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Showing posts from 2012

नव वर्ष

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जा रहा एक और वर्ष हमसे विलग होकर कई रक्तरंजित देह, छलनी आत्मा देकर हो चुकी वीलीन पंचतत्व में जिसकी  देह माँ उसे पुचकारती थी हौले-हौले से छूकर एक नहीं है, सैकड़ों हैं -  "दामिनी" यहाँ दे रहीं हमको सदाएं जो आज मरमरकर आओ शपथ लें दामिनी को तेज वह  देंगे जैसे चमकती नभ में वैसी शक्ति हम देंगे नव चेतना की वंदना, नारी को हम मुस्कान दें नव जागृति की प्रार्थना नारी को हम सम्मान दें मान दें, सम्मान दें, उसको नयी पहचान दें | - रोली पाठक

|| भावभीनी अश्रुपूर्ण श्रृद्धांजलि ||

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ह्रदय व्यथित है ...शब्द खो गए....मस्तिष्क शून्य है... आशा की लौ बुझ गयी... दामिनी नहीं हारी , हारा है - ये समाज , ये क़ानून और इंसानियत | दामिनी, ईश्वर तुम्हारी बेचैन आत्मा को शांति दें | अब सभी टीवी चैनल्स पर अपील की जा रही है - शान्ति बनाये रखें |  उत्तेजित मत होइए....अपने ज़मीर को कुचल डालिए.... मूक बघिर बन जाइए... आँखें, कान , मुँह , ज़बान सब बंद रखिये.... कोई प्रतिक्रया मत दीजिए.... ये सब होता रहता है.... आज दामिनी है, अमानत है...कल कोई और होंगी.... ये जीवन है ... एक हफ्ते बाद सब सामान्य हो जायेगा... नपुंसक प्रशासन पंगु कानून व्यवस्था | लानत है |  दिल्ली में दस मेट्रो स्टेशन बंद किये गए हैं, नयी दिल्ली में धारा 144 लगा दी गयी है , इण्डिया गेट के रास्ते में पूरा पुलिस बल लगा दिया गया है... ये सब करने से बेहतर आज ही उन हैवानो को फाँसी दे दो....वही होगा आक्रोश व् उत्तेजना का इलाज....  वही होगी दामिनी को सच्ची श्रृद्धांजलि | 6 बलात्कारियों में से एक Juvenile है ..... जिसे ना उम्र कैद की सज़ा दी जा सकती है ना ही फाँसी की, कैसा है ये क़ानून ...!!!! जहाँ एक इंस

उल्फत

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जलवा-ए-हुस्न कुछ ऐसा है कि, हम पर शामत क्या कहिये.... पलकों की चिलमन गर उठें, लोगों की हालत क्या कहिये ..... आँखों में उल्फत के डोरे , उफ़,ज़िक्र-ए-कयामत क्या कहिये... छुप-छुप कर नज़रों का मिलना, हम पे ये इनायत क्या कहिये ...... बना कर तुझको वो खुद है हैरां , और इश्क-ए-इबादत क्या कहिये ..... कर लूं दुश्मनी खुदा से भी, अब और बगावत क्या कहिये.... - रोली 

दिन-रात

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दिन भर आसमां पर टंगा हुआ सूरज, सांझ ढले टूट रहा... क्षितिज पर पड़ा हुआ दहकता अग्निपिंड सा...... अगन अब ना रही अब तो है शीतलता वहीँ जहाँ मिलन हो रहा अवनि और अम्बर का...... समेटती आलिंगन में अटल पर्वत श्रृंखलाएं, भुला कर अपना तेज, उनकी बाँहों में खो रहा......... ढक रहा तम, उजाला सूर्य का, लो आ गई अब बारी चाँद की.... आ गया हमको लुभाने ले के बारात सितारों की ....... - रोली

नवांकुर

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 धरती में कहीं गहरे में एक बीज बोया हुआ... गुमनाम अँधेरे में सुप्त सोया हुआ... अस्तित्व नहीं भीतर, किन्तु बाहर है जीवन .. अंदर है सिर्फ तम, मिट्टी सर्द और नम ... सूर्य की किरणों संग चमकते उजाले में, चौंधियाती आँखों को, झपकते-मलते हुए फूटा बीज से अंकुर झाँक रहा बाहर, नव गति, नव चेतना संग संघर्ष करने जीवन से आ गया नवांकुर | - रोली

शीशमहल ...

