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Showing posts from September, 2010

इंसानियत.....

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आदमी आदमी से क्या चाहता है... फकत इंसानियत और वफ़ा चाहता है साथ खेले जो बचपन से अब तक, बन ना जाये वे कहीं दुश्मन लहू के, बस एक यही हौसला चाहता है आदमी आदमी से क्या चाहता है.. खाई थी जिसके चूल्हे की रोटी, उसी आग से घर ना उसका जला दे, बस एक यही वायदा चाहता है... आदमी आदमी से क्या चाहता है.. खाई थी ईद में राम ने सेवई दीवाली में, रहीम ने गुझिया बस यही सब याद दिलाना चाहता है आदमी आदमी से क्या चाहता है.... रोज़े पे राम, पकवान ना खाता रहीम को भूख की, याद ना दिलाता नवरात्रि के फलहार में इधर, रहीम का हिस्सा घर पर आता, राम बस रहीम का साथ चाहता है, आदमी आदमी से क्या चाहता है... मंदिर-मस्जिद के इस मसले से, मज़हब पे राजनीति के हमले से, खुद को दूर, रखना चाहता है आदमी आदमी से क्या चाहता है..... फकत इंसानियत और वफ़ा चाहता है..... -रोली पाठक

आत्महत्या.....

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(विदर्भ में सन 2010 में अब तक 527 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, अब तक सबसे अधिक आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र व कर्नाटक में एवं आंध्र -प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में हुए हैं कहीं सूखा है, कहीं अति वृष्टि, फसल का नुकसान साल भर मेहनत करने वाला किसान सह नहीं पाता, ऊपर से क़र्ज़ लेकर बोहनी करना...! मेरी यह रचना ऐसे समस्त किसानो के परिवारों को समर्पित है...जिन्होंने अपने घर का बेटा, मुखिया, भाई या परिवार का कोई सदस्य खोया है ) सूने-सूने नयन करता चिंतन-मनन बाढ़ की तबाही से उजड़ गया जीवन... डूब गया खलिहान बह गया अनाज कर दिया बाढ़ ने, दाने-दाने को मोहताज.... कब तक पियें बच्चे, चावल का माड़ गीली लकड़ी की जगह, कब तक सुलगे हाड़... हे प्रभु, पहले तो, एक-एक बूँद को तरसाया.. सुन के मेरी गुहार फिर, क्यों मेघों को इतना बरसाया... कि अन्न का एक-एक कण, अतिवृष्टि में जा समाया... नयनों में नींद ना थी ना चैन ह्रदय में पाता था.. रह-रह के परिवार का चेहरा, आँखों के सामने आता था... हार गया,बस हार गया मै, कह कर वो चित्कार उठा... बेबस जान स्वयं को वह मन-ही

ह्रदय की पीर....

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स्म्रतियों के घेरे से मन के घने अँधेरे से ले चल ऐ वक्त मुझे, दूर कहीं.................. सुरभि से उसके तन की तृष्णा से मेरे मन की ले चल ऐ ह्रदय मुझे, दूर कहीं................ इन गहन प्रेम वीथिकाओं से मेरे मन की सदाओं से ले चल चंचल मन, दूर कहीं................... उस प्रेमरूप की गागर से मेरी पीड़ा के सागर से ले चल अनुरागी चित, दूर कहीं.................... धूप-छाया सा मिलन था दीप-बाती सा बंधन था इस टूटे ह्रदय की पीर से बहते अंखियों के नीर से, ले चल पीड़ित मन, मुझे दूर कहीं............. दूर कहीं.................... -रोली पाठक