सावन की प्रतीक्षारत परिंदे बैठे हैं शाख पर,
जेठ की दुपहरी जला रही उनके पर....
किसी से उम्मीद नहीं, उन्हें दे सके दो बूँद नीर....
मेघ ही जब बरसेंगे तब, हरेंगे उनकी पीर.....
शुष्क कंठ, लाचार आँखों से,
ढूंढ रहे दाना-पानी....
मेरी अटारी पे मिट्टी के कुल्हड़ में, रखा है मैंने,
शीतल जल, कुछ दाने अनाज के और बहुत सा प्रेम...
मेरा स्वार्थ भी है इसमें,
मुझे सुनना है उनका कलरव, उनकी चहचहाहट....
ऐ परिंदों, हर रोज़ तुम यूँ ही आ जाया करो,
अपनी मीठी वाणी में मेरी अटारी पर,
मधुर गीत तुम गाया करो........
गीत तुम गाया करो............
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (5-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
खूबसूरत और भावमयी प्रस्तुति ....
ReplyDeletebhut hi bhaavpur rachna hai apki...
ReplyDeletekomal man ki bhaavnao ko darshati sunder post.
ReplyDeletekavita ji, sushma ji, anamika ji.....bahut bahut Dhanywaad.
ReplyDeletevandana ji..........bahut-bahut dhanywaad apka....
ReplyDeleteभवनात्मक अभिव्यक्ति और शब्द विन्यास बहुत सुंदर है
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