नमन.....

शहादत पर शहीदों की जो उँगलियाँ उठाते हैं, कभी उनके भी अपनों से वो मिल तो लें इक बार, वो जिनके लहू के कतरों पर भी परदे गिराते हैं, कभी देखा है इनने उनको रोते हुए ज़ार-ज़ार... ये कहते फ़र्ज़ था उनका यूँ सरज़मीं पे मिट जाना कभी क्या अपने किसी को वहाँ भेजने को हैं तैयार ! कितना होता है आसां खबरें पढ़ के उनको भूल जाना, ये पूछो उनसे जिनके अपनो ने की वतन पे जां निसार... चंद रूपये होती नहीं कीमत किसी बेटे की जान की, वो चाहें करें इज्ज़त लोग उनकी शहादत के नाम की... वो जो संगीनें ले कर दिन-रात को सीमा पे ठहरे हैं हम-तुम सो सकें सुकूं से इसलिए, देते ये पहरे हैं फिर क्यों उनके लहू को ये लोग यूँ बदनाम करते हैं उनकी शहादत पर क्यूँ ना अपनी आखें नम करते हैं वो बेटा है वो शौहर है वो किसी बहन का है इक भाई जो राखी ले कर राह ताकेगी जो मिट चुकी है कलाई यूँ ना किसी वीर की शहादत का अपमान कभी करना जो मर मिटा अपने देश पर अभिमान उस पर करना सदा अभिमान उस पे करना, अभिमान उस पे करना... - रोली पाठक