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इक आशियाना हो काँच का..... जहाँ कमरे की छत से धूप आये बरसात में बूंदे बरस-बरस जाएँ सर्दियों का कोहरा रूह तक महसूस हो गर्मी की लू  , बदन थरथराए.... बस एक ऐसा आशियाना हो काँच का............................ लेटूँ रात में बिस्तर पे जब अपने वहीं से बादलों में चाँद नज़र आये काँच की दीवारों से भोर होते ही सूरज की किरणें जगमगाएं .... बस एक ऐसा आशियाना हो  काँच का............................ कमरे से जुगनुओं को चमकते देखूँ गिलहरी को पेड़ पर चढ़ते देखूँ  फूलों पर तितली और भँवरे मंडराएं  महसूस हों जहाँ ये, हर पल दायें-बाएं  हाँ, इक ऐसा आशियाना हो   काँच का.............................. - रोली 

सफर..

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मेरी मुतमुईनी को ज़माने ने बेफिक्री समझा कोई ना समझा ख्वाहिशों की तिश्नगी मेरी मीलों जो चलता जा रहा यह रास्ता लंबा इस स्याह सड़क की ही  तरह है जिंदगी मेरी कहीं उखड़ी कहीं कच्ची कहीं टूटी हुई सी है अकेले दूर तक चुपचाप चलती जिंदगी मेरी रंग इसका स्याह मेरी तकदीर सा ही  है कदमो  तले  दबती  हुई सी जिंदगी मेरी पहुँचाती मुसाफिरों को ये उनकी मंजिलों तक और खुद भटकती रहती है ये जिंदगी मेरी ..... - रोली

मौसम बदल रहा है......

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मौसम बदल रहा है... ढलने लगी सांझ जल्दी धुंधलका हो रहा है मौसम बदल रहा है....... क्वांर की गुलाबी ठण्ड घुल रही बयार में, रात आ जाती है जल्दी देर से सवेरा हो रहा है मौसम बदल रहा है....... गर्म चाय की चुस्कियां अब भाने लगी हैं उतर आँगन में धूप, गुनगुनाने लगी है गुलाबी जाड़े का, अहसास हो रहा है मौसम बदल रहा है..... बिकने लगे गोले ऊन के दिखने लगी सलाइयाँ, फंदों में लिपट के स्नेह, स्वेटर बुन रहा है मौसम बदल रहा है..... खिल उठी बगिया मेरी गुलाब भी खिलने लगे रात में टपके मोती, सुबह पत्तों पर मिलने लगे अलसाया सूरज देर तक सो रहा है मौसम बदल रहा है.......... - रोली

सीलन....

कतरे-कतरे धूप के समेट कर मुट्ठी में, तेरी यादों की सीलन को, दिखाना है मुझे... अश्कों की बारिश से, उभर आई है जो, दिल की दीवारों पर... उसे अब वक्त के रहते, हटाना है मुझे..... यादों के उन धब्बों को, खुरच-खुरच कर , मिटाना है मुझे...... - रोली ...
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        ॥ ॐ श्री गणेशाय नम:॥ वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ । निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ ब्लॉग के सभी प्रिय व् आदरणीय सदस्यों व् मित्रों को "गणेश-चतुर्थी" की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें । 

