सोचती थी ,मन में मेरे , प्रेम शायद अब नहीं है , भूल थी वो, कैसे हो ये, जबकि तन में बसा ह्रदय है, ना यहाँ बंधन वयस का, ना ही वर्षों का समय है , तेरा न होना ही बस इक, मेरे जीवन का तमस है ..... साथ चाहूँ मै तुम्हारा, तुम सूर्य बन हरते रहो तम, धरा और किरणों का तुम्हारी, जैसे हो रहा समागम........... -रोली
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Showing posts from May, 2012
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ह्रदय से उठती कसक, सफ़र तय करके पहुँची, जिस्म से रूह तक, यादें बन गयीं आँसू आते-आते नैनो तक..... क्या इस खारे पानी में सिमट कर तुम बह जाओगे !!! या और भी भीतर समा जाओगे, मेरे अंतर्मन तक................! चाहूँ बस जाना तुम्हारे जिस्म के हरेक कतरे में, जीवनदायिनी हर साँस में, हर धड़कन में हर प्यास में, हर कसमो में हर वादों में, तुम्हारे मजबूत इरादों में......................... तब तो रुक जाओगे न तुम !!! फिर कहीं न जाओगे तुम.........! रोक लूंगी,समेट लूंगी, अब ये आँसू नैनो में..... ना बहने दूँगी मै, इन स्वर्णिम यादों को...... प्रिय, तुम्हारी यादों को ..... -रोली.