"सुबहें" सर्द और ये खामोशी "दिन" में है दर्द और मायूसी "शामें" भी तनहा-तनहा सी "रात" में यादों की मदहोशी । - रोली
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Showing posts from 2013
गुलाबी जाड़ा
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नींद में डूबी हुयी ओस में भीगी हुयी मखमली जाड़े का अहसास कराती दरख्तों की कोमल नर्म-हरी पत्तियाँ आ गयीं लो अब गुलाबी सर्दियाँ................. शबनम को मोती सा खुद में समेटे हुए एक-एक पंखुड़ी को खुद में लपेटे हुए ओस में भीगी हुयी गुलाब की ये कलियाँ आ गयीं लो अब गुलाबी सर्दियाँ.................. गुनगुनी धूप अब भाने लगी है गर्म चाय रास अब आने लगी है समेट लो जंगल से जा कर लकड़ियाँ आ गयी लो अब गुलाबी सर्दियाँ.................. रात भर की ओस में खूब भीगी दूब मखमली कालीन पर ज्यों मोती जड़े हों टूट कर बिखरे हुए माला के मोती जैसे धरती पर यूँ बिखरे पड़े हों, खूबसूरत हो चलीं ये वादियाँ आ गयी लो अब गुलाबी सर्दियाँ..................
नमन.....
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शहादत पर शहीदों की जो उँगलियाँ उठाते हैं, कभी उनके भी अपनों से वो मिल तो लें इक बार, वो जिनके लहू के कतरों पर भी परदे गिराते हैं, कभी देखा है इनने उनको रोते हुए ज़ार-ज़ार... ये कहते फ़र्ज़ था उनका यूँ सरज़मीं पे मिट जाना कभी क्या अपने किसी को वहाँ भेजने को हैं तैयार ! कितना होता है आसां खबरें पढ़ के उनको भूल जाना, ये पूछो उनसे जिनके अपनो ने की वतन पे जां निसार... चंद रूपये होती नहीं कीमत किसी बेटे की जान की, वो चाहें करें इज्ज़त लोग उनकी शहादत के नाम की... वो जो संगीनें ले कर दिन-रात को सीमा पे ठहरे हैं हम-तुम सो सकें सुकूं से इसलिए, देते ये पहरे हैं फिर क्यों उनके लहू को ये लोग यूँ बदनाम करते हैं उनकी शहादत पर क्यूँ ना अपनी आखें नम करते हैं वो बेटा है वो शौहर है वो किसी बहन का है इक भाई जो राखी ले कर राह ताकेगी जो मिट चुकी है कलाई यूँ ना किसी वीर की शहादत का अपमान कभी करना जो मर मिटा अपने देश पर अभिमान उस पर करना सदा अभिमान उस पे करना, अभिमान उस पे करना... - रोली पाठक
एक याद....
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एक याद जो बेवक्त आ जाती है .... एक याद जो पल पल सताती है ..... तुम्हारी ख़ामोशी हजारों अलफ़ाज़ लिए, मेरी बातें खामोश सा प्यार लिए, रातों की नींदे चुराती है ..... तुम्हारा स्पर्श समेटे हुए हजारों चुम्बन, मेरे चुम्बन जन्मो का प्यार लिए, तुम्हारी आँखें छलकाते हुए प्यार के पैमाने, मुझे जन्नत तक ले जाती है...... एक याद जो बेवक्त आ जाती है....... - रोली
सिला...
