सिलसिला कुछ यूं चल पड़ा है हमारे दरमियां कि
बगैर गिले-शिकवे के उल्फत अधूरी लगती है।
रूठने-मनाने का दस्तूर यूं ही चलता रहे कि
यह बात इस रिश्ते में बहुत ज़रूरी लगती है।
बगैर गिले-शिकवे के उल्फत अधूरी लगती है।
रूठने-मनाने का दस्तूर यूं ही चलता रहे कि
यह बात इस रिश्ते में बहुत ज़रूरी लगती है।
Hunmmm...sach mein roothne manane ke bina ulfat adhoori hi rehti hai..
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