ना लो सब्रे-इम्तेहान अवाम का,
गर चिंगारी शोला बन गयी तो,
संभाल ना पाओगे...........
क्यों कर हवा दे रहे हो इसे,
इस आग में खुद ही जल जाओगे....
लटक रहा दारो-रसन अब तुम्हारे ऊपर,
कब तक इससे खुद को बचा पाओगे....
देख लो अवामे-ज़ारहिय्यत,
चले जाओ कि,
खानखाह में ही अब तुम बच पाओगे.......
( दारो-रसन : सूली व् फाँसी की रस्सी,
ज़ारहिय्यत : गुस्सा ,
खानखाह : वे गुफाएं जहाँ ईश्वर की इबादत में समय बिताया जाता है )
-रोली....
गर चिंगारी शोला बन गयी तो,
संभाल ना पाओगे...........
क्यों कर हवा दे रहे हो इसे,
इस आग में खुद ही जल जाओगे....
लटक रहा दारो-रसन अब तुम्हारे ऊपर,
कब तक इससे खुद को बचा पाओगे....
देख लो अवामे-ज़ारहिय्यत,
चले जाओ कि,
खानखाह में ही अब तुम बच पाओगे.......
( दारो-रसन : सूली व् फाँसी की रस्सी,
ज़ारहिय्यत : गुस्सा ,
खानखाह : वे गुफाएं जहाँ ईश्वर की इबादत में समय बिताया जाता है )
-रोली....
बहुत सुन्दर रचना, सार्थक और खूबसूरत प्रस्तुति .
ReplyDeleteशुक्ला जी, धन्यवाद...
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