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किसी को दिल से चाहने का मिला ये सिला है हमें भी अपने गैर होने का आज बेहद गिला है मुन्तज़िर रहीं जिसके लिए हमेशा ये निगाहें दरमियाँ उनके ही आज सदियों का फासला है.... सेहरा में साथ तेरे खामोश चलते रहे हम भी मंजिल पे जा कर जाना दुश्मन का काफिला है.... तसव्वुर में बसाया था जिसे सबसे छुपा कर पाया कि नक़ाब में नदीम के रक़ीब मिला है....!!! - रोली
दीवानगी
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किसी की चाहत को उल्फ़त समझने की भूल ना हो जाए ...........ये वो खता है जो गलती से भी कबूल ना हो जाये । ........आरजू की थी कभी तेरी पर खामोश रहेंगे अब हम , कीमत मेरी गुस्ताखियों की जब तक वसूल ना हो जाए । ..........गमगुस्सार हूँ मै तेरा, कोई आसिम नहीं हमदम डरता हूँ मुझसे जुम्बिश कहीं कोई उल-जलूल ना हो जाए । .............मुन्तजिर ही रहे तेरी इक निगाह-ए-करम के हम, तुझे देखा नहीं कि दीवानगी में हमसे कोई भूल ना हो जाए । - रोली
अंधा क़ानून
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छोटी-छोटी मासूम बच्चियों के साथ होने वाले बलात्कार के आंकड़े मन से विश्वास उठाते हैं । आज कोई रिश्ता-नाता विश्वसनीय नहीं रह गया । हर रोज़ अखबार देश के किसी कोने में एक मासूम की अस्मत तार-तार होने की खबर ले कर आता है । कभी बच्ची मौत से संघर्ष करती रहती है, कभी उस दरिंदे की हवस के बाद मौत के घाट उतार दी जाती है । समाज का नैतिक पतन चरम सीमा पर है । मन आहत हो उठता है उस बच्ची की दुर्दशा की कल्पना मात्र से । जिसके दिन गुड़िया-गुड्डे से खेलने के हैं उसके साथ ऐसी वहशियाना हरकत !!!!! छोटी मासूम बच्चियों पर इस तरह का वीभत्स अमानवीय ज़ुल्म करने वाले निश्चित तौर पर इंसान नहीं हो सकते । खबर ये भी होती है कि त्वरित न्याय प्रणाली के अंतर्गत अपराधी को फलां न्यायालय ने मृत्यु-दंड की सज़ा सुनाई, किन्तु आज तक ऐसे मामलों में कितनी गर्दन फाँसी के तख्ते तक पहुंची ??? एक भी नहीं , क्योंकि जिस अदालत के फैसले की हम सराहना करके उसे भूल जाते हैं, उसके ऊपर कई अपील कोर्ट्स हैं । इस पंगु न्याय प्रणाली को सुधार की सख्त आवश्यकता है । कब न्याय की देवी की आँखों की पट्टी हटेगी ??? कब तक गुनाहगार साक्
माज़ी
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कौन है इस जहां में जिसका कोई माज़ी नहीं ये बात और है लोग बीते कल को भुला देते हैं वो कम होते हैं जो गुजरी यादों से लिपट कर ताउम्र उनके दर्द में जीने का मज़ा लेते हैं....... अश्कों से लिपटे हुए वो उसके सर्द अहसास अब भी अलाव की लौ सा जलाते रहते हैं ...... उसके साथ गुज़ारे मेरे वो हसींन लम्हें हर वक़्त साथ जीने का सा मज़ा देते हैं ......... कैसे हैं लोग इस दुनिया में और इक तू भी, जो खुद से खुद का ही दामन छुड़ा लेते हैं ....... एक हम हैं जो अश्कों के लावे में खुद को डुबो कर, हर रोज़ तेरी यादों को दिल में पनाह देते हैं ........... - रोली
ढाई आखर का प्रेम
