अहसास बनके तेरी यादों में बसती हूँ...
आँसू बनके तेरी आँखों में सजती हूँ...
कभी हवा का झोंका बन,किवाड़ खड़खड़खड़ाती  हूँ,
कभी गर्म शॉल बन,तन से लिपट जाती हूँ....
जेठ की दुपहरी में नीम की छाया हूँ,
आषाढ़ की बूँदों में, छत का साया हूँ,
हर पल हूँ साथ तुम्हारे, महसूस करो,
मै तो मुस्कान बन, सदा तेरे अधरों पे सजती हूँ...
अहसास बनके तेरी यादों में बसती हूँ.....

Comments

  1. बहुत बेहतरीन!

    सादर

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  2. यशवंत जी, संगीता जी व् सुषमा जी........बहुत बहुत धन्यवाद...

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  3. सुन्दर प्रस्तुति, बधाई.

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  4. अशोक जी नया नौ दिन, पुराना सब दिन
    बेहतर पोस्ट

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