बराबर रहें..साथ रहें..
विश्व महिला दिवस की सभी सखियों को अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं।
हमारा दिन तो रोज ही होता है, आज का दिन बस उस रोज में से कुछ लम्हे चुरा कर उसे सेलिब्रेट करने का है, अंतर्मन में झांकने का कि - मैं जो भी कर रही हूँ, वह ठीक है न! सही है न!
आज का दिन वह है कि जो साल भर हमने घर, परिवार, समाज को दिया है, उनके लिए हमें पुरुस्कृत किया जाये।
आज पुरुष हमें मंच पर सम्मानित करते हैं,अहसास दिलाते हैं कि तुम कम नहीं, बराबर हो बल्कि कई बार हमसे बढ़ कर हो।
जब पुरुष नारी का सम्मान करते हैं तब उनके बीच विश्वास बढ़ता है, नारी की शक्ति बढ़ती है और पुरुष की ज़िम्मेदारी।
दबी,कुचली, रोती, सिसकती, लाचार नारी को अब अक्सर पुरुष ही सहारा दे कर उसे शक्ति का अहसास कराते हैं। उसके आँसू पोंछ कर उसका मनोबल बढ़ाते हैं।
समय बदल रहा है, कुरीतियाँ पूरी तरह समाप्त होने में सदियां लगती हैं किंतु आगाज़ हो चुका है एक ऐसे समाज का जहाँ शिक्षा व नई और खुली सोच ने पुरुष को आगे बढ़ाया है कि वह महिलाओं को उनके अधिकार बताये, उनकी शक्ति का अहसास कराए व एक नए समाज के निर्माण में स्त्री को बराबरी पर रखे। माना कि अभी इस तरह का आँकड़ा बहुत कम है किंतु यह अच्छी शुरुआत है। एक दूजे के पूरक स्त्री व पुरुष जब एक दूसरे के कद को, व्यक्तित्व को बराबर समझेंगे, तब एक नवीन, भयमुक्त समाज का निर्माण होगा। वर्तमान में कानून ने स्त्रियों को बहुत से अधिकार दिए हैं, बस, हम उनका उपयोग करें, दुरुपयोग नहीं।
कोई भी क्षेत्र आज हमारी उपस्थिती से अछूता नहीं, हम अपनी गरिमा, मर्यादा व सम्मान यूँ ही बनाये रखें।
दिन भले ही हमारा है किंतु साथ पुरुष का भी हो तो कहीं भी सफलता का परचम लहराया जा सकता है।
तो बिना लैंगिक भेदभाव के, एक दूजे के साथ हर रोज महिला दिवस मनाइए ।
- रोली पाठक
हमारा दिन तो रोज ही होता है, आज का दिन बस उस रोज में से कुछ लम्हे चुरा कर उसे सेलिब्रेट करने का है, अंतर्मन में झांकने का कि - मैं जो भी कर रही हूँ, वह ठीक है न! सही है न!
आज का दिन वह है कि जो साल भर हमने घर, परिवार, समाज को दिया है, उनके लिए हमें पुरुस्कृत किया जाये।
आज पुरुष हमें मंच पर सम्मानित करते हैं,अहसास दिलाते हैं कि तुम कम नहीं, बराबर हो बल्कि कई बार हमसे बढ़ कर हो।
जब पुरुष नारी का सम्मान करते हैं तब उनके बीच विश्वास बढ़ता है, नारी की शक्ति बढ़ती है और पुरुष की ज़िम्मेदारी।
दबी,कुचली, रोती, सिसकती, लाचार नारी को अब अक्सर पुरुष ही सहारा दे कर उसे शक्ति का अहसास कराते हैं। उसके आँसू पोंछ कर उसका मनोबल बढ़ाते हैं।
समय बदल रहा है, कुरीतियाँ पूरी तरह समाप्त होने में सदियां लगती हैं किंतु आगाज़ हो चुका है एक ऐसे समाज का जहाँ शिक्षा व नई और खुली सोच ने पुरुष को आगे बढ़ाया है कि वह महिलाओं को उनके अधिकार बताये, उनकी शक्ति का अहसास कराए व एक नए समाज के निर्माण में स्त्री को बराबरी पर रखे। माना कि अभी इस तरह का आँकड़ा बहुत कम है किंतु यह अच्छी शुरुआत है। एक दूजे के पूरक स्त्री व पुरुष जब एक दूसरे के कद को, व्यक्तित्व को बराबर समझेंगे, तब एक नवीन, भयमुक्त समाज का निर्माण होगा। वर्तमान में कानून ने स्त्रियों को बहुत से अधिकार दिए हैं, बस, हम उनका उपयोग करें, दुरुपयोग नहीं।
कोई भी क्षेत्र आज हमारी उपस्थिती से अछूता नहीं, हम अपनी गरिमा, मर्यादा व सम्मान यूँ ही बनाये रखें।
दिन भले ही हमारा है किंतु साथ पुरुष का भी हो तो कहीं भी सफलता का परचम लहराया जा सकता है।
तो बिना लैंगिक भेदभाव के, एक दूजे के साथ हर रोज महिला दिवस मनाइए ।
- रोली पाठक
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 08 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार एवं बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा जी।
DeleteBahu khoob
ReplyDeleteधन्यवाद आपका ।
DeleteBahut khoob abkahi mere man ki baat
ReplyDeleteDono hi ek doosre kbina adhhore hain gaari me paheeye barabar k hote hain tabhi gantavay per aasaani se pahoonch sakten hain
धन्यवाद जी। बिल्कुल सटीक बात कही आपने। आभार।
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