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क्या दें उपहार...!!!

 ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब हमें परिवार में, रिश्तेदारी में, मित्रों को या औपचारिक संबंधों को निभाने के लिये उपहार देने का मौका आता है। कहने को तो यह छोटी सी बात है किंतु विचार कीजिये कि ये वाकई एक बड़ा मुद्दा है। हम कई बार सोचते ही रह जाते हैं कि फलां-फलां को क्या उपहार दें और अंत में निरर्थक सा कुछ थमा आते हैं, जिसे लेने वाला भी आगे बढ़ा देता है अर्थात वो भी यूँ ही किसी को थमा देते हैं। याद कीजिये जब कभी आपको उपहार मिलने का अवसर आया तो वे कौन सी वस्तुयें थीं जिन्हें पा कर आप प्रफुल्लित हुए, आपको वह उपहार बेहद उपयोगी लगा या पसन्द आया और वो क्या चीजें थीं जिन्हें आपने देखते ही मन बना लिया कि ये तो किसी को दे देंगे। कुछ बातें दिमाग में रख कर यदि उपहार तय करेंगे तो उसे लेने वाला भी प्रशंसा करेगा। 1. अवसर एवं बजट को ध्यान में रख कर निर्णय लीजिए, साथ ही जिन्हें उपहार देना है उनसे आपके संबंध कैसे हैं - औपचारिक, प्रगाढ़ या रिश्तेदारी !  2. उपहार पहले से तय करें व ला कर रख लें ताकि जल्दबाजी में कुछ भी अनाप-शनाप न ले लें।कार्यक्रम के एक दिन पहले तक हर हाल में उपहार ले आएं एवं उसे खूबसूरती से गिफ्ट

व्यस्तता...

 कितने दिन हो गए कुछ लिखा ही नहीं। विचारों के बादल आषाढ़ के मेघों की तरह दिलो-दिमाग में खूब उथल-पुथल मचाते रहते हैं लेकिन समय ही नहीं कि उन्हें शब्दों में ढाल सकूँ।  बिटिया के विवाह में लगभग एक माह शेष है, दीपावली का महापर्व सिर पर है, घर में एक साथ सफाई, रंगाई-पुताई, बढ़ई के काम सब चल रहे हैं। घर का सामान उलट-पुलट है। कुछ भी व्यवस्थित नहीं ऐसे में विचारों को कैसे एकसार करूँ !!! कभी दर्ज़ी के यहाँ ब्लाउज़ सिलने देना है तो कभी साड़ी में फॉल-पीकू कराना है, कभी मेहमानों की लिस्ट बनानी है तो कभी उनके उपहारों को अलग-अलग नाम लिख कर पैकेट्स बनाने हैं। बीच मे दस-बारह लोगों की चाय बनाओ तो घर मे चाय-नाश्ता-खाना भी चाहिए। बढ़ई बुलायें तो अट्ठारह सीढियां चढ़ कर ऊपर भागो फिर पुताई वाले की सुनने वापस नीचे आओ। इस कवायद में भी विचार कमबख्त शांत नहीं रहते, रोज एक बार मन का दरवाजा खटखटा कर जता ही देते हैं कि हमें भी आकार दो। एक महीने बाद बिटिया का दूसरा घर हो जायेगा। अभी जो कमरा बेतरतीब सा बिखरा पड़ा है, शादी के बाद उसकी अलमारी, आईना, टेबल सब साफ-सुथरे चुप से हो जाएंगे। अभी जो चीख़-पुकार मची रहती है, ये नहीं मिल

