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Showing posts from 2014

चंद अलफ़ाज़ ...

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इंसानों से तुम जुदा तो नहीं समझते हो, तो क्या तुम खुदा तो नहीं ...! बड़ा बेरहम है ये जो वक़्त है मिजाज़ इसका बड़ा ही सख्त है.....! पत्थर को तराशा इक बुत  बना दिया इंसान को भूल गये उसे पत्थर बना दिया …। - रोली

ये गर्मियाँ

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झुलसन गर्म हवा के थपेड़ों की  तपिश तीखी धूप की, ऐसे में ये चुनावी सरगर्मियाँ ।  ना छाँव दिखती है  ना ही शीतल प्याऊ, दिख रहीं बस प्रचार करतीं गाड़ियाँ ।  जिधर देखो हुजूम है कार्यकर्ताओं का  वजूद खो सा गया है आम इंसान का ।  कुछ को जूनून हैं सुविधाएँ और बढ़ाने का,  कुछ को गम है अगले माह के किराने का  कुछ हिमालय देखने की योजना बना रहे हैं  कुछ बच्चों की फीस की जुगत लगा रहे हैं  कोई हनीमून की रंगीनियों में खोया है  कोई चुनाव के पश्चात बेसुध सोया है  किसी को नहीं मिल रहा रेल में आरक्षण  कोई पार्टी की टिकिट न मिलने पे रोया है  कोई दुखी है कि पेट्रोल फिर महँगा हुआ  कोई खुश है गाड़ी नहीं पास, अच्छा हुआ ।  नेता कह रहे - महँगाई कम कर देंगे  सब सोच रहे, चुनने के बाद क्या ये याद रखेंगे !!! अनपढ़ भी सीख गया है अब नेतागिरी समझ ली उसने भी शब्दों की जादूगरी ।  नेता जी, पहले पिछले किये वादे तो निभाओ  फिर दोबारा हमसे वोट माँगने आओ ।  हरेक गर्मी को अपनी तरह जी रहा है  कोई कूलर तो कोई एसी के बंद कमरे में  चैत्र में पूस का आनंद उठा रहा है  कोई पानी के लिए च
हरेक को तलाश है, धूप में छाँव की मशीनों के शोर से दूर, इक गाँव की भागती जिंदगी में, एक ठहराव की मीलों के काफिले में, एक पड़ाव की | - रोली

संघर्ष

क्वांर का महीना आ गया । हल्कू रोटी का गस्सा तोड़ते-तोड़ते सोच रहा था । बोअनी सर पर है, आधा एकड़ कुल जमीन में इस बार आधे में  गेंहू और आधे में चना और सरसों लगा दूंगा । लेकिन बीज, खाद के लिए रुपये कहाँ से आयेंगे ! "रोटी लोगे जी?" लछमी बोली । "ना, हो गया , बस । " "हओ" कहते हुए उसने खाना ढांक कर किनारे रख दिया । खाना खा कर हल्कू बाहर आ गया, खीसे से बीड़ी निकाली, माचिस से सुलगाई और फिर विचारमग्न हो गया । लछमी भी आ कर वहीँ बैठ गयी । "बोअनी की चिंता कर रहे हो ना ! कछु ना सोचो, सब ठीक हो जैहे । मेरी पायरें गिरवी रख दइयो । दो हजार तो मिल ही जेहें । " "ह्म्म्म , ट्रेक्टर भी किराये से लानो है, फिर बीज और खाद । सिंचाई के लिए बामन के खेत से पानी के लिए बाहे भी रुपैया देनो पड़ेंगे " "अरे, सब हो जेहे ।" लछमी विश्वास से बोली । "सात-आठ हजार का खर्चा है , बल्कि दस पकड़ लो " "इतना.......?" लछमी की आँखें चौड़ी हो गयीं । "हओ" ... चाँद डूब रहा था । लछमी तीन वर्ष के बेटे शंकर को लिपटाये सो रही थी । हल्कू ने

आह्वान

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बदले जग पर, तुम न बदलना, तुम ऐसी ही रहना मेरे  ऊसर से  जीवन में, सरिता  बन  तुम बहना बदलें नाते, तुम ना बदलना, तुम ऐसे  ही रहना… सह लूंगी मै जग की और हर रिश्ते की कड़वाहट मधुर चाँदनी बन कर तुम, जीवन में  मेरे रहना दुनिया बदले, तुम न बदलना तुम ऐसे  ही रहना .... निविड़-कालिमा बीच मुझे तुम, उजियारा दिखलाना अँधियारी जीवन-रजनी में , तुम दीपक बन जाना भूलें अपने , तुम ना भूलना , सब दिन अपना कहना बदले जग पर, तुम न बदलना , तुम ऐसे ही रहना….... - रोली पाठक

प्रेम-गीत

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प्रेम एक अभिशाप है एक दर्द भरा सपना है  मौन रह कर पुण्य चिता में  तिल-तिल कर तपना है  बन गया जीवन पराजय  और क्रंदन की  कहानी  किस तरह मै मौन रहूँ  और सुने तू मेरी मूकवाणी  अब तुम्हारे प्रेम का  स्पर्श ही मेरी जीत है  मेरे इस व्यथित ह्रदय की मुक्ति का संगीत है  दूर रह कर भी मैंने  तुमसे मिलन का स्वप्न गढ़ा जितनी तुमने व्याकुलता दी  उतना तुम पर विश्वास बढ़ा उतना तुम पर विश्वास बढ़ा …  - रोली पाठक