व्यस्तता...

 कितने दिन हो गए कुछ लिखा ही नहीं। विचारों के बादल आषाढ़ के मेघों की तरह दिलो-दिमाग में खूब उथल-पुथल मचाते रहते हैं लेकिन समय ही नहीं कि उन्हें शब्दों में ढाल सकूँ। 

बिटिया के विवाह में लगभग एक माह शेष है, दीपावली का महापर्व सिर पर है, घर में एक साथ सफाई, रंगाई-पुताई, बढ़ई के काम सब चल रहे हैं। घर का सामान उलट-पुलट है। कुछ भी व्यवस्थित नहीं ऐसे में विचारों को कैसे एकसार करूँ !!! कभी दर्ज़ी के यहाँ ब्लाउज़ सिलने देना है तो कभी साड़ी में फॉल-पीकू कराना है, कभी मेहमानों की लिस्ट बनानी है तो कभी उनके उपहारों को अलग-अलग नाम लिख कर पैकेट्स बनाने हैं। बीच मे दस-बारह लोगों की चाय बनाओ तो घर मे चाय-नाश्ता-खाना भी चाहिए। बढ़ई बुलायें तो अट्ठारह सीढियां चढ़ कर ऊपर भागो फिर पुताई वाले की सुनने वापस नीचे आओ। इस कवायद में भी विचार कमबख्त शांत नहीं रहते, रोज एक बार मन का दरवाजा खटखटा कर जता ही देते हैं कि हमें भी आकार दो।

एक महीने बाद बिटिया का दूसरा घर हो जायेगा। अभी जो कमरा बेतरतीब सा बिखरा पड़ा है, शादी के बाद उसकी अलमारी, आईना, टेबल सब साफ-सुथरे चुप से हो जाएंगे। अभी जो चीख़-पुकार मची रहती है, ये नहीं मिल रहा, वो कहाँ है, वो सब सन्नाटे में बदल जायेगा। 

लैपटॉप के जिस चार्जर को जगह-जगह लटकते देख मैं झुंझलाती हूँ वह भी नोनी के साथ ही चला जायेगा। मेरी सफाई को लेकर बड़बड़ाहट नहीं होगी। अभी तो चिंता घेरे रहती है कि कैसे करेगी वहाँ सब ! खुद के सारे काम करना पड़ेंगे, अभी तो सब मैं हाथ मे दे देती हूँ। 

शादी के बाद ज़िंदगी ही बदल जाती है। नया घर, नया कमरा, नये रिश्ते। मैं उनतीस साल पहले का प्रतिबिंब देख रही हूँ आईने में। कैसे सब कुछ बदल गया था। मैंने सब स्वाभाविकता से धीरे-धीरे जैसे सब स्वीकार किया था, मेरी लाड़ली भी नये जीवन को अपना लेगी। 

अब शब्द बोझिल हो रहे हैं। समय मिलने पर पुनः बिखरे विचारों को शब्दों में पिरोकर ब्लॉग पर लिखूंगी।

- रोली 🌹

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