विश्व पृथ्वी दिवस

आज विश्व पृथ्वी दिवस है। इसे पहली बार अप्रैल 1970 में इस उद्देश्य से मनाया गया था ताकि लोगों को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके।
वैश्विक महामारी कोविड-19 के चलते लगभग पूरे विश्व में सन्नाटा है। सड़कें सूनी हैं, धुंआ उगलती चिमनियां शांत हैं, छोटे-बड़े कारखानों, मिलों की मशीन स्थिर हैं। अरबों-खरबों के इस नुकसान के बीच यदि कोई मुस्कुरा रहा है तो वह है - पर्यावरण। प्रदूषण का स्तर पैमाने में बहुत नीचे आ चुका है। भयानक प्रदूषित शहरों में शुमार दिल्ली जैसी जगहों की फ़िज़ां मुस्कुरा रही है। अनेक शहरों में सड़कों पर मोर नाचते व बंदर धमाचौकड़ी करते दिख रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया के एडिलेड में कंगारू शहर के अंदर आ गए हैं, कहीं पेंग्विन्स पंक्तिबद्ध हो फुटपाथ पर चलती दिखाई दे रही हैं। आबोहवा इतनी साफ हुई कि जालंधर से हिमालय दिखने लगा।
यह नतीजा है इंसान के घर मे रहने का। प्रदूषण अत्यंत कम होने के कारण पंछियों का कलरव, कोयल की कूक सारा दिन सुनी जा सकती है।
वायु में वाकई प्राण आ गए हैं।
कोरोना के भीषण संकट का यह एक विचित्र सुखद पहलू है जिससे पशु-पक्षी आनंदित हैं।
पृथ्वी के प्रदूषण से बंद रोमछिद्र खुल गए हैं, वह सांस ले रही है।
स्वच्छ नदियां कलकल करती बह रहीं हैं। प्रदूषित गंगा का करोड़ों का स्वच्छता अभियान वो न कर सका जो लॉक डाउन ने कर दिखाया। यह इसका सबसे सकारात्मक पहलू है।
कोरोना संकट की समाप्ति के पश्चात समूचे विश्व में हर हफ्ते एक दिन का लॉक डाउन अनिवार्य करना चाहिये जिससे धरती-आकाश भी सांस ले सकें।
आज 'अर्थ डे' पर पृथ्वी मुस्कुरा रही होगी क्योंकि इतने वर्षों में आज अर्थ डे सार्थक हुआ है ।

- रोली

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