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Showing posts from 2019

पुकार

न जलाओ दोबारा इस जली देह को, होता है दर्द यूँ बार बार जलने में, अब तो तपती हूँ मैं, लौ से भी मोमबत्ती की, सिहर जाती हूँ कर्कश आवाज़ों से, जो चीखते हो तुम मेरे न्याय के लिए, न होता है कुछ न मिलता है कुछ बस, बढ़ता ही जाता है देह का दर्द। कल दूसरी थी, आज हूँ मैं, कल फिर दूसरी होगी क्या थमेगा यह सिलसिला कभी!!! - रोली पाठक

न हो भयभीत, लड़ो...

उस जली हुई बेटी की देह को जब पिता अंतिम संस्कार के लिए अग्नि देने लगे तो वह बोल उठी - 'पापा, दोबारा मत जलाइए, बहुत दर्द होता है।' प्रियंका, खूबसूरत, प्रतिभाशाली, भावुक, भावुक इसलिए कि वह बेज़ुबान जानवरों की तकलीफ समझती थी, समाज से भयभीत, भयभीत इसलिए कि अपनी बहन को अंतिम शब्द यही थे उसके कि मुझे डर लग रहा है, आँखों में भविष्य के अनगिनत सुनहरे सपने होंगें, ऐसी लड़की को चार अनपढ़, नशेलची, आवारा किस्म के लोगों ने अपनी हवस का शिकार बना कर जला कर फेंक दिया। माता-पिता, बहन उसके घर लौटने की राह देख रहे होंगे, माँ ने रोज की तरह उसका भी खाना बनाया होगा, बहन ने आखरी बार बात कर के उसे हौसला दिया था, लेकिन मन में शंका आ गयी थी किसी अनहोनी की, क्योंकि उसने अपना भय व्यक्त कर दिया था कि उसे डर लग रहा है वहाँ मौजूद लोगों से। इस दर्दनाक हादसे के बाद पूरे देश में आक्रोश पनपा, धरने,प्रदर्शन, नेताओं के बयान आने लगे, मोमबत्तियां जल जल कर पिघलने लगीं। हत्यारों को तुरन्त सज़ा व मृत्युदंड की आवाज़ चारों ओर से उठी। तभी एक निर्णय आया दिल्ली की एक अदालत से  कि 2012 में हुए निर्भया कांड के आरोपी का डेथ वार
पैर सिकोड़े,मोड़े हाथ सर्दियों में कोई नवजात धूप में लेटाने पर जैसे लेता खुल कर अंगड़ाई है वैसे ही हफ्तों बाद आज धूप आई है... पौधे जो खूब ऊब चुके थे बारिश में पूरा डूब चुके थे सुरमई मेघों के छंटने से सूरज के खुल कर हंसने से दे रहे खुश दिखाई हैं क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आयी है... मुंडेरों पर कपड़े सूख रहे दरवाज़े खिड़की खुल गए कमरे की सीलन सिमट रही हो रही घरों में सफाई है क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आई है... गद्दे भी थे गीले-गीले बिस्तर भी थे सीले-सीले बारिश के निशां दीवारों पर धब्बे जैसे काले-पीले सूरज की गर्मी से सबने  अब कुछ राहत पायी है क्योंकि हफ्तों बाद आज धूप आई है... - रोली
निराशा की जगह संभावनाएं तलाशें ************************ किसी भी देश की प्रगति व् एकता के लिए एक राष्ट्रभाषा का होना आवश्यक है, जिसमे राजकार्य हो, बहुसंख्यक लोग एक-दूसरे से बातचीत में जिसका इस्तेमाल करें । हिन्दी हमारे देश भारत में राज-काज की भाषा है । आज हमारी इस राष्ट्रभाषा की प्रतिद्वंदी भाषा है - अंग्रेजी । सरकारी कामकाज भले ही हिंदी में करने का व् होने का दम भरा जाता हो, किन्तु ऐसा होता नहीं है। पढाई का स्तर भी माध्यम से ही आँका जाता है, यदि बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ रहा है तो उच्च स्तर अन्यथा निम्न । अभिभावक भी मजबूर हैं, देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से व् ना केवल विदेशों में बल्कि अपने ही देश में अंग्रेजी भाषा का स्तरीय ज्ञान आवश्यक हो गया है । किसी भी विदेशी ज्ञान का होना निंदनीय नहीं बल्कि यह तो अच्छी बात है किन्तु उस भाषा का गुलाम होना अनुचित है । वर्तमान में यह स्थिति है कि लोगों की हिंदी बोलचाल तक ही सीमित रह जाती है, यदि लिखना भी पड़े तो उसका स्तर बहुत ही निम्न होता है, वहीँ उनका अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उच्च कोटि का होता है । अपने ही देश में अपनी र

क्यों बदहवास है पाकिस्तान !!!

