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ना जाने क्यों ऐसे हालात हो गए हैं.... बदले-बदले से सबके, खयालात हो गए हैं... हम तो पहले जैसे ही, अब भी हैं मगर... बदले-बदले से सबके जज़्बात हो गए हैं.... वो निगाहें भी हैं बदली-बदली अंदाज़ भी बदला सा लगता है, मौसम के साथ बदल जाना, सबके ऐसे,खयालात हो गए हैं... बदले-बदले से सबके जज़्बात हो गए हैं.... बहुत खायी थीं कसमें, वादे भी बहुत किये थे मगर, अब तो पहचानते तक नहीं, उफ़, ये कैसे हालात हो गए हैं.... बदले-बदले से सबके जज़्बात हो गए हैं... -रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/