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राष्ट्रगान के सम्मान पर प्रश्नचिन्ह !

उच्चतम न्यायालय का सिनेमाघरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करने के फैसले के लगभग एक वर्ष बाद पुनः विवादित टिप्पणियाँ आई हैं ! इस बार उच्चतम न्यायालय ने अपने ही फैसले के विपरीत अजीबोगरीब तर्क देते हुए स्वयं को इस मामले से अलग-थलग बताया है ! राष्ट्रगान जैसे देशभक्ति व् संवेदनशील मुद्दे के विषय में माननीय न्यायालय द्वारा जो निर्देश व् टिप्पणियां आई हैं वे निश्चित ही अपमानजनक हैं ! कोर्ट ने कहा है कि - 'राष्ट्रगान के समय किसी को खड़े होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, अदालतें अपने आदेश के द्वारा किसी के अन्दर देशभक्ति की भावना नहीं भर सकतीं ! केंद्र सरकार इस नियम में संशोधन पर विचार करे !'' कोर्ट की इस तरह की कठोर टिपण्णी कोंदुगल्लूर फिल्म सोसाइटी, केरल की याचिका की सुनवाई के दौरान कही गयीं हैं ! उच्चतम न्यायालय द्वारा इस तरह के निर्देश वाकई आश्चर्य एवं खेदजनक हैं ! सामान्यतः एक आम आदमी गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस, अन्तराष्ट्रीय मैच या सिनेमा घरों में ही राष्ट्रगान का श्रवण या गायन करता है, किसी फिल्म के आरम्भ होने के पूर्व जब परदे पर राष्ट्रगान बजता है तब साथ में विडिओ भी ह

सुरक्षा की गुहार निजी स्कूलों के लिए ही क्यों...!!!!

गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल में सात वर्षीय छात्र प्रद्युम्न की हत्या के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के निजी स्कूलों की जाँच करने का फैसला किया है । क्या देश के सारे बच्चे निजी स्कूलों में ही पढ़ते हैं ?  या उनके अभिभावकों द्वारा मोटी फीस की अदायगी इसका महत्वपूर्ण कारण है ! यदि सरकारी स्कूलों की बात करें तो वैसी अव्यवस्था तो कहीं नहीं मिलेगी । हजारों गांवों में विद्यालय के नाम पर ऐसी दुर्दशा है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । इमारत के नाम पर जर्जर भवन, शौचालय जैसी प्राथमिक आवश्यकता का अभाव, न साफ़ पानी की व्यवस्था, न ही शिक्षकों की, इसके बावज़ूद इन स्कूलों में लाखों बच्चे पढ़ते हैं । सरकार अपनी योजनाओं के तहत मिड डे मील जैसी सुविधाएँ प्रदान कर पल्ला झाड़ लेती है, किन्तु उस मिड डे मील के दुष्प्रभाव हम आये दिन अख़बारों में पढ़ते रहते हैं । कभी दूषित दलिया खा कर बच्चे बीमार हो जाते हैं कभी अस्पताल में भर्ती । ऐसे भी हज़ारों गाँव मिलेंगे जहाँ विद्यालय हैं ही नहीं , जिसके चलते बच्चे कई किलोमीटर की दूरी तय कर के विद्यालय जाते हैं, कहीं बीच में नदी पर पुल न होने के कारण तैर कर, नाव से या रस्सी के

आतंक का कोई धर्म नहीं होता

अमरनाथ यात्रा पर कल रात हमला हुआ, 7 लोग मारे गए जिनमे 5 महिलायें थीं । खबर पाते ही राजनेता सक्रीय हो गए । ट्वीट होने लगे । कट्टरपंथी हिन्दू भड़काऊ बयानबाज़ी करने लगे । सबकी नज़रों में यह हमला हिन्दू धार्मिक यात्रा पर हुआ था और इसकी ज़िम्मेदार पूरी मुसलमान कौम है । कुछ ज़्यादा पढ़े लिखे लोगों ने कहा कि हज यात्रा जब तक आराम से व सुरक्षा से होती रहेगी, हिंदुओं की तीर्थ यात्रा में रोड़े आते रहेंगे । मन खिन्न हो गया । लगा कि क्यों नहीं बंटवारे के समय ही ये बंटवारा हो गया था कि तुम अपने मुल्क में, हम अपने देश में । क्यों लोग अपनी मिट्टी की चाहत में यहाँ और वहाँ रह गए । जब जनता प्रेम से रहने लगती है तब ये स्वार्थी नेता क्यों पेट्रोल डाल डाल कर अग्नि की ज्वाला को खूब भड़काने लगते हैं ! पढ़े लिखे लोग ये भूल जाते हैं कि आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता । ये वो सिरफिरे हैं जिन्हें बचपन से कट्टरता की घुट्टी पिलाई है, अल्लाह को खुश करने के लिए खुद को बम बना कर खून-ख़राबा कर के जन्नत नसीब होने का सपना दिखाया है । वो ये भूल जाते हैं कि अगर इनका कोई धर्म होता तो क्या ये अपनी कौम के लोगों को भी मारते ? पाकिस्

बबूल के फ़ूल

बबूल कहते ही काँटों की व्यथा सुनाई देती है नहीं सोचता कोई उसके तीखे काँटों के सिवा कुछ और देखे हैं मैंने लेकिन आषाढ़ की बयार में झूमती इतराती शाखों पर खिले इठलाते रुई के फाहे से पीले बबूल के फ़ूल । - रोली