अनुच्छेद 370 समाप्त करने का जितना असर भारत में नहीं हुआ उससे कहीं ज़्यादा पाकिस्तान की प्रतिक्रिया आ रही है । आखिर क्यों बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना हुआ जा रहा है !  कश्मीर हमारे देश का व्यक्तिगत मुद्दा है, क्यों पाकिस्तान इतना बौखलाया जा रहा है ! पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने आनन फानन में मीटिंग बुला कर निर्णय लिए कि - भारत से सभी व्यापारिक सम्बन्ध समाप्त किये जायें ।  भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस रद्द की जाए एवं भारतीय फिल्मों को प्रतिबंधित किया जाए । पाकिस्तान ने समझौता एक्सप्रेस के लिए कहा कि हमारे गार्ड व इंजिन ड्राइवर ट्रेन ले कर नहीं जा सकते, भारत अपना क्रू भेजे, ऐसे में वहाँ फंसे हुए भारतीय यात्रियों को वापस लाने के लिए समझौता एक्सप्रेस को वापस लाने के लिए भारत से हमारा क्रू वाघा बॉर्डर से अटारी रेलवे स्टेशन पहुँचा व समझौता एक्सप्रेस को वापस लाया गया ।  इस तरह की ओछी हरकतों से पाकिस्तान पूरे विश्व को अपनी कमजोरी दिखा रहा है।  पाकिस्तान ने हमेशा कहा कि भारत के राज्य कश्मीर में होने वाली गतिविधियों में उसका कभी कोई हाथ नहीं रहा जबक

पर्यावरण बचाइये ।

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5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस था । सैकड़ों समाजसेवी संगठनों ने अपने-अपने तरह से इस दिन पर्यावरण संरक्षण के संदेश दिए । जल, वृक्ष, जंगल, प्रकृति, पशु-पक्षियों को बचाने के अनेक उपाय सुझाये गए । प्रदूषण, पॉलीथिन, नष्ट न हो सकने वाला कचरा, प्लास्टिक आदि का उपयोग न हो, इसके विषय मे नागरिकों को जागरुक किया गया, किन्तु क्या यह काफी है ? इस साल भीषण गर्मी ने इंसान व पशु-पक्षियों के हाल-बेहाल कर दिये । कई शाहरों का तापमान 50 डिग्री पार कर गया । प्रचंड गर्मी से लोगों की मृत्यु तक हो गई । पेय जल का भू-स्तर इतना नीचे चला गया कि पहुँच से बाहर हो गया । सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लोग पीने के पानी के लिए कई मील पैदल चल रहे हैं । पशु-पक्षी प्यास से मर गए । जून माह आधा निकल जाने पर भी बरसात की कोई खबर नहीं । लगभग बीस वर्ष पहले 15 जून मानसून की तिथि मानी जाती थी कि इस दिन मानसून की झमाझम बारिश होगी ही । इतने वर्षों में प्रकृति का चक्र बदल गया क्योंकि न अब पहले जैसी हरियाली रही न प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण । अब हर घर मे गाड़ियाँ, एयर कंडीशनर हैं जिनसे प्रदूषण के साथ ढेर सारी ऊष्मा निकलती है जो वाताव

गर्मी का मौसम

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'गर्मी' शब्द सुनते ही पसीना आने लगता है । मार्च माह आता नहीं कि लोगों के संदेश आने लगते हैं - चिड़ियों के लिए मुँडेर पर दाना-पानी रखें । सभी कोशिश करते ही हैं कि नन्हें पंछी धूप में दाने-पानी को न भटकें । कुछ और उदार ह्रदय लोग घर के बाहर बड़े मिट्टी के सकोरों में गाय-कुत्तों व अन्य पशुओँ के लिए पानी रख देते हैं । इनसे भी अधिक अच्छे लोग इंसानों के लिए प्याऊ लगवा देते हैं। गर्मी बढ़ती जाती है और लोग हलाकान होने लगते हैं । अखबार में रोज का बढ़ता तापमान देख गर्मी को कोसते रहते हैं । निर्धन बेचारे मच्छर, गर्मी व बिना कूलर-एसी के किसी तरह जीवन काटता है । हरे-भरे लहलहाते कोमल पौधे मरने लगते हैं । कुल मिलाकर गर्मी सबकी जान लेने आती है । मैं भी गर्मी से दुखी इसे कोसती हुई सुबह कूलर में पानी भर रही थी, तभी सामने अमलतास पर नज़र पड़ी । पीले फूलों से लदा अमलतास गरम लू में भी झूम रहा था । पीछे कहीं अमराई में कोयल जोर-जोर से कूक रही थी । दीवार पर मेरे रखे सकोरे में नन्ही गौरैया फुदक-फुदक कर नहा रही थी । कहीं से आई एक गिलहरी बाजरे के दानों को खाने में व्यस्त थी । इतने में सब्जी वाले दादा आये, ठे