ह्रदय की पीर....
स्म्रतियों के घेरे से
मन के घने अँधेरे से
ले चल ऐ वक्त मुझे,
दूर कहीं..................
सुरभि से उसके तन की
तृष्णा से मेरे मन की
ले चल ऐ ह्रदय मुझे,
दूर कहीं................
इन गहन प्रेम वीथिकाओं से
मेरे मन की सदाओं से
ले चल चंचल मन,
दूर कहीं...................
उस प्रेमरूप की गागर से
मेरी पीड़ा के सागर से
ले चल अनुरागी चित,
दूर कहीं....................
धूप-छाया सा मिलन था
दीप-बाती सा बंधन था
इस टूटे ह्रदय की पीर से
बहते अंखियों के नीर से,
ले चल पीड़ित मन,
मुझे दूर कहीं.............
दूर कहीं....................
-रोली पाठक
मन के घने अँधेरे से
ले चल ऐ वक्त मुझे,
दूर कहीं..................
सुरभि से उसके तन की
तृष्णा से मेरे मन की
ले चल ऐ ह्रदय मुझे,
दूर कहीं................
इन गहन प्रेम वीथिकाओं से
मेरे मन की सदाओं से
ले चल चंचल मन,
दूर कहीं...................
उस प्रेमरूप की गागर से
मेरी पीड़ा के सागर से
ले चल अनुरागी चित,
दूर कहीं....................
धूप-छाया सा मिलन था
दीप-बाती सा बंधन था
इस टूटे ह्रदय की पीर से
बहते अंखियों के नीर से,
ले चल पीड़ित मन,
मुझे दूर कहीं.............
दूर कहीं....................
-रोली पाठक
सुन्दर और संवेदनशील रचना ..
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत भावोँ को पिरोया हैँ आपने कविता मेँ। लाजबाव है आपकी कविता। आभार! -: VISIT MY BLOG :- जिसको तुम अपना कहते हो............कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteफ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
आदरणीय संगीता जी, अशोक जी, मनोज जी, संजय जी आप सभी को धन्यवाद, मेरे उत्साह वर्धन के लिए....
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...एक गीत के बोल याद आ गए...ए मेरे दिल तू कहीं और चल...गम की दुनिया से दिल भर गया..
ReplyDeleteAnamika ji, Thanks...
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