हम-तुम ...पूरक हैं

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हिंदी....... एक दिन गया, एक रात गयी, तुम ये ना समझना, बात गयी.... अब भूल जायेंगे हम तुम्हें तुम तो बसी ह्रदय में .... बच्चे की तुतलाहट में, माँ की झुंझलाहट में, पिता के प्यार में, दादी के दुलार में, विद्यालय की पढ़ाई में, बहन की लड़ाई में...... प्रेमिका की मनुहार में, प्रेमी से तकरार में.... मनमोहन के मौन में :) और मोबाइल की रिंगटोन में :) मेरे सपनो में... मेरे अपनों में... बस तुम ही तुम हो....तुम ही तुम हो.... - रोली...
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निराशा की जगह संभावनाएं तलाशें ********************************** किसी भी देश की प्रगति व् एकता के लिए एक राष्ट्रभाषा का होना आवश्यक है, जिसमे राजकार्य हो, बहुसंख्यक लोग एक-दूसरे से बातचीत में जिसका इस्तेमाल करें | हिन्दी हमारे देश भारत में राज-काज की भाषा है | आज हमारी इस राष्ट्रभाषा की प्रतिद्वंदी भाषा है - अंग्रेजी | सरकारी कामकाज भले ही हिंदी में करने का व् होने का दम भरा जाता हो, किन्तु ऐसा होता नहीं है | पढाई का स्तर भी माध्यम से ही आँका जाता है, यदि बच्चा अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ रहा है तो उच्च स्तर अन्यथा निम्न | अभिभावक भी मजबूर हैं, देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से व् ना केवल विदेशों में बल्कि अपने ही देश में अंग्रेजी भाषा का स्तरीय ज्ञान आवश्यक हो गया है | किसी भी विदेशी ज्ञान का होना निंदनीय नहीं बल्कि यह तो अच्छी बात है किन्तु उस भाषा का गुलाम होना अनुचित है | वर्तमान में यह स्थिति है कि लोगों की हिंदी बोलचाल तक ही सीमित रह जाती है, यदि लिखना भी पड़े तो उसका स्तर बहुत ही निम्न होता है, वहीँ उनका अंग्रेजी भाषा का ज्ञान उच्च कोटि का होता है | अपने ही दे

मसखरा प्रेम....

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पूछती हूँ मै तुमसे - कब रेत में रगींन  फूल खिलेंगे ..!!! कहते हो तुम  - जब पानी में हम-तुम  मिलके शब्द लिखेंगे ... सोचती हूँ कब सितारे टूट कर आँचल में गिरेंगे ..!!! कह देते हो - चाँद-सूरज जब कभी फलक पर मिलेंगे ... पूछती हूँ - क्या बादल बरसेंगे जेठ महीने में......!!! कहते हो तुम - पूस में इस बार रगीं टेसू खिलेंगे .... कहती हूँ मै - देखना है इंद्रधनुष को छत पर उतरा ... हँसते  हो तुम- देख लेना अपनी चूनर को छत पर बिखरा ... नाराज़ हूँ मै - कुछ भी कहते हो , ये भी कोई बात हुई .....!!! खिलखिला उठते हो तुम - "प्रेम में है..हर बात सही ...हर बात सही।" - रोली ..

