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दर्द का साल और खुशी के पल

 आज साल के अंतिम पृष्ठ के समापन पर जब इसके पन्ने उलटती हूँ तो दुःख, दर्द, पीड़ा, अवसाद ही अधिक दिखाई देता है। वैश्विक महामारी ने बहुत लोगों को अपना ग्रास बनाया, कुछ रिश्तेदार थे, कुछ परिचित, कुछ पराये और कुछ बेहद अपने और एक थी मेरी बहुत प्यारी दोस्त। पिछले साल आज ही की शाम वो साथ थी, रात 9 बजे से देर रात तक। हमारा नव वर्ष साथ ही मना, क्या मालूम था कि उसके साथ वो आख़री साल होगा। उसे गए 7 महीने हो चुके लेकिन आज भी वो ख़यालों में ज़िन्दा है। हर जगह दिखाई देती है। हर रोज़ याद आती है। मनजीत के जाने के कुछ समय बाद एक-एक करके कई परिचितों के दुःखद समाचार प्राप्त हुए। दूसरी लहर भयावह थी।  रिश्तेदार व परिजन भी कोरोना से पीड़ित थे, अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती। हमने यथासंभव सभी की सहायता की और धीरे-धीरे वे सब स्वस्थ हो कर घर लौट आये।  ईश्वर ने मेरे परिवार पर विशेष कृपा की। हम सब पूर्णतः सुरक्षित रहे।  साल 2021 में गिनती की एकमात्र किन्तु बहुत बड़ी खुशी भी शामिल है - मेरी बेटी की सगाई। एक नया रिश्ता जुड़ना। यह एक ऐसी खुशी है जिसे परिवार के लोगों ने हृदय से महसूस किया। नई पीढ़ी का पहला सम्बन्ध स्थिर हुआ था व

भीगी यादें

बरखा के संगीत ने छेड़ दिये फिर मन के तार उमड़-घुमड़ होने लगा कुछ वहाँ, जिसे मन कहते हैं। वो धुन वो उमंग जैसे जलतरंग, जैसे मेघ-मल्हार और बादलों पर सवार मेरा मन। ठंडी बयार हिलोरती ज़ंग लगी यादों की पतीली को, बूंदे गिर-गिर कर  चमका देती उन यादों को जो सर्दी के मौसम में दफन हो चुकीं थीं लिहाफ़ में और गर्मी में  बह चुकी थीं पसीने संग, गरजते-लरजते बादलों ने  जैसे फिर हटाया हो वो लिहाफ़। चमकती दामिनी की  फ्लैश लाईट चमका रही उन उनींदी, अलसायी  यादों को... फिर ताज़ा कर दिया पानी से धुली पत्तियों की तरह फिर झूमने लगीं  घूमने लगीं मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ने लगीं.. सच है, बदल देता है मिजाज़ ये बारिश का पानी.. गर्म चाय से उड़ते धुएं में बनती हुई इक तस्वीर मीठे घूँट की तरह  सहलाती हुई सी  मानो अंदर उतर रही। काली बदली बरस रही ऐसे कि छाते का उलट जाना याद आने लगा। भीगते परिंदों में खुद को देखते हुये यादों को मैने समेटा,लपेटा आँखों से शुक्रिया कहा अपनी बरसात के साथ इस बरसात को। - रोली

कहाँ तुम चली गयी.....

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 7 अप्रैल 2021 वो उड़ना जानती थी, पंख नहीं थे तो क्या, उसने आसमान में उड़ना सीखा। फ्लाइंग क्लब जॉइन करके आसमान की ऊंचाइयों को छुआ फिर वहीं उसे जीवनसाथी मिल गया और वो ज़मीन पर उतर आई। बेहद खूबसूरत, खुशमिजाज़, बिंदास, प्यारी, हँसमुख, पक्की सिखणी। बरसों पहले जब मैं पहली बार उसे मिली थी तब वो बला की खूबसूरत थी, एकदम स्टाइलिश। कम बोल रही थी, एकदम हाई-फाई लगी लेकिन अगली कुछ मुलाकातों में पाया कि वो बहुत ही सिम्पल और हम जैसी ही थी। उसे जानवरों से बेइंतहां प्यार था, इतना कि एक दिन उसके घर अपने पैर के पास एक छिपकली को देख कर मैं चीखी - झाड़ू लाओ, मारो इसे। वो उठी, डस्टिंग वाला कपड़ा लाई और छिपकली के ऊपर डाला, उसे पकड़ कर बाहर रख आई और बोली - ''क्यों मारो ! उस बेचारी ने तेरा क्या बिगाड़ा था !'' उसके घर कुत्ता, मछलियां, तोते सब हैं। बाहर की चिड़ियों के लिये दाना-पानी, गली के कुत्तों के लिये रोज शाम को खाना देना, नंदिनी गौ शाला में जा कर गायों की खोज खबर लेते रहना, लॉकडाउन में सड़क के जानवरों के लिए उसने खूब दाना-पानी दिया..यह सब उसकी दिनचर्या में शामिल था। उसके दोस्त उसके दिल के धड़कन थे। चु