गर्मी का मौसम

'गर्मी' शब्द सुनते ही पसीना आने लगता है । मार्च माह आता नहीं कि लोगों के संदेश आने लगते हैं - चिड़ियों के लिए मुँडेर पर दाना-पानी रखें । सभी कोशिश करते ही हैं कि नन्हें पंछी धूप में दाने-पानी को न भटकें । कुछ और उदार ह्रदय लोग घर के बाहर बड़े मिट्टी के सकोरों में गाय-कुत्तों व अन्य पशुओँ के लिए पानी रख देते हैं । इनसे भी अधिक अच्छे लोग इंसानों के लिए प्याऊ लगवा देते हैं।
गर्मी बढ़ती जाती है और लोग हलाकान होने लगते हैं । अखबार में रोज का बढ़ता तापमान देख गर्मी को कोसते रहते हैं ।
निर्धन बेचारे मच्छर, गर्मी व बिना कूलर-एसी के किसी तरह जीवन काटता है । हरे-भरे लहलहाते कोमल पौधे मरने लगते हैं । कुल मिलाकर गर्मी सबकी जान लेने आती है ।
मैं भी गर्मी से दुखी इसे कोसती हुई सुबह कूलर में पानी भर रही थी, तभी सामने अमलतास पर नज़र पड़ी । पीले फूलों से लदा अमलतास गरम लू में भी झूम रहा था । पीछे कहीं अमराई में कोयल जोर-जोर से कूक रही थी । दीवार पर मेरे रखे सकोरे में नन्ही गौरैया फुदक-फुदक कर नहा रही थी । कहीं से आई एक गिलहरी बाजरे के दानों को खाने में व्यस्त थी । इतने में सब्जी वाले दादा आये, ठेले में फल ज्यादा थे सब्जियाँ कम ।
आम, तरबूज, खरबूज, संतरों की भरमार थी ।
मैंगो शेक के लिए तुरन्त आम लिए । मटके का शीतल जल पिया और सोचने लगी, क्यों हम मौसम को कोसते हैं ।
यही गर्मियाँ बचपन में कितनी भली लगती थीं ।
स्कूल की छुट्टियां मिलने के बाद जब घर में चाचा-बुआ और सारे भाई-बहन इकट्ठे होते थे तब क्या ही आनंद था । जब शाम को कुल्फी वाला टिन-टिन कर घंटी बजाता और सारे बच्चों व बड़ों को कुल्फी खिलाता, शाम को सबको चाट खिलाने बाजार ले जाया जाता, ठंडा गन्ने का रस पीते, खूब मौज करते ।
अगले महीने नाना-नानी के यहाँ जाने मिलता, वहाँ भी मज़े ।
अतीत में खोयी हुई मैं जैसे नींद से जागी ।
नहीं । गर्मियाँ बुरी नहीं होतीं । हर मौसम का अपना महत्व है ।
गर्मियाँ तो बहुत खूबसूरत होती हैं क्योंकि इनमें हमारा बचपन छुपा होता है ।
😊
- रोली

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