Posts

Showing posts from November, 2011

बेदर्द ज़माना

Image
 इस ज़माने में दर्द बहुत है  आइना-ए-ईमान में गर्द बहुत है, कई  दफा दिखी दम तोड़ती इंसानियत, जज़्बात-ए-इन्सां अब सर्द बहुत है.... वक़्त बुरा हो, तब हाथ बढ़ाता नहीं कोई, कहने को तो यूँ यहाँ, हमदर्द बहुत हैं.... मजलूम पर और भी, ढाती है ज़ुल्म दुनिया , जाने क्यों  इन्सां यहाँ ,  बेदर्द बहुत हैं.... -रोली...
Image
रूमानियत सारी तब फना हो जाती है जब चाँद की जगह रोटी नज़र आती है... तू मुझे स्वप्न में, भी नहीं दिखती है अब, मुफलिसी मेरी, मुझे रुसवा कर जाती है... न सूझती है अब, तेरी  जुल्फों पे शायरी मुझे, भूख दो वक्त की, सब कुछ भुला जाती है.... कैसे लिखूँ गीत मै, लाऊं कहाँ से इक ग़ज़ल, तू भी तो मेरी मुफलिसी से, दामन छुड़ा जाती है... रूमानियत  सारी तब फना हो जाती है, जब चाँद की जगह रोटी नज़र आती है....... -रोली...