पर्यावरण बचाइये ।


5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस था । सैकड़ों समाजसेवी संगठनों ने अपने-अपने तरह से इस दिन पर्यावरण संरक्षण के संदेश दिए । जल, वृक्ष, जंगल, प्रकृति, पशु-पक्षियों को बचाने के अनेक उपाय सुझाये गए । प्रदूषण, पॉलीथिन, नष्ट न हो सकने वाला कचरा, प्लास्टिक आदि का उपयोग न हो, इसके विषय मे नागरिकों को जागरुक किया गया, किन्तु क्या यह काफी है ?
इस साल भीषण गर्मी ने इंसान व पशु-पक्षियों के हाल-बेहाल कर दिये । कई शाहरों का तापमान 50 डिग्री पार कर गया । प्रचंड गर्मी से लोगों की मृत्यु तक हो गई । पेय जल का भू-स्तर इतना नीचे चला गया कि पहुँच से बाहर हो गया । सूखा प्रभावित क्षेत्रों में लोग पीने के पानी के लिए कई मील पैदल चल रहे हैं । पशु-पक्षी प्यास से मर गए ।
जून माह आधा निकल जाने पर भी बरसात की कोई खबर नहीं । लगभग बीस वर्ष पहले 15 जून मानसून की तिथि मानी जाती थी कि इस दिन मानसून की झमाझम बारिश होगी ही । इतने वर्षों में प्रकृति का चक्र बदल गया क्योंकि न अब पहले जैसी हरियाली रही न प्रदूषण मुक्त स्वच्छ वातावरण । अब हर घर मे गाड़ियाँ, एयर कंडीशनर हैं जिनसे प्रदूषण के साथ ढेर सारी ऊष्मा निकलती है जो वातावरण को गर्म रखते हैं । गाड़ियों से निकलने वाला धुंआ वातावरण को दूषित करता है, कमरे को कश्मीर सा ठंडा करने वाला एसी बाहर की वायु को कितना गर्म करता है ये हम सभी जानते हैं । वाशिंग मशीन में कपड़े धो कर ड्रायर में सुखाने से भी ऊर्जा व्यर्थ होती है । हमारा खान-पान भी वातावरण को प्रभावित करता है । डिब्बा बंद खाद्य पदार्थों में ऊष्मा व ऊर्जा दोनों व्यर्थ होती हैं । उनकी पैकिंग में ऐसे मटीरियल का उपयोग होता है जो ईको फ्रेंडली नहीं होते । डिस्पोजेबल बर्तन व ग्लास भी पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाते हैं । खाद्य पदार्थ को गर्म रखने के लिए उपयोग होने वाला सिल्वर फॉयल व क्लिंग फ़िल्म न केवल स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है बल्कि पर्यावरण को भी हानि पहुंचाता है ।
उपरोक्त सभी जीवन शैली को सरल बनाने वाले व आराम पहुँचाने वाले संसाधन पर्यावरण के दुश्मन हैं ।
विद्वानों का कहना है कि सम्भवतः अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो । ज़रा सोचिए, कैसी विकट स्थिती होगी गर ये हुआ, किन्तु क्या करो हालात ऐसे ही हैं । समूचा देश जल संकट से जूझ रहा है, इस पर भी कुछ लोग नहीं मानते । पानी की बर्बादी से उन्हें कोई सरोकार नहीं ।
पर्यावरण बचाने का संदेश सोशल मीडिया पर डालने से कर्तव्यों की इतिश्री नहीं हो जाती अपितु उसे आचरण में भी लाना आवश्यक है तभी सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे ।
प्लास्टिक व पॉलीथिन के उपयोग को न कहिये, यह कठिन अवश्य है नामुमकिन नहीं । पॉलीथिन ऐसा कचरा है जो अगले सौ वर्षों में भी नष्ट नहीं होता और जहाँ पड़ा हो, भूमि के उस हिस्से को बंजर बना देता है ।
पर्यावरण को बचाने के लिए आप रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से भी छोटे-छोटे कार्य कर सकते हैं ।
RO के दूषित पानी को बाल्टी में जमा कर उसका उपयोग करें ।
बहते हुए नल से बर्तन-कपड़े धोना आदि बंद कीजिये । गाड़ी का उपयोग कम करें । आस पास जाने के लिए सायकल का प्रयोग करें जिससे आपकी सेहत भी अच्छी रहेगी । बरसात के दिनों में खूब पौधारोपण करें व बाद में इन पौधों की देखभाल भी करें ताकि ये पनप सकें । इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाए जिससे बरसात का पानी सुरक्षित रखा जा सके । टपकने वाली नल की टोंटियों को सुधारवाएँ । फुली ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन का उपयोग न करें तो बेहतर है, इससे पानी बहुत बर्बाद होता है ।
यदि हम ये बातें सब अपनी आदतों में शुमार कर लें तो न केवल पर्यावरण बचेगा बल्कि हम जल सरंक्षण में भी अपना योगदान दे सकेंगे ।

- रोली पाठक

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