तन्हाई

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उसका ज़िक्र जो हम, हर रोज किया करते हैं इस बहाने उसमे हम, खुद को जिया करते हैं उसकी बातें वो मुलाकातें और वो यादें प्यारी यूँ मिला कर ज़हर, अमृत में पिया करते हैं वो दरख़्त, जहाँ दस्तखत आज भी हैं दोनों के देख कर उनको, ज़ख्मे-ए-दिल सिया करते हैं तेरी पायल के टूटे घुंघरू, उठाये थे जो चुपके से अब भी सन्नाटे में वो,  छम  से बजा  करते हैं गैर हो तुम, अब ना रहा हक़  तुम पर मेरा लेकिन इंतज़ार तेरे आने का रोज किया करते हैं ना डर  इतना , मुझे भी फिक्र है ज़माने की, खुद रुसवा हो के भी तेरी पर्दानशीनी का ख़याल किया करते हैं......... - रोली ...
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साहिल पे रह कर तिश्नगी सहरा में रह के खुश थे हम...... अश्कों से होती नहीं तकलीफ़ हमें खुश हैं अब हम सह के गम........ - रोली
मिजाज़-ए-मौसम भी मिजाज़-ए-हुस्न से कुछ कम नहीं , कि आज पल-पल करवटें बदल रहा है ये..... अभी खिली थी तीखी धूप यहाँ, और अब बरसने को मचल रहा है ये....... - रोली
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हसरतें लाख दिल को लुभाया करें ज़ेहन में हकीकत बनी रहती है.... क्या करें कि हमेशा इन दोनों में इसीलिए तो ठनी रहती है ... - रोली
दर्द-ए-दिल जां निकल जाने की हद तक हम सहते हैं.... अश्कों के कतरे दिल से निकल कर तब आँखों से बहते हैं.... यूँ तो बहुत रोका करते हैं अपने इन अश्कों को पलकों पर, क्या करूँ मै कि ये भी हैं बड़े बेवफा तेरी तरह, मेरा अफसाना सरेआम बयां करते हैं...... - रोली
तेरे खत जलाना भी सजा कम ना थी इतना तो बिछड़ के भी रोये ना थे हम..... कतरा-कतरा आँसू मिटाते रहे लफ़्ज़ों को और न जाने कितनी रातें सोये नहीं हम....... - रोली
 वो वक़्त भी कितना कठिन और खराब होता है...  जब दुनिया करती है हर बात पर सवाल हमसे, हमारे पास ख़ामोशी के सिवा न कोई जवाब होता है दिल में दर्द लिए होते हैं कितने मजबूर हम , और चेहरे पर झूठी मुस्कराहट का नकाब होता है .... - रोली
ऐ सितमगर कब तलक ये सितम सहते रहें हम तुम करों गैरों से बातें और यूँ खामोश रहें हम..... - रोली
गर गमज़दा हो तो गम अपने सीने में रखना बहुत सी यादें दफ़न होंगी इस कब्रगाह में...... - रोली
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ना जाने आज मन क्यों अनमना सा है एक तिश्नगी सी है दिल गमज़दा सा है कहीं सहरा कहीं दरिया कहीं ख़याल बर्फ हैं हैं ये कैसे अहसास जो, सारे जुदा-जुदा से हैं - रोली
 इंतज़ार की इन्तेहाँ क्या होगी !!! तुम्हारे इंतज़ार में, मर कर भी मेरी पलकें खुली होंगी.......... - रोली..
 मेरी ख़ामोशी को मेरी कमजोरी न समझना बादलों जैसी मेरी फितरत नहीं गरजने की मै वक़्त हूँ ..............बेआवाज़ चलता हूँ गर बुरा हुआ तो मोहलत भी ना दूंगा संभलने की | - रोली..
कितने ही दर्द से हम हर रोज़ गुज़र जाते हैं, ज़िंदा रहते हैं और पल भर को मर जाते हैं आँसू भले ही कितनी भी बिगाड़ दें मेरी सूरत, किसी और के सामने इसे तुरंत संवार जाते हैं...... रखा है छुपा कर अपने हरेक ज़ख्म को दिल में , क्या करें कि हर टीस से ये फिर उभर आते हैं....... - रोली
सिलसिला कुछ यूं चल पड़ा है हमारे दरमियां कि बगैर गिले-शिकवे के उल्फत अधूरी लगती है। रूठने-मनाने का दस्तूर यूं ही चलता रहे कि यह बात इस रिश्ते में बहुत ज़रूरी लगती है।
जो पल भर में पता लग जाये किसी की नज़रों से, वो नफरत है जो बरसों दफ़न रहे सीने में और कोई जान ना पाए वो मोहब्बत है ..... - रोली
जाड़े में कम्बल की तरह जेठ माह में शीतल हवा... इक ढाल की तरह बुरी नज़रों से बचाता प्रेम लुटाता ईश्वर की तरह.... - "पिता" - रोली
 आज फिर एक खत पुरानी किताब में पाया... तेरे साथ गुज़ारा हर लम्हा फिर याद आया... - रोली......♥
ना जाने लोग अक्सर क्यों ये जताते हैं, तुम हो गलत और हम सही,ये बताते हैं, नहीं छोड़ते मोहब्बत में भी ये इलज़ाम देना, इस तरह उल्फत में भी दुनियादारी निभाते हैं......... - रोली...
