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पापा

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 कोविड ने जब सारी दुनिया को दहला रखा था और घर की चारदीवारी में सीमित कर दिया था तब मेरे पापा जो कि घर से 3 किमी दूर रहते हैं, वो रोज दोपहर को घर आते। 78 साल उम्र हो गई किंतु चुस्ती-फुर्ती और उत्साह 50 वर्ष के व्यक्ति जैसा। लाख समझाओ उन्हें कि घर से मत निकलिये, मास्क लगाईये लेकिन वो कहाँ सुनते थे। मेरी दोनो बेटियों से अगाध प्रेम हैं पापा-मम्मी को, वो दोनो भी नाना-नानी पर जान छिड़कती हैं। दोपहर के 1.30 बजते ही पापा कार चला कर घर आ जाते और फिर होती ताश की बाज़ी शुरू। शाम 5 बजे तक ताश खेला जाता, साथ ही पापा की एलेक्सा से गानों की फ़रमाइश चलती रहती, एक डायरी बनाई गई थी जिसमे रमी के पॉइंट्स लिखे जाते, आख़री में टोटल किया जाता कि उस दिन का विनर कौन रहा। यह सिलसिला खूब लंबा चला, तभी पापा भी कोरोना की चपेट में आ गए, 13 दिन अस्पताल में रहे। कमज़ोर भी हो गए थे। फिर शनिवार-इतवार के 2 दिन ताश के लिये मुक़र्रर किये गए। दोपहर के वो 4 घंटे अब हम लोगों के लिए सरदर्द बन गए थे लेकिन पापा को कैसे मना करें, उनका उत्साह तो वैसा का वैसा बरकरार था। ख़ैर, वक़्त गुज़र रहा था, कोविड के बाद जीवन पटरी पर आ रहा था। बड़ी बेटी