मेरी नन्ही परी....
नन्ही सी कोमल कली
रुई के फाहे सी सफ़ेद
घुंघराले काले केशों के संग
मानो श्याम मेघों के
बीच चंदा,रहा दमक...
आसमान सी नीली
पोशाक में लिपटी..
इन्द्रनुषी आभा सी दमकती..
मेरे आँचल में चमकती...
नयनों की डिबिया को
झप-झप झपकाती..
कस के बंद
गुलाबी मुट्ठियों को
हिलाती-डुलाती
अलि सी गुनगुन में
गुनगुनाती-इठलाती
मुझे मातृत्व का
एहसास कराती...
परीलोक की मेरी ये शहज़ादी
मानो मुझसे पूछती सी...
माँ तू नाराज़ तो नहीं
की मै बेटी हूँ...!!!!!!!
पलकों से उसे सहला के
आंसुओं से मैंने उसे नहला के
गर्व से गोद में उठा कर
हजारों चुम्बन बरसा कर
हौले से कहा उसे-
बिटिया...मेरी तरह तू भी..
एक बेटी, एक बहिन, एक गृह-लक्ष्मी और..
एक माँ होगी.
समझेगी तू ही
मेरी हर पीड़ा को...
हमारी दुलारी है तू
पिता की प्यारी है तू
रौशन होगा तुझसे ही
अपने घर का हर कोना
हर त्यौहार में तू ही
रचेगी-बसेगी...
तेरी किलकारी से
हमारी दुनिया सजेगी...
जब-जब तू खिलखिलाएगी
बिटिया हमारी दुनिया जगमगाएगी....
-रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
"कितना ज़बरदस्त विरोधावास। दो अलग-अलग टेम्परामेंट की कविताएँ एक तरफ लाश और दूसरी ओर आशा और उमंग जगाती "मेरी नन्ही परी"। विचार कितनी तेज़ी से गति करते हैं। बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता लिखी है आपने, वो भी सुन्दर शब्दों के साथ । लड़कियाँ बेहद प्यारी होती हैं बिना उनके घर एकदम खण्डहर-सा लगता है उनके होने से दुनियाँ जगमगा जाती है.....साथ में सुन्दर-सी फोटो भी अच्छी लगी....."
ReplyDeleteप्रणव जी,
ReplyDeleteज़िन्दगी इसी का तो नाम है...कभी छाँव कभी धूप...!!
कविता आपको पसंद आई उसके लिए धन्यवाद... साथ में
जो फोटो है वो मेरी दोनों बेटियों की है :)
ऐसी कविताओं के सृजन की आवश्यकता है ।
ReplyDeleteधन्यवाद अरुणेश जी...
ReplyDeleteब्लॉग ज्वाइन करने हेतु धन्यवाद...
Awesome!2 good!
ReplyDeleteThanx Jahnvi... :)
ReplyDeleteफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी..
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