पहले अपने हुए...फिर बहुत अपने...और अब गैर हो रहे हैं कैसा है ये अजब दस्तूर ज़माने का, अपनों से बैर हो रहे हैं .. - रोली...
मौसम खुशगवार हो गया ख़त्म सबका इंतज़ार हो गया लो बरस पड़े टूट के बादल, आसमाँ को फिर ज़मीं से प्यार हो गया..... - रोली...
हर फूल को हार बना कर तन से लिपटाया नहीं जाता, कुछ फूल होते हैं नमन करने को वीरों की समाधि के....... - रोली....
चाँद को भेजा था हमने ख्वाबों को लाने, खुद बादलों में छुप गया और बारिश भेज दी...........♥
नींद खुलने पर मौसम को मेहरबान पाया बारिश की बूंदों संग सुरमई आसमान पाया भिगो रही तन-मन को सावन की ये फुहार, आज भीगा-भीगा सा मैंने सारा जहान पाया.......♥ - रोली....
काँच सा नाज़ुक रिश्ता था, टूटा तो आवाज़ भी ना आई....... - रोली
कुछ अनकही अधूरी बातें भीड़ भरे दिन तनहा रातें कैसे भला भुलायेंगे हम बिन मौसम की वो बरसातें......... - रोली..
हमारे शब्द जिनको शूल और नश्तर चुभोते हैं.... जुबां खामोश रखकर अब उन्हें हम कुछ न बोलेंगे | - रोली ...
कुछ लम्हे जिंदगी के ऐसे होते हैं जिनसे लिपट कर हम ताउम्र रोते हैं..... - रोली
ये बारिश है या अश्क हैं बादलों के, कभी थमते हैं सिसकते हैं और कभी रुकते ही नहीं.........
अक्सर जिन्हें हम मान लेते हैं खुद से जुदा, वही अहसास ताउम्र हमसे लिपटे रहते हैं....
अजब सी फितरत से निभाई उल्फत उसने, चाहता बहुत हूँ तुम्हें पर, जताता मै नहीं........ लबों तक बात आती है मोहब्बत की मेरे , तुम तो मेरी हो, ये सोच कर बताता मै नहीं........
 ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ इन खूबसूरत तेरी आँखों में दर्द के मंज़र हम देखते हैं, तेरे कतरा-कतरा आँसू में सैलाब-ए-समंदर हम देखते हैं ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ~ ना जाने क्यों वो खुद से खफा-खफा रहता है भीड़ में भी अपने साये तक से जुदा रहता है * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * उसकी बेरुखी पर कितनी बार रूठ जाती हूँ उसे तो परवाह नहीं, खुद ही खुद को ही मनाती हूँ ___________________________________
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पलकों पे ख्वाब नहीं हैं तो अब मेरी रात नहीं होती पहले की तरह अब मेरी, मुझ से ही बात नहीं होती पहले तो अक्सर अपने साये से मिल लेते थे हम क्या कहें कि खुद से ही अब, मुलाक़ात नहीं होती........ - रोली
कभी उछलती कभी फुदकती गेंद की तरह कभी मचलती कभी संभलती लहर की तरह कभी मीलों अकेली है साहिल की तरह कभी शोर में डूबी हुयी मेले की तरह कभी ग़मगीन कभी परेशान इंसान की तरह कभी मासूम कभी नादान बच्चे की तरह एक रूप नहीं है इसका बहुरूपिया है यह "ज़िन्दगी" नाम है इसका जीना है किसी तरह........................... -रोली....
सोचती थी समय गया,वयस गयी, अब वो भावनाएं शायद ना रहीं वो चाँद में तुम्हारा नज़र आना, वो अक्सर उपहारों का नज़राना, बीतते वक़्त ने धुंधला दिया था सब कुछ हमने भुला दिया था ... किन्तु हो रहा महसूस अब यह, है सबकुछ वही बस नाम नए, प्रेम अब त्याग और समर्पण है हमारे ह्रदय एक-दूजे का दर्पण हैं चाँद उन बच्चों की लोरी में है जो तुमने दिए उपहार में...... है सबकुछ वही, बस नाम नए.. बस नाम नए......................... -रोली
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सोचती थी ,मन में मेरे , प्रेम शायद अब नहीं है , भूल थी वो, कैसे हो ये, जबकि तन में बसा ह्रदय है, ना यहाँ बंधन वयस का, ना ही वर्षों का समय है , तेरा न होना ही बस इक, मेरे जीवन का तमस है ..... साथ चाहूँ मै तुम्हारा, तुम सूर्य बन हरते रहो तम, धरा और किरणों का तुम्हारी, जैसे हो रहा समागम........... -रोली
