सीलन....
कतरे-कतरे धूप के
समेट कर मुट्ठी में,
तेरी यादों की सीलन को,
दिखाना है मुझे...
अश्कों की बारिश से,
उभर आई है जो,
दिल की दीवारों पर...
उसे अब वक्त के रहते,
हटाना है मुझे.....
यादों के उन धब्बों को,
खुरच-खुरच कर ,
मिटाना है मुझे......
- रोली ...
बहुत खूब - मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteधन्यवाद राकेश जी...
DeleteMy dear Roli ji yaadon ko mitana itna asaan nahi hota...vaise bahut khoob likha hai !!!!
ReplyDeleteमेरे अनाम मित्र, आपका कहना सही है...लेकिन स्मृतियों को ह्रदय से लगा कर रखा जाये तो वर्तमान प्रभावित होता है |
Deleteगहरे जज्बात...लाजवाब |
ReplyDeleteसही में यादों को मिटाना इतना आसान नही होता...वक्त के साथ बस यादें ही है जो कभी नही बदलती...|
सादर नमन |
सत्य वचन मंटू कुमार जी, आप ब्लॉग पे पधारे ...शुक्रिया :)
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