मनः दशा.....
बेबस सी कराहती,
कुम्हलाती ज़िन्दगी....
जो मन चाहे, वो हो ना पाए,
जो हो, वो मन ना चाहे....
एक विवशता, छटपटाहट ..
ह्रदय डूबता सा,
आँखों में तैरते अश्रु,
ना छलक पाते,
ना रह पाते अन्दर....
जुबां चुप, थरथराते होंठ...
नब्ज़ डूबती सी,
धड़कने अशांत.....
हर क्षण हर पल
एक प्रश्न के साथ.....
जिसका कोई उत्तर नहीं...
-रोली.......
20 :12 :2011
कुम्हलाती ज़िन्दगी....
जो मन चाहे, वो हो ना पाए,
जो हो, वो मन ना चाहे....
एक विवशता, छटपटाहट ..
ह्रदय डूबता सा,
आँखों में तैरते अश्रु,
ना छलक पाते,
ना रह पाते अन्दर....
जुबां चुप, थरथराते होंठ...
नब्ज़ डूबती सी,
धड़कने अशांत.....
हर क्षण हर पल
एक प्रश्न के साथ.....
जिसका कोई उत्तर नहीं...
-रोली.......
20 :12 :2011
अन्तर्मन के द्वंद को बखूबी उकेरा है।
ReplyDeleteगहरी अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteWaah Khoob likha hai...
ReplyDeleteमन की दशा बेबसी .... उम्दा रोली जी
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