न हो भयभीत, लड़ो...
उस जली हुई बेटी की देह को जब पिता अंतिम संस्कार के लिए अग्नि देने लगे तो वह बोल उठी
- 'पापा, दोबारा मत जलाइए, बहुत दर्द होता है।'
प्रियंका, खूबसूरत, प्रतिभाशाली, भावुक, भावुक इसलिए कि वह बेज़ुबान जानवरों की तकलीफ समझती थी, समाज से भयभीत, भयभीत इसलिए कि अपनी बहन को अंतिम शब्द यही थे उसके कि मुझे डर लग रहा है, आँखों में भविष्य के अनगिनत सुनहरे सपने होंगें, ऐसी लड़की को चार अनपढ़, नशेलची, आवारा किस्म के लोगों ने अपनी हवस का शिकार बना कर जला कर फेंक दिया।
माता-पिता, बहन उसके घर लौटने की राह देख रहे होंगे, माँ ने रोज की तरह उसका भी खाना बनाया होगा, बहन ने आखरी बार बात कर के उसे हौसला दिया था, लेकिन मन में शंका आ गयी थी किसी अनहोनी की, क्योंकि उसने अपना भय व्यक्त कर दिया था कि उसे डर लग रहा है वहाँ मौजूद लोगों से।
इस दर्दनाक हादसे के बाद पूरे देश में आक्रोश पनपा, धरने,प्रदर्शन, नेताओं के बयान आने लगे, मोमबत्तियां जल जल कर पिघलने लगीं। हत्यारों को तुरन्त सज़ा व मृत्युदंड की आवाज़ चारों ओर से उठी। तभी एक निर्णय आया दिल्ली की एक अदालत से कि 2012 में हुए निर्भया कांड के आरोपी का डेथ वारंट निरस्त हुआ।
हैरानी की बात थी, सब 3 दिन पहले जलाई गई बेटी के न्याय के लिये चीख रहे थे और न्याय की देवी ने आँखों पर पट्टी बाँध बरसों पहले ऐसे ही क्रूर हादसे की शिकार निर्भया को फिर न्याय से वंचित कर दिया।
तेलंगाना के गृह मंत्री ने कहा कि - ''प्रियंका पढ़ी लिखी लड़की थी, उसे बहन की जगह पुलिस को फोन करना था।" इस बयान की खूब धज्जियां उड़ाई गयीं, खूब कोसा गया, यहाँ तक कि गृह मंत्री को क्षमा याचना करनी पड़ी।
एक बार सोचिये- उन्होंने क्या गलत कहा !!! ऐसी परिस्थितियों में जब किसी लड़की को डर लगे तब उसे पुलिस को ही फोन करना चाहिए।
कैसी भी परिस्थिति हो, ठंडे दिमाग से सोच कर उसका सामना करना चाहिए क्योंकि जैसे ही डर हावी होता है दिमाग शून्य हो जाता है। यह कठिन अवश्य है किंतु जीवन रक्षा के लिये आवश्यक है।
यह सच है कि ऐसी भयावह स्थिति में सबसे पहले घरवालों की ही सुध आती है किन्तु वे दूर होते हैं, तुरन्त कुछ नहीं कर सकते, गृह मंत्री जी ने बात तो सही की किन्तु कठोर शब्दों में कही, यदि वे कहते कि - प्रियंका को पुलिस को भी कॉल करना था, तब शायद उनके बयान की आलोचना न होती क्योंकि कोई भी लड़की मुसीबत में सबसे पहले घरवालों को ही याद करती है।
सभी लड़कियों व महिलाओं को यह ठान लेना चाहिए कि कितनी भी कठिन परिस्थिति हो वे उससे लड़ेंगीं, पुलिस को कॉल करें, मोबाइल पर झूठे कॉल पर बात करें और यह दिखाएं कि आपका कोई अपना पास ही है और जल्दी ही आप तक पहुंच रहा है, ज़्यादा खतरा हो तो चीख-पुकार मचा दें, ज़बरदस्ती कुछ करने की स्थिति में हेयर पिन, सेफ्टी पिन, पेपर स्प्रे आदि का उपयोग करें, हमलावर पर पूरी शक्ति से हमला करें, उसके नाजुक अंगों पर प्रहार करें। ये सब उपाय एक हद तक कारगर हो सकते हैं। इन सब में जो सबसे बड़ी बात होगी वह होगी - आपकी हिम्मत।
