वो ख़ुद एक आफ़ताब है,
क्या ज़रूरत है उसे रौशनी की...
बुझा दो इन चिरागों को,
कि इनकी रौशनी जाया हो रही है.....
-रोली..
क्या ज़रूरत है उसे रौशनी की...
बुझा दो इन चिरागों को,
कि इनकी रौशनी जाया हो रही है.....
-रोली..
वो भावनाएं जो अभिव्यक्त नहीं हो पातीं वो शब्द जो ज़ुबाँ पे आने से कतराते हैं इन्द्रधनुष के वो रंग जो कैनवास पर तो उतर जाते हैं पर दिल में नहीं...वो विचार जो मस्तिष्क में उथल-पुथल मचाते हैं पर बाहर नहीं आ पाते... उन्हीं को अपनी रौशनाई में ढाल कर आवाज़ दी है शब्द दिए हैं...और इस ब्लॉग पर बिखेरा है..बस एक प्रयास है...कोशिश है..... मेरी ये.....आवाज़
शुक्रिया संजय जी...
ReplyDeleteन चान्द दिखेगा न तारे टिमटिमायेंगे
ReplyDeleteसूर्य के आगे दीप खुद गुल हो जायेंगे
शुक्रिया जी.......
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