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Showing posts from March, 2014

संघर्ष

क्वांर का महीना आ गया । हल्कू रोटी का गस्सा तोड़ते-तोड़ते सोच रहा था । बोअनी सर पर है, आधा एकड़ कुल जमीन में इस बार आधे में  गेंहू और आधे में चना और सरसों लगा दूंगा । लेकिन बीज, खाद के लिए रुपये कहाँ से आयेंगे ! "रोटी लोगे जी?" लछमी बोली । "ना, हो गया , बस । " "हओ" कहते हुए उसने खाना ढांक कर किनारे रख दिया । खाना खा कर हल्कू बाहर आ गया, खीसे से बीड़ी निकाली, माचिस से सुलगाई और फिर विचारमग्न हो गया । लछमी भी आ कर वहीँ बैठ गयी । "बोअनी की चिंता कर रहे हो ना ! कछु ना सोचो, सब ठीक हो जैहे । मेरी पायरें गिरवी रख दइयो । दो हजार तो मिल ही जेहें । " "ह्म्म्म , ट्रेक्टर भी किराये से लानो है, फिर बीज और खाद । सिंचाई के लिए बामन के खेत से पानी के लिए बाहे भी रुपैया देनो पड़ेंगे " "अरे, सब हो जेहे ।" लछमी विश्वास से बोली । "सात-आठ हजार का खर्चा है , बल्कि दस पकड़ लो " "इतना.......?" लछमी की आँखें चौड़ी हो गयीं । "हओ" ... चाँद डूब रहा था । लछमी तीन वर्ष के बेटे शंकर को लिपटाये सो रही थी । हल्कू ने

आह्वान

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बदले जग पर, तुम न बदलना, तुम ऐसी ही रहना मेरे  ऊसर से  जीवन में, सरिता  बन  तुम बहना बदलें नाते, तुम ना बदलना, तुम ऐसे  ही रहना… सह लूंगी मै जग की और हर रिश्ते की कड़वाहट मधुर चाँदनी बन कर तुम, जीवन में  मेरे रहना दुनिया बदले, तुम न बदलना तुम ऐसे  ही रहना .... निविड़-कालिमा बीच मुझे तुम, उजियारा दिखलाना अँधियारी जीवन-रजनी में , तुम दीपक बन जाना भूलें अपने , तुम ना भूलना , सब दिन अपना कहना बदले जग पर, तुम न बदलना , तुम ऐसे ही रहना….... - रोली पाठक

प्रेम-गीत

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प्रेम एक अभिशाप है एक दर्द भरा सपना है  मौन रह कर पुण्य चिता में  तिल-तिल कर तपना है  बन गया जीवन पराजय  और क्रंदन की  कहानी  किस तरह मै मौन रहूँ  और सुने तू मेरी मूकवाणी  अब तुम्हारे प्रेम का  स्पर्श ही मेरी जीत है  मेरे इस व्यथित ह्रदय की मुक्ति का संगीत है  दूर रह कर भी मैंने  तुमसे मिलन का स्वप्न गढ़ा जितनी तुमने व्याकुलता दी  उतना तुम पर विश्वास बढ़ा उतना तुम पर विश्वास बढ़ा …  - रोली पाठक