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ह्रदय से उठती कसक, सफ़र तय करके पहुँची, जिस्म से रूह तक, यादें बन गयीं आँसू आते-आते नैनो तक..... क्या इस खारे पानी में सिमट कर तुम बह जाओगे !!! या और भी भीतर समा जाओगे, मेरे अंतर्मन तक................! चाहूँ बस जाना तुम्हारे जिस्म के हरेक कतरे में, जीवनदायिनी हर साँस में, हर धड़कन में हर प्यास में, हर कसमो में हर वादों में, तुम्हारे मजबूत इरादों में......................... तब तो रुक जाओगे न तुम !!! फिर कहीं न जाओगे तुम.........! रोक लूंगी,समेट लूंगी,  अब ये आँसू नैनो में..... ना बहने दूँगी  मै, इन स्वर्णिम यादों को...... प्रिय, तुम्हारी यादों को ..... -रोली.
चाँद से भले हो जाये अनबन रात को तुम्हारी, बस उसकी चाँदनी को तुम नाराज़ ना करना...... हमसे खफा हो भी जाओ तो कोई बात नहीं, खुद से वाबस्ता ख़्वाबों को हमसे जुदा न करना...... -रोली
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आधी ज़िन्दगी इंतज़ार में गुजरी और आधी ख्वाबों में गुज़र जाती है... देखती हूँ आइना जब याद करके तुम्हे, मेरी सूरत खुद ही संवर जाती है.... -रोली.
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एक मासूम से सपने को आज जलते देखा उसके हर इक अरमान को पिघलते देखा कभी मुट्ठी में चाँद-सितारे रखा करती थी वो, आज उसे खुले आसमान तले पलते देखा जानती थी मै ये दुनिया बड़ी ही संगदिल है, इस बार तो हरेक रिश्ते को बदलते देखा कहते हैं तेरे दर पे सिर्फ देर है, अंधेर नहीं फिर क्यों अपनों को ही उसे, निगलते देखा........ -रोली
रास्ते होंगे कठिन, हर शै तुम्हें आजमाएगी, हौसले जो दिल में हों मंजिल मिल ही जाएगी... रोली...
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साजिशें रकीबों की जो ताड़ ली मैंने, बदनाम मुझे करके काफिर बना दिया...... ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ इतना खौफनाक ये मंज़र क्यों है हरेक हाथ में नुकीला खंजर क्यों है नफरत सीख ली क्या हर किसी ने, मोहब्बत से शहर ये बंजर क्यों है...... ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ कतरा के निकल जाते हैं जो आज, वो रकीब कभी हमसे मरासिम की दुहाई दिया करते थे..... -रोली.
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इक छोटी सी बात ना, समझ सका ये दिल... क्यों ज़माने की परवाह मुझसे, उन्हें ज्यादा है.... मेरी मोहब्बत का मुझे कुछ तो सिला मिले, क्यों हर वक़्त तुझसे शिकवा गिला मिले... -रोली..
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हवायें सारी रात खिड़कियाँ खड़खडाती रही मेरी आँखों से तेरी याद मेरी नींदें चुराती रही... उठा कर उनींदी पलकें,चाँद को ताकते पाया, चाँदनी कहानी मेरी, सितारों को सुनाती रही... झील के ठहरे हुए पानी सा थम गया वक़्त, दूर कहीं कोई माँ, बच्चे को लोरी सुनाती रही... हौले-हौले मोती बन के उतर आयी तेरी याद, बन के आँसू मेरी आँखों में समाती रही........ -रोली....
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अपनी उल्फत ज़माने से लाख छुपाती रही, तेरे सामने मेरी झुकी पलकें सब बताती रहीं, ये वो खुशबू है कि फूल हम छुपा भी लें गर, महक उस प्यार की फिजायें महकाती रही... -रोली...
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मेरे गम भी क्यों नहीं नित, डूब जाते संग सूरज के, और खुशियाँ जन्म लेतीं, फिर सुबह सूरज के साथ...... शाम ढलते ही सदा जैसे मेरा दर्द है बढ़ता जाता, मेरी पीड़ा को समेटे नित चली आती है रात.... स्वप्न मेरे हैं अकेले, है नहीं साया भी वहाँ, जिसको मै चाहूँ वहाँ, क्यों नहीं रहता वो साथ..... मेरे गम भी क्यों नहीं नित, डूब जाते संग सूरज के, और खुशियाँ जन्म लेतीं, फिर सुबह सूरज के साथ...... - रोली
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मन को बहलाना सरल नहीं, उद्दंड बड़ा, जिद पर अड़ा , इसको समझाना सरल नहीं ... माँगे हैं इसकी बड़ी अजब, इच्छाएं इसकी बड़ी गज़ब, इसको मनाना सरल नहीं.... तानाशाही ये सदा करे, माँगें अनुचित ये सदा धरे, इसको बरगलाना सरल नहीं.... ना जाने ये क्या चाहे, सच्चाई से ये क्यों भागे, मन को बहलाना सरल नहीं..... -रोली

