कुछ कुछ होते देखा ..

कुछ पाते कुछ खोते देखा ,
जीवन को यूँ रोते देखा,
हर पल बदला हाल समय का,
हर दिन कुछ-कुछ होते देखा ...
खुली हुयी अंखियों से मैंने,
खुद को ही सोते देखा ...

धूप कभी,कभी छाँव घनेरी,
दर्द थे उसके, पलकें मेरी ,
जेठ माह में मैंने अक्सर,
सावन में खुद को भिगोते देखा...
चुपके-चुपके यूँ भी अक्सर
मैंने खुद को रोते देखा...

रात की श्यामल ख़ामोशी में,
नींद की अलमस्त मदहोशी में,
पलकों में अटके ख्वाबों को,
आंसू बन के पिघलते देखा ...
बादल पे अपने  पाँव जमा कर
मैंने खुद को चलते देखा....

- रोली 

Comments

Popular posts from this blog

जननि का महत्व

पापा

भीगी यादें