ना जाने क्यों ऐसे हालात हो गए हैं....
बदले-बदले से सबके, खयालात हो गए हैं...
हम तो पहले जैसे ही, अब भी हैं मगर...
बदले-बदले से सबके जज़्बात हो गए हैं....

वो निगाहें भी हैं बदली-बदली
अंदाज़ भी बदला सा लगता है,
मौसम के साथ बदल जाना,
सबके ऐसे,खयालात हो गए हैं...
बदले-बदले से सबके जज़्बात हो गए हैं....

बहुत खायी थीं कसमें,
वादे भी बहुत किये थे मगर,
अब तो पहचानते तक नहीं,
उफ़, ये कैसे हालात हो गए हैं....
बदले-बदले से सबके जज़्बात हो गए हैं...

-रोली पाठक
http://wwwrolipathak.blogspot.com/

Comments

  1. बहुत खूबसूरत भाव सँजोय है आपने इस रचना मेँ......... लाजबाव है आपकी अभिव्यक्ति रोली पाठक जी ।

    आपको एवं आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायेँ ।

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    " खुदा से भी पहले हमेँ याद आयेगा कोई...........गजल "

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  2. बदले बदले से सबके जज्बात हो गए है....
    बहुत सुन्दर.....

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  3. वाह रोली जी ,क्या बात है आपके लेखन में. पढ़कर अच्छा लगा

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  4. सुंदर भावो से सजी ओर एक हकीकत बतालाती यह कविता, धन्यवाद

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  5. बहुत अच्छा ,बहुत मजेदार ..:कभी समय मिले तो हम्रारे ब्लॉग //shiva12877.blogspot.com पर भी आयें /

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  6. रोली जी सार्थक रचना
    नव वर्ष की बधाई हो

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  7. bahut khubsurat abhivaykti...aabhar

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  8. वाह! बहुत बढ़िया लिखा आपने.

    अब आपके ब्लॉग पर नियमित आना होता रहेगा.

    सादर

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  9. मनोज कुमार जी, प्रदीप जी, कुंवर कुसुमेश जी, संजय भास्कर जी, शिवा जी, अमर जीत जी, नेहा जी, यशवंत जी....इस उत्साहवर्धन के लिए आप सभी प्रिय व आदरणीय मित्रों का ह्रदय से आभार.....

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  10. बदले बदले से मुझको मेरे सरकार नज़र आते है
    वो बदल गए है या फिर ये मेरी नजरो का भरम है

    दुनिया का सही चित्रण किया,
    हा आज कार कोई बदला बदला शा नज़र आता है
    सुल्तान सिंह जसरासर

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