कान्हा संग लगा के प्रीत
हार बैठी मन अपना....
अब जो देखूँ पिया को भी..
हार बैठी मन अपना....
अब जो देखूँ पिया को भी..
नज़र आये बैरी कान्हा...
रोज़ करती थी श्रृंगार
रुच-रुच जब मंदिर में,
कान्हा की भोली सूरत
हर गई मोरा मनवा ,
अब ना भाये कोई रंग,
बस भाये रंग सांवरा,
राधा,मीरा,रुक्मणी से,
रोज़ करती थी श्रृंगार
रुच-रुच जब मंदिर में,
कान्हा की भोली सूरत
हर गई मोरा मनवा ,
अब ना भाये कोई रंग,
बस भाये रंग सांवरा,
राधा,मीरा,रुक्मणी से,
जले मन बावरा..
चहुँ ओर अब आये नज़र,
मेरा मनभावना,
मेरा सलोना-सांवला,
नज़र आये बैरी कान्हा...
-रोली....
कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर
मेरे सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनायें _/\_
चहुँ ओर अब आये नज़र,
मेरा मनभावना,
मेरा सलोना-सांवला,
नज़र आये बैरी कान्हा...
-रोली....
कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर
मेरे सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनायें _/\_
pahili baar apke blog par aakar achcha laga... happy janmastmi
ReplyDeletebhut hi sundar... happy janmaastmi....
ReplyDeleteजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteसादर
Radha , meera, Rukmani se, jale manwa mora.
ReplyDeletewahhh!!!!!!!!!! roliji .wah! ye lines aapki kanha
ke prati ananya bhakti ko darshati hai..bahut
sundar kavita, aapka abhar.