दुर्भाग्य.....
राह तकते
नयन सूने
ना काजल ना चूड़ी
ना बिंदिया ना गहने
शून्य में ताकती,
रीति अंखियों से जागती,
पीड़ा से कभी चित्कारती,
उन्मादित हो, उसे पुकारती,
सब कुछ तो है जानती वह,
फिर भी क्यों ना मानती वह,
उजड़ गया रंग लाल उसका,
अब ना आयेगा कभी वह वो,
जिससे था श्रृंगार उसका...
मुस्कुराते, वह गया था
लौटता हूँ, यह कहा था
निर्जीव देह यूँ आयेगी
यह किसी को, क्या पता था...
स्टेशन के जिस कोने में,
उसका नवीन सहचर खड़ा था
आतंक का बम,
वहीँ फटा था...
मृत्यु का यम,
वहीँ खडा था....
वहीँ खड़ा था.....
-रोली पाठक
(यह कविता मैंने मुंबई सीरिअल ब्लास्ट्स के बाद टीवी पर पीड़ितों के इंटरव्यू देखने के बाद लिखी थी )
नयन सूने
ना काजल ना चूड़ी
ना बिंदिया ना गहने
शून्य में ताकती,
रीति अंखियों से जागती,
पीड़ा से कभी चित्कारती,
उन्मादित हो, उसे पुकारती,
सब कुछ तो है जानती वह,
फिर भी क्यों ना मानती वह,
उजड़ गया रंग लाल उसका,
अब ना आयेगा कभी वह वो,
जिससे था श्रृंगार उसका...
मुस्कुराते, वह गया था
लौटता हूँ, यह कहा था
निर्जीव देह यूँ आयेगी
यह किसी को, क्या पता था...
स्टेशन के जिस कोने में,
उसका नवीन सहचर खड़ा था
आतंक का बम,
वहीँ फटा था...
मृत्यु का यम,
वहीँ खडा था....
वहीँ खड़ा था.....
-रोली पाठक
(यह कविता मैंने मुंबई सीरिअल ब्लास्ट्स के बाद टीवी पर पीड़ितों के इंटरव्यू देखने के बाद लिखी थी )
दर्दनाक त्रासदी का जीवंत चित्रण्।
ReplyDeleteवंदना जी.... बहुत-बहुत धन्यवाद....
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