कश्मीर की सरकार से गुहार..
सुलग रहा है मेरा मन क्यों...
जल रहा है मेरा तन क्यों.....
मेरी बर्फीली वादियों में,
नफरत की लगी अगन क्यों....
मेघाच्छादित हिम पर्वत पर,
बरस रहें है शोले क्यों.......
मेरी शीतल डल-झील का,
रंग हो गया रक्तिम सा क्यों....
कहाँ गए वो रंगीं शिकारे,
हर इन्सां स्तब्ध सा है क्यों....
देवदार औ चीड पर मेरे,
हिमपात नहीं, अंगारे हैं क्यों....
इस गुलज़ार हंसीं घाटी पे,
कर्फ्यू का है सन्नाटा क्यों......
धरती पर एक स्वर्ग यहीं था,
बना दिया इसे जहन्नुम क्यों....
मात्रभूमि का घूँघट हूँ मै,
मेरी तुम लाज, बचाते नहीं क्यों.....
और उजाड़ेंगे ये कितना,
हैवानो से मुझे बचाते नहीं क्यों........
पास है "पंद्रह-अगस्त" का वो दिन,
किन्तु, मुझे आजाद कराते नहीं क्यों...
आतंकवाद की बेड़ियों से,
तुम निजात दिलाते नहीं क्यों....
हाथों में क्या लगी है मेहँदी,
अब हथियार उठाते नहीं क्यों....???
अब हथियार उठाते नहीं क्यों....???
- रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/
मित्रों, कश्मीर सुलग रहा है...आतंकी उसे नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे | सरकार चाहे तो अब भी वहाँ सेना भेज कर हालात काबू में कर सकती है, वहाँ की भयावह स्थिती महज सुरक्षा-बलों के बस के बाहर है , किन्तु सरकार ना जाने किस उधेड़बुन में है... यही सब है मेरी इस रचना में...एक अदना सा प्रयास..
ReplyDeleteकश्मीर समस्या पर एक सशक्त कविता|
ReplyDeleteकल ही सर्व दलीय बैठक में यह तय हुआ है कि सरकार कश्मीरी युवाओ को रोजगार के लिए साधन मुहैय्या कराएगी| और अलगाववादी गतिविधियों से निजात पाने के लिए कश्मीर सरकार को रेडियो और दूरदर्शन के माध्यम से विभिन्न कार्यक्रमों के प्रसारण के लिए १०० करोड़ रुपये कि राशि आवंटित की गई है| जम्मू विश्वविद्यालय में हाल ही में देश विरोधी कुछ नारेबाजी की घटनाये भी सामने आई है| यह सरासर जन भावना को भड़काने की एक साजिश है|हालाकि वहा के छात्र संगठनो ने इसका कड़ाई से विरोध किया है|
सरकार कब तक राहत पॅकेज के दम पर अपनी गर्दन बचाती रहेगी| अब तो ठोस कदम उठाना ही चाहिए......... जो कि इस तुष्टिकरण कि राजनीति में असंभव प्रतीत होता है|
१५ अगस्त आने को है चलिए देखते है इस बार लाल चौक क्या गुल खिलाता है
कश्मीर समस्या पर एक सशक्त कविता|
ReplyDeleteरोली जी, सटीक रचना है वर्तमान स्थिती पर | बहुत सही समय पर आपने लिखी है | अक्षर-अक्षरः सत्य, व कश्मीर की बेबसी दर्शाती हुई रचना है | काश आपकी ये कविता सरकार के बाशिंदे भी पढ़ें, शायद उन्हें कुछ शर्म महसूस हो...! आज इस मुद्दे पर सारे देश कि आवज़ बुलंद हो रही है, सभी चिंतित हैं, किन्तु सरकार के कानो में जूँ नहीं रेंग रही
ReplyDeleteBahut badhiya likha hai....laajawab
ReplyDeleteBahot Khoob likha hai aapne....
ReplyDeleteDekh aaiye us khoobsurat jagah ko jo sulag raha hai kuch swarthmand logo ke karan....
बहुत अच्छी रचना है। सही वर्णन है...मैं रही हूं जम्मू में, बहुत पास से देखा है...घाटी में पसरे आतंकवाद को...
ReplyDeleteThank you all my dear n respected friends....
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