नव वर्ष
जा रहा एक और वर्ष हमसे विलग होकर
कई रक्तरंजित देह, छलनी आत्मा देकर
हो चुकी वीलीन पंचतत्व में जिसकी देह
माँ उसे पुचकारती थी हौले-हौले से छूकर
एक नहीं है, सैकड़ों हैं - "दामिनी" यहाँ
दे रहीं हमको सदाएं जो आज मरमरकर
आओ शपथ लें दामिनी को तेज वह देंगे
जैसे चमकती नभ में वैसी शक्ति हम देंगे
नव चेतना की वंदना, नारी को हम मुस्कान दें
नव जागृति की प्रार्थना नारी को हम सम्मान दें
मान दें, सम्मान दें, उसको नयी पहचान दें |
- रोली पाठक
नव चेतना की वंदना नारी को हम मुस्कान दें
ReplyDeleteनव जाग्रति की प्रार्थना नारी को हम सम्मान दें
मान दें सम्मान दें उसको नई पहचान दें
अंतिम तीन पंक्ति अनुपम अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post मेरी माँ ने कहा !
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