उठो देव...

साँझ ढलते ही लोगों के आँगन दीपों, कंदीलों व रंग-बिरंगे नन्हें बल्ब की लड़ियों से जगमगा उठे । लगभग हर घर मे गन्ने के मंडप के नीचे तुलसी विवाह संपन्न हो रहा है । पूजा समाप्त होते ही लोग अपने घरों के बाहर पटाख़े चलाने आ गए । तेज आवाज़ वाले पटाख़े चला चला कर चार माह से सोये देव को जगाया जा रहा है । मंगल गीत गाये जा रहे हैं - उठो श्याम साँवरे, बेर भाजी आँवरे । चारों ओर बड़े पटाखों की ध्वनि गुंजायमान है । मानो मनुष्य ऊपर स्वर्गलोक तक अपनी आवाज़ पहुँचा रहा हो कि - हे देव, जागो । उठो । निद्रा का त्याग कर संसार को देखो । तुम सोते रहे और कितना अनिष्ट, कितना दुराचार बढ़ गया । अब जागो , दंड दो पापियों, दुराचारियों को । ....किन्तु देव, तुम तो  चार माह को ही शयन को गए थे, पाप व दुराचार तो वर्षों से व्याप्त है, कम नहीं होता, बढ़ता ही जाता है । भ्रष्टाचार, दुराचार, बलात्कार, फरेब कम ही नहीं हो रहे । जिन छोटी-छोटी  कन्याओं को नौ दुर्गा का स्वरूप मान कर पूजा था, वे ही राक्षसों की हवस का शिकार हो गईं । हे देव, अब तो उठ जाओ । ये धमाके तुम्हें जगाने के लिए किए जा रहे हैं ताकि तुम जागो और हम इंसान अपने समस्त दुःख-दर्द भूल के उत्सव मनायें ।
प्रभु, अपनी गहन निद्रा में क्या तुमने हमारे दुःखों का अनुभव नहीं किया ?
 यदि नहीं किया तो अब तो अपने नेत्र खोलो और देखो हम तुम्हारी आस में किन परिस्थितियों में हैं ।
समाज मे व्याप्त बुराइयों से व हमारे बीच रह रहे राक्षसों से कैसे हम स्वयं को बचा रहे हैं, उठो और देखो कैसे उन राक्षसों ने नारी का तिरस्कार कर उसे अपमानित किया है । हे देव, जागो और अपनी अदम्य शक्तियों से उनका नाश करो ।
ये आतिशबाजी ये पटाखों की गूँज तुम्हें निद्रा से जगाने के लिए है ।
हे देव...उठो, जागो ।

- रोली पाठक

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