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भँवरे का कली संग, बरखा का बादलों संग, चाँद का चकोर से, कृष्ण का राधा से, यही है प्रेम । वो रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं , ना रूप, ना आकार । जिसमे ना अपेक्षाएं, न स्वार्थ, यह है प्रेम । एक ऐसी भावना, जिसके वशीभूत हो तरंगिनी सागर से जा मिले , किन्तु वह मिलन दिखाई ना दे । सूर्य को प्रेम है प्रकृति से । अपनी रश्मियाँ वह हरेक कली, फूल, वृक्ष व् प्राणी पर समान रूप से लुटाता है । मेघ अपनी प्रेम की बूंदों से अभिसिंचित करता है धरती को । उसकी बूँदें नेह बन जब बरसती हैं तब मुरझाई प्रकृति में प्राण आ जाते हैं , यही है प्रेम । पंछियों को प्रेम है उन्मुक्त आकश से , जहाँ वे स्वच्छंद उड़ते-फिरते हैं । कलरव करते हैं । प्रेम वह भावना है जिसमे अनेक रंग समाहित हैं - आनंद , ईर्ष्या, पीड़ा , त्याग, समर्पण आदि । इस पूरी कायनात में इंसान का प्रेम सर्वाधिक प्रायोगिक है । कई बार इस भावना में सराबोर वह आकंठ डूबा रहता है , कभी ईर्ष्यावश द्वेष की भावना उपजा लेता है, कभी वह पीड़ा में बोझिल दिन-रात दर्द सहता है, कभी समर्पण में आंतरिक सुख की अनुभूति करता है । प्रेम वह भावना है जहाँ सारे स्वार्थ सिमट जाते हैं,
भ्रष्टाचार
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आज फिर अटक गयी नज़र मुख्य पृष्ठ की हेडलाइन पर आजकल कमबख्त अखबार सुनाता है बस यही समाचार - पीडब्ल्यूडी विभाग का है इंजीनियर लाखों दबा लिए अंदर-ही-अंदर ... खोला गया जब, जनाब का लॉकर उगले उसने लाखों के जेवर सोना-चाँदी- हीरे , नगदी और एफ.डी. और ज़मींन-जायदाद के पेपर ... विभाग के ही एक प्रतिद्वंदी ने, की थी आयकर विभाग को खबर पूछताछ में इधर - गिड़गिड़ाया इंजीनियर - हुज़ूर, मैं तो इक छोटा सा मोहरा हूँ क्यूँ मेरी गर्दन दबा रहे हैं पकड़ो उन अफसरों को जो मेरे मार्फ़त खा रहे हैं ... किन्तु ये ना भूलना साहब, लिस्ट में आपके अफसरों के भी, नाम आ रहे हैं ...... देता हूँ सबूत संग, नामों की लिस्ट क्या पकड़ पायेंगे ,उन लोगों की रिस्ट ....??? खा गया लिस्ट देख कर चक्कर, वो बेचारा आयकर का ईमानदार अफसर किस नेता को छोडूँ, किस अफसर को पकडूँ ये तो सारे-के-सारे , हैं घनचक्कर । इसीलिए मेरा ये देश लुटा जा रहा है लुट गयी सोने की चिड़िया, सिस्टम अब उसका माँस भी खा रहा है ... - रोली
विश्व महिला दिवस !!!
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हम सिर्फ आज ही के दिन नारी के अधिकार व उसके अस्तित्व की बातें करते हैं, क्यों ? नारी जननि है | घर की इज्ज़त है | पिता का अभिमान, भाई का मान व ससुराल का सम्मान है, जिस पर कभी ठेस नहीं लगनी चाहिए , किन्तु वह स्वयं के लिए क्या है ??? महिलाएं कई प्रकार की होती हैं - शिक्षित महिलाएं, आत्म-निर्भर महिलाएं, घरेलू महिला, समाज-सेविका, संघर्षरत महिला, ग्रामीण महिला, दमित महिला, क्रांतिकारी नारी , समाज सेविका, उपभोग के लिए उपलब्ध नारी, उच्च पदस्थ महिला, राजनीति में सक्रीय नारी , मजदूर स्त्री आदि-आदि | शहरों व महानगरों की महिलाएं निश्चित ही काफी हद तक स्वतंत्र हैं | रहन-सहन, वेश-भूषा, निर्णय लेने के अधिकार, आत्मनिर्भरता यह सब उनके अधिकार क्षेत्र में है किन्तु नारी तो वो भी है जो हाथ भर का घूँघट निकाल कर आज भी डोली में बैठ कर जिस देहरी के अंदर आती है, उसकी अर्थी ही उसे लांघ पाती है | इसके बहुत से कारण है - अशिक्षा , रूढिवादिता , दकियानूसी परम्परायें | जींस पहन कर फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना आधुनिकता नहीं है | फेसबुक, ट्विटर, कम्पूटर, लैपटॉप, टैब , मोबाइल आदि की अधिकतम जानकरी रखना आधुनिकता नहीं
