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Showing posts from February, 2012

पतझड़......

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सूनसान सड़क पर लाशें सूखे भूरे पत्तों की, डाल से विलग निर्जीव-निष्प्राण, हवा के बहाव संग उड़ते-बिखरते हुए , ज़िन्दगी का फलसफा समझाते हुए कि - जब तक जीवन है, जियोगे तुम, फिर हमारी तरह ही, तुम्हारा भी आ जायेगा पतझड़ एक दिन......... -रोली.....

परम्पराएँ........

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अलसुबह सूर्य को अर्घ्य देते हाथ अब नहीं दिखते..... देहरी पे देते ऐपन, उसे सजाते हाथ अब नहीं दिखते.... आँचल खींच घूँघट सँवारते हाथ अब नहीं दिखते उन के गोले-सलाइयों में उलझे हाथ अब नहीं दिखते..... सूर्य को नमन का, अब समय नहीं, देहरी पर संगमरमर लग गया है, साड़ी का पल्ला कंधे पर ही टिक नहीं पाता, उन के गोले व् सलाइयाँ अब इतिहास की बातें हुयीं.... -रोली...
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सुरमई सांझ ढलते ही, देहरी का दीपक जलते ही, करके सोलह सिंगार तुम, मन-मंदिर में आ जाना...... पहन लेना सारे जेवर, ओढ़ लेना लाल चूनर, सजा के रोली माथे पे , मन-मंदिर में आ जाना..... लगा के अधरों पे लाली, पहन के कानो में बाली, चल कर चाल मतवाली , मन-मंदिर में आ जाना.... सजा कर नैनों में काजल , केशों में  गूंथ कर बादल, बाँध कर पाँव में पायल, मन-मंदिर में आ जाना....     

खूबसूरती कहाँ नहीं होती...........

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  * बादल में बिजली में * फूल में तितली में * बातों में यादों में * कसमो में वादों में * पाने में खोने में * अपनों संग रोने में * सीरत में सूरत में *  किसी की ज़रूरत में * गीत में संगीत में, * दोस्त में मनमीत में *  दुलहन के श्रृंगार में * अपनों के प्यार में *  घटाओं में, बहार में * मिलन में इंतज़ार में *  अहसास में चाहत में * दर्द में राहत में * प्रेम में सच्चाई में *  पानी में परछाई में * गर ख़ूबसूरती मन में बसी है, * तो ये दुनिया बड़ी हसीं है.............. -रोली....
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अंतिम सत्य...................... जहाँ न हो कोई अपना एक अँधेरी कन्दरा बाहर पुकारते हमारे अपने, उनकी चीखें, क्रंदन-रुदन, और हमारी आवाज़ घुटती सी......... जिस्म का लहू जमता सा, देह ठंडी होती सी... एक असहनीय पीड़ा और...........................अंत. -रोली