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Showing posts from August, 2012
जो पल भर में पता लग जाये किसी की नज़रों से, वो नफरत है जो बरसों दफ़न रहे सीने में और कोई जान ना पाए वो मोहब्बत है ..... - रोली
जाड़े में कम्बल की तरह जेठ माह में शीतल हवा... इक ढाल की तरह बुरी नज़रों से बचाता प्रेम लुटाता ईश्वर की तरह.... - "पिता" - रोली
 आज फिर एक खत पुरानी किताब में पाया... तेरे साथ गुज़ारा हर लम्हा फिर याद आया... - रोली......♥
ना जाने लोग अक्सर क्यों ये जताते हैं, तुम हो गलत और हम सही,ये बताते हैं, नहीं छोड़ते मोहब्बत में भी ये इलज़ाम देना, इस तरह उल्फत में भी दुनियादारी निभाते हैं......... - रोली...
पहले अपने हुए...फिर बहुत अपने...और अब गैर हो रहे हैं कैसा है ये अजब दस्तूर ज़माने का, अपनों से बैर हो रहे हैं .. - रोली...
मौसम खुशगवार हो गया ख़त्म सबका इंतज़ार हो गया लो बरस पड़े टूट के बादल, आसमाँ को फिर ज़मीं से प्यार हो गया..... - रोली...
हर फूल को हार बना कर तन से लिपटाया नहीं जाता, कुछ फूल होते हैं नमन करने को वीरों की समाधि के....... - रोली....
चाँद को भेजा था हमने ख्वाबों को लाने, खुद बादलों में छुप गया और बारिश भेज दी...........♥
नींद खुलने पर मौसम को मेहरबान पाया बारिश की बूंदों संग सुरमई आसमान पाया भिगो रही तन-मन को सावन की ये फुहार, आज भीगा-भीगा सा मैंने सारा जहान पाया.......♥ - रोली....
काँच सा नाज़ुक रिश्ता था, टूटा तो आवाज़ भी ना आई....... - रोली
कुछ अनकही अधूरी बातें भीड़ भरे दिन तनहा रातें कैसे भला भुलायेंगे हम बिन मौसम की वो बरसातें......... - रोली..
हमारे शब्द जिनको शूल और नश्तर चुभोते हैं.... जुबां खामोश रखकर अब उन्हें हम कुछ न बोलेंगे | - रोली ...
कुछ लम्हे जिंदगी के ऐसे होते हैं जिनसे लिपट कर हम ताउम्र रोते हैं..... - रोली
ये बारिश है या अश्क हैं बादलों के, कभी थमते हैं सिसकते हैं और कभी रुकते ही नहीं.........
अक्सर जिन्हें हम मान लेते हैं खुद से जुदा, वही अहसास ताउम्र हमसे लिपटे रहते हैं....
अजब सी फितरत से निभाई उल्फत उसने, चाहता बहुत हूँ तुम्हें पर, जताता मै नहीं........ लबों तक बात आती है मोहब्बत की मेरे , तुम तो मेरी हो, ये सोच कर बताता मै नहीं........
 ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ इन खूबसूरत तेरी आँखों में दर्द के मंज़र हम देखते हैं, तेरे कतरा-कतरा आँसू में सैलाब-ए-समंदर हम देखते हैं ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ना जाने क्यों वो खुद से खफा-खफा रहता है भीड़ में भी अपने साये तक से जुदा रहता है * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * उसकी बेरुखी पर कितनी बार रूठ जाती हूँ उसे तो परवाह नहीं, खुद ही खुद को ही मनाती हूँ ___________________________________