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Showing posts from June, 2010

बेबसी.........

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इच्छाएं अनंत मन स्वतंत्र जीवन परतंत्र...... दायित्व अपार असहनीय भार कैसे हों,स्वप्न साकार.....!!! दमित मन ह्रदयहीन तन विचलित जीवन....... ह्रदय की पीर नयनों के नीर तन, बिन चीर....... अन्न, न जल भूख से विहल दरिद्र नौनिहाल............ माँ की बेबसी तन को बेचती रोटी खरीदती.............. ह्रदय पाषाण व्यथित इंसान हे देश, फिर भी तू महान..........!!! -रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/

स्वप्न...

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मन की वीणा के तार बजे अधरों पे मेरे गीत सजे नयनों ने नींदों से मिल कर, अभिराम मनोहर स्वप्न रचे... कुछ पीड़ा थी कुछ प्रीति थी कुछ मेरी आप-बीती थी ये अँखियाँ रीती-रीती थीं उन रीती अंखियों में भरकर, नयनों ने नींदों से मिलकर, अभिराम मनोहर स्वप्न रचे इन सपनो में कुछ अपने थे इन अपनों से कुछ शिकवे थे नयनों के सपनो ने शिकवों को, आंसू में बदल कर बहा दिया... इस बहती अश्रुधारा ने, मुझे मीठी नींद से जगा दिया वो सुन्दर सपने छूट गए, वीणा के तार टूट गए और गीत अधर के रूठ गए... उड़ गयी वो निंदिया मीठी सी.. रह गयीं ये अँखियाँ रीती से...रीती सी.... -रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/

स्मृति-चिन्ह

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अतीत के पन्ने उलटते यूँ ही मिल गया सहसा वो स्मृति-चिन्ह... बना था साक्षी वह, ना जाने कितनी यादों का ना जाने कितने वादों का बच गया कैसे यह समय की कुद्रष्टि से बह ना पाया क्यों ये मेरे नयनों की अतिवृष्टि से... चुक रही थी आस जब, खो चुका विशवास जब, क्यूँ अचानक दिख गया... यह शुष्क आँसू तब... हौले से मैंने उठाया, टूट के वो गया झड़ बरसों पहले विलग हो के, जैसे मै गया था बिखर... थरथराते स्पर्श से पंखुड़ियों को, कुछ यूँ समेटा.. तेरे भीगे आँचल को जैसे तन से हो लपेटा.. हरेक बिखरे कतरे को, पन्नो में फिर दबा दिया भड़कती हुई चिंगारी को एक बार फिर बुझा दिया... यादों की राख तले मैंने, फिर उसे दफना दिया....दफना दिया... -रोली पाठक http://wwwrolipathak.blogspot.com/

यात्रा-वृत्तांत......

मित्रों... नमस्कार, ग्रीष्मकालीन अवकाश के चलते पर्यटन का कार्यक्रम बन गया...अपने शहर भोपाल से हम दिल्ली पहुंचे और वहां से रात को बस का सफ़र करके पहुंचे धर्मशाला...देवभूमि हिमाचल का प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय है, धर्मशाला से कोई १० कि .मी. ऊपर एक क़स्बा है मकलोडगंज,यहाँ हम भागसूनाग में रुके थे, होटल की छत से द्रश्य बेहद मनोरम था, चारों ओर पर्वत, हरी-हरी वादियाँ, देवदार के ऊंचे-ऊंचे वृक्षों से ढंकी पर्वत श्रंखलायें,पहाड़ की चोटियों पर रुई के फाहे सी बर्फ एवं उन पर अठखेलियाँ करते बादल... अत्यंत सुन्दर द्रश्य प्रस्तुत कर रहे थे! यहाँ का बौद्ध मठ दर्शनीय है, छोटे-छोटे चपटे चेहरे वाले खुबसूरत से लामा बच्चे व बड़े-बुज़ुर्ग चेहरे पर तेज लिए हर जगह घूमते मिल जायेंगे! यहाँ दलाई-लामा का निवास स्थान भी है, ठीक बौद्ध मठ के सामने, बुद्ध पूर्णिमा के दिन उनके दर्शन भी हुए, तिब्बत के काफी लोग मकलोडगंज में रहते हैं, दलाई लामा को भी तिब्बत से चीन द्वारा निर्वासित किये लगभग ५० वर्ष हो चुके हैं, बौद्ध मठ के बाहर भारत के प्रति आभार प्रदर्शन स्वरुप बड़ा सा बोर्ड लगा है- "धन्यवाद भारत", यहाँ अनेक