सरकार पर हमला करना,उसे कोसना, इस सबसे क्या हासिल होना है! हमारे अपने को तो हम खो चुके। ऐसे में आगे इस तरह की घटना से बचने के लिये महिलाओं को सजग व सतर्क रहना बहुत आवश्यक है।
सरकार, पुलिस-प्रशासन को मुस्तैद रहने की आवश्यकता है। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगें, स्ट्रीट लाइट हर जगह हो, कहीं अंधेरा न हो। हर चौराहे पर साल भर और चौबीस घंटे पुलिसकर्मी तैनात हों। पुलिस हेल्पलाइन 100 व अन्य नम्बर हमेशा उपलब्ध हों। किसी भी आपातकालीन स्थिति में पुलिस तुरंत पहुँचे। क्षेत्राधिकार विवाद को त्याग कर हर पुलिस थाना महिलाओं सम्बंधित किसी भी रिपोर्ट पर तुरन्त एक्शन ले।
आदतन अपराधियों, नशेलचियों पर लगाम कसे। सरकार को चाहिए कि पोर्न साइट्स पर तुरंत प्रतिबंध लगाए, साइबर सेल ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप्स पर कड़ी नजर रखे जो पोर्न क्लिपिंग्स शेयर करते हों।
इसके अतिरिक्त बलात्कार के लिए सज़ा ऐसी तय हो जिसके बारे में सोच कर व्यक्ति की रूह कांप उठे जैसे सऊदी अरब, उत्तर कोरिया, मिस्र व मलेशिया में दी जाती है।
सम्भवतः इस तरह हमारी बेटियाँ सुरक्षित रह सकें।
- रोली पाठक
- 'पापा, दोबारा मत जलाइए, बहुत दर्द होता है।'
प्रियंका, खूबसूरत, प्रतिभाशाली, भावुक, भावुक इसलिए कि वह बेज़ुबान जानवरों की तकलीफ समझती थी, समाज से भयभीत, भयभीत इसलिए कि अपनी बहन को अंतिम शब्द यही थे उसके कि मुझे डर लग रहा है, आँखों में भविष्य के अनगिनत सुनहरे सपने होंगें, ऐसी लड़की को चार अनपढ़, नशेलची, आवारा किस्म के लोगों ने अपनी हवस का शिकार बना कर जला कर फेंक दिया।
माता-पिता, बहन उसके घर लौटने की राह देख रहे होंगे, माँ ने रोज की तरह उसका भी खाना बनाया होगा, बहन ने आखरी बार बात कर के उसे हौसला दिया था, लेकिन मन में शंका आ गयी थी किसी अनहोनी की, क्योंकि उसने अपना भय व्यक्त कर दिया था कि उसे डर लग रहा है वहाँ मौजूद लोगों से।
इस दर्दनाक हादसे के बाद पूरे देश में आक्रोश पनपा, धरने,प्रदर्शन, नेताओं के बयान आने लगे, मोमबत्तियां जल जल कर पिघलने लगीं। हत्यारों को तुरन्त सज़ा व मृत्युदंड की आवाज़ चारों ओर से उठी। तभी एक निर्णय आया दिल्ली की एक अदालत से कि 2012 में हुए निर्भया कांड के आरोपी का डेथ वारंट निरस्त हुआ।
हैरानी की बात थी, सब 3 दिन पहले जलाई गई बेटी के न्याय के लिये चीख रहे थे और न्याय की देवी ने आँखों पर पट्टी बाँध बरसों पहले ऐसे ही क्रूर हादसे की शिकार निर्भया को फिर न्याय से वंचित कर दिया।
तेलंगाना के गृह मंत्री ने कहा कि - ''प्रियंका पढ़ी लिखी लड़की थी, उसे बहन की जगह पुलिस को फोन करना था।" इस बयान की खूब धज्जियां उड़ाई गयीं, खूब कोसा गया, यहाँ तक कि गृह मंत्री को क्षमा याचना करनी पड़ी।
