
रेयान इंटरनेशनल जैसे बड़े व नामचीन स्कूल में भी प्रशासन व जनता तभी हरकत में आयी जब एक बच्चे की जान चली गयी । इन स्कूलों की, इनके वाहनों की सुरक्षा को लेकर कोई न कोई दुर्घटना घटने पर आये दिन चर्चा होती रहती है, किन्तु इस बार अमानवीय कृत्य ने लोगों को झकझोर दिया । सुप्रीम कोर्ट को भी संज्ञान लेना पड़ा । प्रद्युम्न के पिता की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, हरियाणा सरकार व सीबीएसई को नोटिस भेजकर तीन हफ्ते में जवाब माँगा है ।<br />
इसी मामले में मानव संसाधन विकास मंत्री श्री जावड़ेकर ने एक विचित्र सुझाव दिया - स्कूलों व् स्कूल बसों का स्टाफ ज़्यादातर महिलाएं हों, ड्राइवर भी । क्या अपराध की रोकथाम करने के लिए पुरुष वर्ग को हर जगह से हटा देना ही एकमात्र उपचार है !!!<br />
खैर, पुनः मुद्दे पर आते हैं, उच्चतम न्यायालय के अनुसार - बच्चों की सुरक्षा किसी एक स्कूल का नहीं,पूरे देश का मामला है । क्या यह वक्तव्य सिर्फ निजी स्कूलों के लिए दिया गया है ? या सरकारी स्कूलों में भारी अव्यवस्थाओं के बीच पढ़ रहे नौनिहालों की भी कोई सुध लेगा जिनके नाम पर केंद्र से करोड़ों रुपयों का बजट दिया जाता है ।<br />
वर्तमान में शिक्षा सबसे बड़ा व्यवसाय व उद्योग है, क्योंकि जबसे निजी स्कूल बढ़े हैं, सरकारी विद्यालयों में ज़्यादातर कमज़ोर वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं , यहाँ तक कि आम आदमी समर्थ न होते हुए भी किसी तरह अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा व सुविधाएं प्रदान करने के लिए निजी स्कूलों में ही भेजता है । इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय को केंद्र व राज्य सरकारों को भी फटकार लगाना चाहिए क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी इसी देश के हैं, उनका भविष्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना निजी स्कूलों में मोटी फीस देने वाले बच्चों का ।<br />
संभवतः कुछ महीनों में आहिस्ता-आहिस्ता स्थितियां बेहतर हो जाएँ, किन्तु देश के उन हजारों जर्जर, अव्यवस्थित सरकारी विद्यालयों की सुध कौन लेगा, या उन्हें भी किसी बड़ी दुर्घटना के घटित होने के बाद याद किया जायेगा !!!<br />
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- रोली पाठक</div>
रोली पाठकhttp://www.blogger.com/profile/13106522735886815930noreply@blogger.com0