पतझड़......

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सूनसान सड़क पर लाशें सूखे भूरे पत्तों की, डाल से विलग निर्जीव-निष्प्राण, हवा के बहाव संग उड़ते-बिखरते हुए , ज़िन्दगी का फलसफा समझाते हुए कि - जब तक जीवन है, जियोगे तुम, फिर हमारी तरह ही, तुम्हारा भी आ जायेगा पतझड़ एक दिन......... -रोली.....

परम्पराएँ........

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अलसुबह सूर्य को अर्घ्य देते हाथ अब नहीं दिखते..... देहरी पे देते ऐपन, उसे सजाते हाथ अब नहीं दिखते.... आँचल खींच घूँघट सँवारते हाथ अब नहीं दिखते उन के गोले-सलाइयों में उलझे हाथ अब नहीं दिखते..... सूर्य को नमन का, अब समय नहीं, देहरी पर संगमरमर लग गया है, साड़ी का पल्ला कंधे पर ही टिक नहीं पाता, उन के गोले व् सलाइयाँ अब इतिहास की बातें हुयीं.... -रोली...
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सुरमई सांझ ढलते ही, देहरी का दीपक जलते ही, करके सोलह सिंगार तुम, मन-मंदिर में आ जाना...... पहन लेना सारे जेवर, ओढ़ लेना लाल चूनर, सजा के रोली माथे पे , मन-मंदिर में आ जाना..... लगा के अधरों पे लाली, पहन के कानो में बाली, चल कर चाल मतवाली , मन-मंदिर में आ जाना.... सजा कर नैनों में काजल , केशों में  गूंथ कर बादल, बाँध कर पाँव में पायल, मन-मंदिर में आ जाना....     

खूबसूरती कहाँ नहीं होती...........

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  * बादल में बिजली में * फूल में तितली में * बातों में यादों में * कसमो में वादों में * पाने में खोने में * अपनों संग रोने में * सीरत में सूरत में *  किसी की ज़रूरत में * गीत में संगीत में, * दोस्त में मनमीत में *  दुलहन के श्रृंगार में * अपनों के प्यार में *  घटाओं में, बहार में * मिलन में इंतज़ार में *  अहसास में चाहत में * दर्द में राहत में * प्रेम में सच्चाई में *  पानी में परछाई में * गर ख़ूबसूरती मन में बसी है, * तो ये दुनिया बड़ी हसीं है.............. -रोली....
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अंतिम सत्य...................... जहाँ न हो कोई अपना एक अँधेरी कन्दरा बाहर पुकारते हमारे अपने, उनकी चीखें, क्रंदन-रुदन, और हमारी आवाज़ घुटती सी......... जिस्म का लहू जमता सा, देह ठंडी होती सी... एक असहनीय पीड़ा और...........................अंत. -रोली