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गुलाबी जाड़ा

नींद में डूबी हुयी ओस में भीगी हुयी मखमली जाड़े का अहसास कराती दरख्तों की कोमल नर्म-हरी पत्तियाँ आ गयीं लो अब गुलाबी सर्दियाँ................. शबनम को मोती सा खुद में समेटे हुए एक-एक पंखुड़ी को खुद में लपेटे हुए ओस में भीगी हुयी गुलाब की ये कलियाँ आ गयीं लो अब गुलाबी सर्दियाँ.................. गुनगुनी धूप अब भाने लगी है गर्म चाय रास अब आने लगी है समेट लो जंगल से जा कर लकड़ियाँ आ गयी लो अब गुलाबी सर्दियाँ.................. रात भर की ओस में खूब भीगी दूब मखमली कालीन पर ज्यों मोती जड़े हों टूट कर बिखरे हुए माला के मोती जैसे धरती पर यूँ बिखरे पड़े हों, खूबसूरत हो चलीं ये वादियाँ आ गयी लो अब गुलाबी सर्दियाँ..................