बबूल के फ़ूल
बबूल कहते ही
काँटों की व्यथा सुनाई देती है
नहीं सोचता कोई
उसके तीखे काँटों के सिवा कुछ और
देखे हैं मैंने लेकिन
आषाढ़ की बयार में
झूमती इतराती शाखों पर
खिले इठलाते रुई के फाहे से
पीले बबूल के फ़ूल ।
- रोली
काँटों की व्यथा सुनाई देती है
नहीं सोचता कोई
उसके तीखे काँटों के सिवा कुछ और
देखे हैं मैंने लेकिन
आषाढ़ की बयार में
झूमती इतराती शाखों पर
खिले इठलाते रुई के फाहे से
पीले बबूल के फ़ूल ।
- रोली
bahul ke phool....bahut hi nyara najariya liye hai....like a defender abhaar
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद ।
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