दीवानगी

किसी की चाहत को उल्फ़त समझने की भूल ना हो जाए ...........ये वो खता है जो गलती से भी कबूल ना हो जाये । ........आरजू की थी कभी तेरी पर खामोश रहेंगे अब हम , कीमत मेरी गुस्ताखियों की जब तक वसूल ना हो जाए । ..........गमगुस्सार हूँ मै तेरा, कोई आसिम नहीं हमदम डरता हूँ मुझसे जुम्बिश कहीं कोई उल-जलूल ना हो जाए । .............मुन्तजिर ही रहे तेरी इक निगाह-ए-करम के हम, तुझे देखा नहीं कि दीवानगी में हमसे कोई भूल ना हो जाए । - रोली