हरेक को तलाश है, धूप में छाँव की
मशीनों के शोर से दूर, इक गाँव की
भागती जिंदगी में, एक ठहराव की
मीलों के काफिले में, एक पड़ाव की |
- रोली
मशीनों के शोर से दूर, इक गाँव की
भागती जिंदगी में, एक ठहराव की
मीलों के काफिले में, एक पड़ाव की |
- रोली
वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते... उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़
एक बेहद संतुलित कविता।
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी |
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