कभी उछलती कभी फुदकती
गेंद की तरह
कभी मचलती कभी संभलती
लहर की तरह
कभी मीलों अकेली है
साहिल की तरह
कभी शोर में डूबी हुयी
मेले की तरह
कभी ग़मगीन कभी परेशान
इंसान की तरह
कभी मासूम कभी नादान
बच्चे की तरह
एक रूप नहीं है इसका
बहुरूपिया है यह
"ज़िन्दगी" नाम है इसका
जीना है किसी तरह...........................
-रोली....
गेंद की तरह
कभी मचलती कभी संभलती
लहर की तरह
कभी मीलों अकेली है
साहिल की तरह
कभी शोर में डूबी हुयी
मेले की तरह
कभी ग़मगीन कभी परेशान
इंसान की तरह
कभी मासूम कभी नादान
बच्चे की तरह
एक रूप नहीं है इसका
बहुरूपिया है यह
"ज़िन्दगी" नाम है इसका
जीना है किसी तरह...........................
-रोली....
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया यशवंत जी..
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