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पुकार

न जलाओ दोबारा इस जली देह को, होता है दर्द यूँ बार बार जलने में, अब तो तपती हूँ मैं, लौ से भी मोमबत्ती की, सिहर जाती हूँ कर्कश आवाज़ों से, जो चीखते हो तुम मेरे न्याय के लिए, न होता है कुछ न मिलता है कुछ बस, बढ़ता ही जाता है देह का दर्द। कल दूसरी थी, आज हूँ मैं, कल फिर दूसरी होगी क्या थमेगा यह सिलसिला कभी!!! - रोली पाठक

न हो भयभीत, लड़ो...

उस जली हुई बेटी की देह को जब पिता अंतिम संस्कार के लिए अग्नि देने लगे तो वह बोल उठी - 'पापा, दोबारा मत जलाइए, बहुत दर्द होता है।' प्रियंका, खूबसूरत, प्रतिभाशाली, भावुक, भावुक इसलिए कि वह बेज़ुबान जानवरों की तकलीफ समझती थी, समाज से भयभीत, भयभीत इसलिए कि अपनी बहन को अंतिम शब्द यही थे उसके कि मुझे डर लग रहा है, आँखों में भविष्य के अनगिनत सुनहरे सपने होंगें, ऐसी लड़की को चार अनपढ़, नशेलची, आवारा किस्म के लोगों ने अपनी हवस का शिकार बना कर जला कर फेंक दिया। माता-पिता, बहन उसके घर लौटने की राह देख रहे होंगे, माँ ने रोज की तरह उसका भी खाना बनाया होगा, बहन ने आखरी बार बात कर के उसे हौसला दिया था, लेकिन मन में शंका आ गयी थी किसी अनहोनी की, क्योंकि उसने अपना भय व्यक्त कर दिया था कि उसे डर लग रहा है वहाँ मौजूद लोगों से। इस दर्दनाक हादसे के बाद पूरे देश में आक्रोश पनपा, धरने,प्रदर्शन, नेताओं के बयान आने लगे, मोमबत्तियां जल जल कर पिघलने लगीं। हत्यारों को तुरन्त सज़ा व मृत्युदंड की आवाज़ चारों ओर से उठी। तभी एक निर्णय आया दिल्ली की एक अदालत से  कि 2012 में हुए निर्भया कांड के आरोपी का डेथ वार