चन्दा की डोली
हर रात की अजब कहानी है
कभी अमावस कभी है पूर्णिमा..
हर रात चन्द्रमा की नयी है भंगिमा
पूनम का चाँद लगे एक गहना
नाज़ुक सी कलाई में मानो
कंकण हो पहना
बिखरे हैं तारे जैसे गोरी की चूनर
चन्दा लगे जैसे माथे पे झूमर
बादलों से लुक-छिप जैसे गोरी शर्माए
घुंघटा उठाये और उठा के गिराए
पिया संग जैसे करे अठखेलियाँ
श्यामल मेघ यूं चन्दा को छुपायें
काली चूनर ओढ़ जैसे गोरी मुस्काये
चम् चम् तारे उसकी चूनर में पड़े हैं
जरी गोटा नगीने और सितारे जड़े हैं
पूनम का चाँद सितारों का साथ...
जैसे छम छम करती आई बारात
ये है पूर्णिमा की रात...ये है पूर्णिमा की रात..
-रोली पाठक.
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
अरे! वाह ब्लॉग का नया कलेवर -सुन्दर लग रहा है- पर बात इस कविता की, भंगिमा, कंकण जैसे शब्दों ने कविता में गति पैदा कर दी है भंगिमा तो बहुत कम सुनने को आता है सुन्दर शब्द चित्र खींचा है आपने ...."
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना
amitraghat.blogspot.com
आपको नए कलेवर में ब्लॉग पसंद आया, धन्यवाद.
ReplyDeleteआपको इनविटेशन भेजा है हमने...कुछ लिखिए!
जी,बिल्कुल बहुत जल्द, शुक्रिया आपका.......
ReplyDeleteप्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
pranava ji .aati sundar rachana dil se aabhar. kavita me kuchh aalag shabdon keprayog ne rochakata paida kar di hai.
ReplyDeletepoonam