एक बार सोचिये- उन्होंने क्या गलत कहा !!! ऐसी परिस्थितियों में जब किसी लड़की को डर लगे तब उसे पुलिस को ही फोन करना चाहिए।
कैसी भी परिस्थिति हो, ठंडे दिमाग से सोच कर उसका सामना करना चाहिए क्योंकि जैसे ही डर हावी होता है दिमाग शून्य हो जाता है। यह कठिन अवश्य है किंतु जीवन रक्षा के लिये आवश्यक है।
यह सच है कि ऐसी भयावह स्थिति में सबसे पहले घरवालों की ही सुध आती है किन्तु वे दूर होते हैं, तुरन्त कुछ नहीं कर सकते, गृह मंत्री जी ने बात तो सही की किन्तु कठोर शब्दों में कही, यदि वे कहते कि - प्रियंका को पुलिस को भी कॉल करना था, तब शायद उनके बयान की आलोचना न होती क्योंकि कोई भी लड़की मुसीबत में सबसे पहले घरवालों को ही याद करती है।
सभी लड़कियों व महिलाओं को यह ठान लेना चाहिए कि कितनी भी कठिन परिस्थिति हो वे उससे लड़ेंगीं, पुलिस को कॉल करें, मोबाइल पर झूठे कॉल पर बात करें और यह दिखाएं कि आपका कोई अपना पास ही है और जल्दी ही आप तक पहुंच रहा है, ज़्यादा खतरा हो तो चीख-पुकार मचा दें, ज़बरदस्ती कुछ करने की स्थिति में हेयर पिन, सेफ्टी पिन, पेपर स्प्रे आदि का उपयोग करें, हमलावर पर पूरी शक्ति से हमला करें, उसके नाजुक अंगों पर प्रहार करें। ये सब उपाय एक हद तक कारगर हो सकते हैं। इन सब में जो सबसे बड़ी बात होगी वह होगी - आपकी हिम्मत।
सरकार पर हमला करना,उसे कोसना, इस सबसे क्या हासिल होना है! हमारे अपने को तो हम खो चुके। ऐसे में आगे इस तरह की घटना से बचने के लिये महिलाओं को सजग व सतर्क रहना बहुत आवश्यक है।
सरकार, पुलिस-प्रशासन को मुस्तैद रहने की आवश्यकता है। जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगें, स्ट्रीट लाइट हर जगह हो, कहीं अंधेरा न हो। हर चौराहे पर साल भर और चौबीस घंटे पुलिसकर्मी तैनात हों। पुलिस हेल्पलाइन 100 व अन्य नम्बर हमेशा उपलब्ध हों। किसी भी आपातकालीन स्थिति में पुलिस तुरंत पहुँचे। क्षेत्राधिकार विवाद को त्याग कर हर पुलिस थाना महिलाओं सम्बंधित किसी भी रिपोर्ट पर तुरन्त एक्शन ले।
आदतन अपराधियों, नशेलचियों पर लगाम कसे। सरकार को चाहिए कि पोर्न साइट्स पर तुरंत प्रतिबंध लगाए, साइबर सेल ऐसे व्हाट्सएप ग्रुप्स पर कड़ी नजर रखे जो पोर्न क्लिपिंग्स शेयर करते हों।
इसके अतिरिक्त बलात्कार के लिए सज़ा ऐसी तय हो जिसके बारे में सोच कर व्यक्ति की रूह कांप उठे जैसे सऊदी अरब, उत्तर कोरिया, मिस्र व मलेशिया में दी जाती है।
सम्भवतः इस तरह हमारी बेटियाँ सुरक्षित रह सकें।
- रोली पाठक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद यशोदा जी।
Deleteमार्मिक एवं सटीक प्रस्तुति
ReplyDeleteरोली दी,न जाने कब हमारे देश में कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाएगा और हमारी बेटियां बेखौफ हो सकेगी। मार्मिक प्रस्तूति।
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