पहेली
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मै सुबह उठता और नींद में डूबे हुए खामोश मोहल्ले को हरकत में आते देखता । उजाला धीरे-धीरे अँधेरे की पकड़ से आज़ाद होता हुआ दिखता । पेपर बाँटने वाले पेपरों की पुन्गियाँ बना कर नीम अँधेरे में सटीक निशाने पर उन्हें उन्हें चलती साइकल से फेंकते दिखते । दूधवाले प्लास्टिक के चौकोर टबों में तीन-चार रंगों के पैकेट रखे , घर-घर उन्हें बांटते दिखते । साइकल के दोनों ओर डब्बे लटकाए घर-घर जा कर लीटर से मापते, देहरी पर बर्तन लिए गृहिणी को देते हुए दृश्य अब ना के बराबर दिखते । मै बिस्तर छोड़, मुँह में टूथ ब्रश घुसेड़े मोहल्ले का आलस्य देखा करता । बालकनी में सुबह पन्द्रह-बीस मिनट खड़े होकर इस मोहल्ले की सुबह देखना मेरी दिनचर्या थी । अंगडाई लेकर मोहल्ला हौले-हौले जाग रहा था । ठीक सामने वाली बालकनी का दरवाज़ा आज अब तक बंद था । वक्त देखा, सवा छह बज रहे थे । अंदर आ कर कुल्ला किया, मुँह धो कर फिर बाहर आ कर खड़ा हो गया । नीचे पैरों पर अखबार दुनिया भर की ख़बरें समेटे चुपचाप पड़ा था । बेमन से मैने उसे उठाया, खोला, तभी चित-परिचित कुण्डी के खड़कने की आवाज़ आई । मै चौकन्ना हो गया नज़रों के सामने अखबार तान
बेबसी
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कैसी है उलझन जो सुलझती नहीं गांठे रिश्तों की अब खुलती नहीं ............ चाहूँ सीधे रास्तों पे सफर तय करना इस तरह मंजिल मगर मिलती नहीं ........ गीत तो कई सजे हुए हैं मेरे अधरों पर , क्या करूँ कि मन वीणा अब बजती नहीं ...... निर्झरिणी सा बहे जा रहा मेरा ये मन , काया है वहीँ जहाँ खुशियाँ मुझे मिलती नहीं ........... रहना होगा जंजीर से जकड़ी हुई इस देह को, पीड़ा रिश्तों की मगर, देख सकती नहीं..... चाहूँ मै, कि तोड़ दूँ ये सारे मिथ्या बंधन , किन्तु नारी हूँ...पाषाण मै बन सकती नहीं.......... - रोली
|| वंदे मातरम ||
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भारतीय सेना दिवस की हार्दिक शुभकामनायें ------------------------------------------------ लेफ्टिनेंट जनरल (बाद में फील्ड मार्शल) के एम करियप्पा ने आज के दिन (15 जनवरी 1948) भारतीय सेना के पहले भारतीय कमांडिग इन चीफ के रूप में वर्ष 1948 में अंतिम ब्रिटिश कमांडर सर फैंसिस बुचर से पदभार संभाला था. इस तरह लेफ्टिनेंट करियप्पा लोकतांत्रिक भारत के पहले सेना प्रमुख बने | इसी की याद में भारत में हर साल 15 जनवरी को सेना दिवस मनाया जाता है. इस दिन की शुरुआत यहां इंडिया गेट पर बनी अमर जवान ज्योति पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के साथ होती है | इस दिन राजधानी दिल्ली और सेना के सभी छह कमान मुख्यालयों में परेड आयोजित की जाती है और सेना अपनी मारक क्षमता का प्रदर्शन करती है. इस मौके पर सेना के अत्याधुनिक हथियारों और साजो सामान जैसे टैंक, मिसाइल, बख्तरबंद वाहन आदि प्रदर्शित किये जाते हैं | इस दिन सेना प्रमुख दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देने वाले जवानों और जंग के दौरान देश के लिये बलिदान करने वाले शहीदों की विधवाओं को सेना मेडल और अन्य पुरस्कारों से सम्मानित करते हैं | भारतीय सेना अपने सेवानिवृत्