दर्द का साल और खुशी के पल

 आज साल के अंतिम पृष्ठ के समापन पर जब इसके पन्ने उलटती हूँ तो दुःख, दर्द, पीड़ा, अवसाद ही अधिक दिखाई देता है। वैश्विक महामारी ने बहुत लोगों को अपना ग्रास बनाया, कुछ रिश्तेदार थे, कुछ परिचित, कुछ पराये और कुछ बेहद अपने और एक थी मेरी बहुत प्यारी दोस्त। पिछले साल आज ही की शाम वो साथ थी, रात 9 बजे से देर रात तक। हमारा नव वर्ष साथ ही मना, क्या मालूम था कि उसके साथ वो आख़री साल होगा। उसे गए 7 महीने हो चुके लेकिन आज भी वो ख़यालों में ज़िन्दा है। हर जगह दिखाई देती है। हर रोज़ याद आती है। मनजीत के जाने के कुछ समय बाद एक-एक करके कई परिचितों के दुःखद समाचार प्राप्त हुए। दूसरी लहर भयावह थी।  रिश्तेदार व परिजन भी कोरोना से पीड़ित थे, अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती। हमने यथासंभव सभी की सहायता की और धीरे-धीरे वे सब स्वस्थ हो कर घर लौट आये।  ईश्वर ने मेरे परिवार पर विशेष कृपा की। हम सब पूर्णतः सुरक्षित रहे।  साल 2021 में गिनती की एकमात्र किन्तु बहुत बड़ी खुशी भी शामिल है - मेरी बेटी की सगाई। एक नया रिश्ता जुड़ना। यह एक ऐसी खुशी है जिसे परिवार के लोगों ने हृदय से महसूस किया। नई पीढ़ी का पहला सम्बन्ध स्थिर हुआ था व

भीगी यादें

बरखा के संगीत ने छेड़ दिये फिर मन के तार उमड़-घुमड़ होने लगा कुछ वहाँ, जिसे मन कहते हैं। वो धुन वो उमंग जैसे जलतरंग, जैसे मेघ-मल्हार और बादलों पर सवार मेरा मन। ठंडी बयार हिलोरती ज़ंग लगी यादों की पतीली को, बूंदे गिर-गिर कर  चमका देती उन यादों को जो सर्दी के मौसम में दफन हो चुकीं थीं लिहाफ़ में और गर्मी में  बह चुकी थीं पसीने संग, गरजते-लरजते बादलों ने  जैसे फिर हटाया हो वो लिहाफ़। चमकती दामिनी की  फ्लैश लाईट चमका रही उन उनींदी, अलसायी  यादों को... फिर ताज़ा कर दिया पानी से धुली पत्तियों की तरह फिर झूमने लगीं  घूमने लगीं मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ने लगीं.. सच है, बदल देता है मिजाज़ ये बारिश का पानी.. गर्म चाय से उड़ते धुएं में बनती हुई इक तस्वीर मीठे घूँट की तरह  सहलाती हुई सी  मानो अंदर उतर रही। काली बदली बरस रही ऐसे कि छाते का उलट जाना याद आने लगा। भीगते परिंदों में खुद को देखते हुये यादों को मैने समेटा,लपेटा आँखों से शुक्रिया कहा अपनी बरसात के साथ इस बरसात को। - रोली

कहाँ तुम चली गयी.....

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 7 अप्रैल 2021 वो उड़ना जानती थी, पंख नहीं थे तो क्या, उसने आसमान में उड़ना सीखा। फ्लाइंग क्लब जॉइन करके आसमान की ऊंचाइयों को छुआ फिर वहीं उसे जीवनसाथी मिल गया और वो ज़मीन पर उतर आई। बेहद खूबसूरत, खुशमिजाज़, बिंदास, प्यारी, हँसमुख, पक्की सिखणी। बरसों पहले जब मैं पहली बार उसे मिली थी तब वो बला की खूबसूरत थी, एकदम स्टाइलिश। कम बोल रही थी, एकदम हाई-फाई लगी लेकिन अगली कुछ मुलाकातों में पाया कि वो बहुत ही सिम्पल और हम जैसी ही थी। उसे जानवरों से बेइंतहां प्यार था, इतना कि एक दिन उसके घर अपने पैर के पास एक छिपकली को देख कर मैं चीखी - झाड़ू लाओ, मारो इसे। वो उठी, डस्टिंग वाला कपड़ा लाई और छिपकली के ऊपर डाला, उसे पकड़ कर बाहर रख आई और बोली - ''क्यों मारो ! उस बेचारी ने तेरा क्या बिगाड़ा था !'' उसके घर कुत्ता, मछलियां, तोते सब हैं। बाहर की चिड़ियों के लिये दाना-पानी, गली के कुत्तों के लिये रोज शाम को खाना देना, नंदिनी गौ शाला में जा कर गायों की खोज खबर लेते रहना, लॉकडाउन में सड़क के जानवरों के लिए उसने खूब दाना-पानी दिया..यह सब उसकी दिनचर्या में शामिल था। उसके दोस्त उसके दिल के धड़कन थे। चु

