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Showing posts from October, 2012

शीशमहल ...

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इक आशियाना हो काँच का..... जहाँ कमरे की छत से धूप आये बरसात में बूंदे बरस-बरस जाएँ सर्दियों का कोहरा रूह तक महसूस हो गर्मी की लू  , बदन थरथराए.... बस एक ऐसा आशियाना हो काँच का............................ लेटूँ रात में बिस्तर पे जब अपने वहीं से बादलों में चाँद नज़र आये काँच की दीवारों से भोर होते ही सूरज की किरणें जगमगाएं .... बस एक ऐसा आशियाना हो  काँच का............................ कमरे से जुगनुओं को चमकते देखूँ गिलहरी को पेड़ पर चढ़ते देखूँ  फूलों पर तितली और भँवरे मंडराएं  महसूस हों जहाँ ये, हर पल दायें-बाएं  हाँ, इक ऐसा आशियाना हो   काँच का.............................. - रोली 

सफर..

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मेरी मुतमुईनी को ज़माने ने बेफिक्री समझा कोई ना समझा ख्वाहिशों की तिश्नगी मेरी मीलों जो चलता जा रहा यह रास्ता लंबा इस स्याह सड़क की ही  तरह है जिंदगी मेरी कहीं उखड़ी कहीं कच्ची कहीं टूटी हुई सी है अकेले दूर तक चुपचाप चलती जिंदगी मेरी रंग इसका स्याह मेरी तकदीर सा ही  है कदमो  तले  दबती  हुई सी जिंदगी मेरी पहुँचाती मुसाफिरों को ये उनकी मंजिलों तक और खुद भटकती रहती है ये जिंदगी मेरी ..... - रोली

मौसम बदल रहा है......

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मौसम बदल रहा है... ढलने लगी सांझ जल्दी धुंधलका हो रहा है मौसम बदल रहा है....... क्वांर की गुलाबी ठण्ड घुल रही बयार में, रात आ जाती है जल्दी देर से सवेरा हो रहा है मौसम बदल रहा है....... गर्म चाय की चुस्कियां अब भाने लगी हैं उतर आँगन में धूप, गुनगुनाने लगी है गुलाबी जाड़े का, अहसास हो रहा है मौसम बदल रहा है..... बिकने लगे गोले ऊन के दिखने लगी सलाइयाँ, फंदों में लिपट के स्नेह, स्वेटर बुन रहा है मौसम बदल रहा है..... खिल उठी बगिया मेरी गुलाब भी खिलने लगे रात में टपके मोती, सुबह पत्तों पर मिलने लगे अलसाया सूरज देर तक सो रहा है मौसम बदल रहा है.......... - रोली