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भीगी यादें

बरखा के संगीत ने छेड़ दिये फिर मन के तार उमड़-घुमड़ होने लगा कुछ वहाँ, जिसे मन कहते हैं। वो धुन वो उमंग जैसे जलतरंग, जैसे मेघ-मल्हार और बादलों पर सवार मेरा मन। ठंडी बयार हिलोरती ज़ंग लगी यादों की पतीली को, बूंदे गिर-गिर कर  चमका देती उन यादों को जो सर्दी के मौसम में दफन हो चुकीं थीं लिहाफ़ में और गर्मी में  बह चुकी थीं पसीने संग, गरजते-लरजते बादलों ने  जैसे फिर हटाया हो वो लिहाफ़। चमकती दामिनी की  फ्लैश लाईट चमका रही उन उनींदी, अलसायी  यादों को... फिर ताज़ा कर दिया पानी से धुली पत्तियों की तरह फिर झूमने लगीं  घूमने लगीं मन-मस्तिष्क को झिंझोड़ने लगीं.. सच है, बदल देता है मिजाज़ ये बारिश का पानी.. गर्म चाय से उड़ते धुएं में बनती हुई इक तस्वीर मीठे घूँट की तरह  सहलाती हुई सी  मानो अंदर उतर रही। काली बदली बरस रही ऐसे कि छाते का उलट जाना याद आने लगा। भीगते परिंदों में खुद को देखते हुये यादों को मैने समेटा,लपेटा आँखों से शुक्रिया कहा अपनी बरसात के साथ इस बरसात को। - रोली