फ़र्क

पीरियड्स का दूसरा दिन था, नेहा सुबह से भुनभुना रही थी -  "कोई चीज़ जगह पर नहीं है, कहीं जूते पड़े हैं कहीं मोजे, कहीं कपड़े बिखरे हुए हैं, घर बिल्कुल कबाड़खाना बना रखा है।" नेहा की बड़ी बेटी आर्या ने छोटी बहन पूर्वा को देखा और मुस्कुरा दी। इतने में काम वाली बाई आ गई। "कमला, ये कोई टाइम है आने का..!!! आजकल रोज लेट आ रही हो, काम-वाम करना है या नहीं..!!" कमला बिना जवाब दिए चुपचाप डस्टिंग का कपड़ा उठा कर सफाई में जुट गई। नेहा फिर भी भुनभुनाती रही। आर्या ने चाय बनाई और नेहा के पास आ कर प्यार से बोली - "मम्मा, मूड स्विंग न..!"  "हाँ बच्चा, सेकंड डे है न, बस इसीलिए।" चाय पी के कुछ देर आराम कर के नेहा फिर सामान्य हो गयी। "कमला, कहाँ हो !! ऊपर पूजा वाले कमरे में अच्छे से झाड़ू-पोंछा कर लेना।" "दीदी, तीन दिन बाद कर दूँगी। अभी नहीं कर सकती।" नेहा चुप हो गई। एकदम चुप। - रोली पाठक

वादा न निभाने का दुष्परिणाम

25  अप्रैल 2015 को नेपाल में अचानक धरती हिलने लगी, लोग घबरा गए, बड़ी-बड़ी इमारतें व मकान ताश के पत्तों की तरह ढहने लगे। यह भूकम्प था जिसे रिक्टर पैमाने पर 7.8 व 8.1 तीव्रता का मापा गया जिसने पूरे नेपाल में लगभग 5 दिन तक भारी तबाही मचाई, तकरीबन 9000 लोग मारे गए और 22000 लोग घायल हुए। सैलानियों का स्वर्ग नेपाल उजड़ गया। ललितपुर, भक्तपुर, पाटन जैसे खूबसूरत ऐतिहासिक शहर बर्बाद हो गए। चारों तरफ मलबा और चीख-पुकार थी। हमारा देश भारत, जिससे नेपाल के मधुर संबंध रहे हैं, उसने नेपाल को इस प्राकृतिक आपदा में सांत्वना दी और वादा किया कि वह नेपाल को पुनः खड़ा करेगा। दिन गुज़रने लगे, भारत अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गया, उधर नेपाल कराह रहा था। लोगों के घर, आजीविका के साधन, पर्यटन सब उजड़ गया था, ऐसे में दूसरे पड़ोसी चीन ने उसका हाथ थामा और साधन-संपन्न चीन ने साल भर में नेपाल की ऐतिहासिक धरोहरों को पुनर्जीवित कर दिया, चमचमाती सड़कें और सुंदर इमारतों का पुनर्निर्माण कर नेपाल के लोगों का दिल जीत लिया। यह चीन की सिर्फ हमदर्दी नहीं थी, कुटिल चाल भी थी। नेपालवासियों को उनका नेपाल लौटा कर चीन उनकी नज़रों में श्र